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क्या आप जानतें हैं सावन में कांवड़ यात्रा की शुरुआत किसने की थीं।


सावन हिंदू कलेंडर के एक ठो महीना बा। काशी क्षेत्र में प्रचलन में बिक्रम संवत के अनुसार सावन साल के तीसरा महीना होला। अंगरेजी (ग्रेगोरियन कैलेंडर) के हिसाब से एह महीना के सुरुआत कौनों फिक्स डेट के ना पड़ेला बलुक खसकत रहेला।

रिपोर्ट  - 

आमतौर पर ई जुलाई/अगस्त के महीना में पड़े ला। भारतीय राष्ट्रीय पंचांग, जेवन सुरुज आधारित होला, में सावन पाँचवाँ महीना हवे आ ग्रेगोरियन कैलेंडर के 23 जुलाई से एकर सुरुआत होले। नेपाल में प्रयुक्त कैलेंडर के हिसाब से ई साल के चउथा महीना हवे। बंगाली कैलेंडर में भी ई चउथा महीना होला। 1.कुछ विद्वानों का कहना हैं की सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित पूरा महादेव का कांवड़ से गंगाजल जल लाकर जलाभिषेक किया था । परशुराम इस प्राचीन शिवलिंग का जलाभिषेक करने के लिए गढ़मुक्तेश्वर से गंगा जी का जल लाए थे।अतः आज भी इस परम्परा का पालन करतें हुऐ सावन के महीने में गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर पूरा महादेव का जलाभिषेक करतें हैं । आज हम गढ़मुक्तेश्वर को बज्र घाट के नाम से जानतें हैं । 2.कहीं कहीं कई विद्वानों का कहना हैं की श्रवण कुमार ने पहली कांवड़ यात्रा शुरू की थी । अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा कराने के क्रम में श्रवण कुमार हिमालय के उन क्षेत्रों में थे जन्हा उनके अंधे माता पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रगट की थीं । माता पिता की इच्छा पूर्ति हेतु श्रवण कुमार उन्हें कांवड़ पर बैठा कर हरिद्वार लें जा कर गंगा स्नान करवाया । वापस लौटते वक्त वह साथ में गंगाजल भी लें कर चले थे इसी दिन से कांवड़ यात्रा का शुभ शुरआत माना जाता है। 3.मान्यता तो ये भी हैं की कांवड़ यात्रा की शुरुआत भगवान श्री राम ने की है। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भर के बाबाधाम का जलाभिषेक किया था। 4. मान्यताओं के अनुसार समुंद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभाव को दूर करने के लिए देवताओं ने शिव जी पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था । सभी देवता गंगाजल लाकर शिव जी को अर्पित करने लगे । अतः सावन मांस का कांवड़ यात्रा का शुभ आरंभ यही से शुरू हुआ था।

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