यà¥à¤¦à¥à¤§ कहीं à¤à¥€ हो, उसकी कीमत चà¥à¤•à¤¾à¤¨à¥€ ही होती है। इस वकà¥à¤¤ केवल यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ ही नहीं चà¥à¤•à¤¾ रहा है, बाकी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¥€ चà¥à¤•à¤¾ रही है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के मेडिकल छातà¥à¤° नवीन की यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ में मौत (इसके लिठहतà¥à¤¯à¤¾ सही शबà¥à¤¦ है!) इस बात का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है कि यà¥à¤¦à¥à¤§ उन लोगों से à¤à¥€ कीमत वसूलता है जो न तो इसके लिठजिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हैं और न ही इसमें शामिल हैं।
रिपोर्ट - सà¥à¤¶à¥€à¤² उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
यà¥à¤¦à¥à¤§ कहीं à¤à¥€ हो, उसकी कीमत चà¥à¤•à¤¾à¤¨à¥€ ही होती है। इस वकà¥à¤¤ केवल यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ ही नहीं चà¥à¤•à¤¾ रहा है, बाकी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¥€ चà¥à¤•à¤¾ रही है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के मेडिकल छातà¥à¤° नवीन की यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ में मौत (इसके लिठहतà¥à¤¯à¤¾ सही शबà¥à¤¦ है!) इस बात का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है कि यà¥à¤¦à¥à¤§ उन लोगों से à¤à¥€ कीमत वसूलता है जो न तो इसके लिठजिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हैं और न ही इसमें शामिल हैं। वैसे, नवीन की मौत के लिठकेवल यà¥à¤¦à¥à¤§ नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ सरकारें à¤à¥€ जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° हैं, चाहे वे मौजूदा सरकारें हों या इससे पहले की। यà¥à¤¦à¥à¤§ न होता तो कोई चरà¥à¤šà¤¾ à¤à¥€ नहीं करता कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ के हजारों छातà¥à¤° यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ में हैं और हर साल इनकी संखà¥à¤¯à¤¾ बॠरही है। कà¥à¤¯à¤¾ ये शौकिया तौर पर यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ गठहैं या फिर यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ में मेडिकल की डिगà¥à¤°à¥€ फà¥à¤°à¥€ बंट रही है ? दोनों सवालों के जवाब बेहद आसान है। ये à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार और राजà¥à¤¯ सरकारों की नीतियों के कारण देश से बाहर जाने के लिठमजबूर हà¥à¤ हैं। सबको पता है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ में मेडिकल डिगà¥à¤°à¥€ में, खासतौर से à¤à¤®à¤¬à¥€à¤¬à¥€à¤à¤¸ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के लिठकितनी मारामारी है। और उससे à¤à¥€ बड़ी बात ये है कि निजी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में इसकी कीमत इतनी बड़ी है कि कोई आम आदमी तो छोड़िये à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार के सबसे बड़े अधिकारी à¤à¥€ अपने वेतन के बल पर à¤à¤• बचà¥à¤šà¥‡ मेडिकल डिगà¥à¤°à¥€ का बोठनहीं उठा सकते। सरकार के सबसे बड़े अधिकारियों को टैकà¥à¤¸ और पेंशन-फंड कटने के बाद शायद ही हर महीने दो लाख रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ महीना वेतन मिलता होगा। कà¥à¤¯à¤¾ इतना बड़े अधिकारी अपने वेतन से निजी मेडिकल काॅलेज में अपने बचà¥à¤šà¥‡ की पà¥à¤¾à¤ˆ करा सकते हैं! अगर ईमानदार हैं तो नहीं करा सकते। जिनके पास आय के छिपे हà¥à¤ सà¥à¤°à¥‹à¤¤ हैं, वे जरूर करा सकते हैं। जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ दूर जाने की जरूरत नहीं है उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के निजी मेडिकल काॅलेजों में à¤à¤• साल की फीस 12 से 18 लाख के बीच में हैं। इसमें छिपे हà¥à¤ खरà¥à¤š शामिल नहीं हैं। पांच साल का अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ लगाना चाहे तो à¤à¤• करोड़ तक खरà¥à¤š हो जाà¤à¤—ा। असली मजबूरी यही है, जिसके चलते हजारों लोगों को अपने बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨, रूस, पूरà¥à¤µ सोवियत गणराजà¥à¤¯à¥‹à¤‚, चीन, पूरà¥à¤µà¥€ à¤à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾à¤ˆ देशों और यूरोप के पोलेंड, हंगरी जैसे तà¥à¤²à¤¨à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• रूप से गरीब देशों में à¤à¤®à¤¬à¥€à¤¬à¥€à¤à¤¸ की पà¥à¤¾à¤ˆ के लिठà¤à¥‡à¤œà¤¨à¤¾ पड़ रहा है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ में जिस काम के लिठपांच साल में à¤à¤• करोड़ तक खरà¥à¤š हो रहे हैं, इन देशों में ये काम 20-25 लाख में हो रहा है। इस सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° कौन है ? कम से कम अà¤à¤¿à¤à¤¾à¤µà¤• और छातà¥à¤° तो नहीं हैं। कौन अà¤à¤¿à¤à¤¾à¤µà¤• चाहेगा कि उसका बचà¥à¤šà¤¾ किसी अनजान देश में विपरीत परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में रहकर पà¥à¤¾à¤ˆ करे। à¤à¤¸à¥€ कौन-सी वजहें हैं कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ के निजी मेडिकल काॅलेजों में इन देशों की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में तीन से पांच गà¥à¤¨à¤¾ तक अधिक फीस है ? और वे कौन लोग हैं जो इतनी बड़े शà¥à¤²à¥à¤• ढांचे पर सहमत हो रहे हैं, इसका निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ कर रहे हैं ? वे कहीं से बाहर से नहीं आठहैं। इसी सिसà¥à¤Ÿà¤® और सतà¥à¤¤à¤¾ का हिसà¥à¤¸à¤¾ हैं। वे सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ देश के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ गà¥à¤¨à¤¾à¤¹ है, समाज के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ गà¥à¤¨à¤¾à¤¹ है और ये मानवता के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि यà¥à¤¦à¥à¤§ होता है। याद कीजिठजब कà¥à¤› साल पहले छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ॠके मà¥à¤–à¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ अजित जोगी ने गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ में मेडिकल सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ उपलबà¥à¤§ कराने के लिठसाà¥à¥‡ तीन साल की मेडिकल डिगà¥à¤°à¥€ शà¥à¤°à¥‚ कराई थी तो मेडिकल कौंसिल और डाॅकà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ के संगठन किस तरह गिरोह बनकर टूट पड़े थे। बात साफ है, सारा मामला लाठकमाने की मंशा से जà¥à¥œà¤¾ है। इसलिठतातà¥à¤•à¤¾à¤²à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को छोड़ दे ंतो किसी को फरà¥à¤• नहीं पड़ता कि कोई यà¥à¤µà¤¾ à¤à¤• मेडिकल डिगà¥à¤°à¥€ की उमà¥à¤®à¥€à¤¦ में यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ जैसे देश में अपनी जान गंवा देता है। और मामला केवल à¤à¤• ही यà¥à¤µà¤¾ तक सीमित रहेगा, à¤à¤¸à¤¾ नहीं है। जितनी बड़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में à¤à¤¾à¤µà¥€ डाॅकà¥à¤Ÿà¤° यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ और उसके पड़ोसी देशों पोलेंड, रोमानिया, हंगरी आदि में फंसे हà¥à¤ हैं, उसे देखकर लग रहा है कि कई और लोगों पर मà¥à¤¸à¥€à¤¬à¤¤ के पहाड़ टूटेंगे। सरकारें अपनी आलोचना नहीं सà¥à¤¨à¤¤à¥€à¥¤ वे किसी à¤à¥€ पारà¥à¤Ÿà¥€ की हों, उनका चरितà¥à¤° à¤à¤• जैसा ही होता है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार आज जो काम कर रही है, वो काम à¤à¤• सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ पहले होना चाहिठथा, लेकिन आपात सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ वाला काम à¤à¥€ फà¥à¤°à¤¸à¤¤ से हà¥à¤†à¥¤ इतनी समठहम सà¤à¥€ को है कि 20 हजार छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ या अनà¥à¤¯ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ नागरिकों को यà¥à¤¦à¥à¤§ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° से बाहर निकालने के लिठकम से कम सौ उड़ानों की जरूरत होगी। यà¥à¤¦à¥à¤§ के पहले à¤à¤• सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ में महज à¤à¤• दरà¥à¤œà¤¨ उड़ानें संà¤à¤µ हो सकी हैं। अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ लगा लीजिठकि इस गति से कितना वकà¥à¤¤ और लग जाà¤à¤—ा। इन 10-12 उड़ानों के लिठमà¥à¤–à¥à¤¯à¤§à¤¾à¤°à¤¾ के मीडिया का à¤à¤• बड़ा वरà¥à¤— सरकार की वाहवाही में जà¥à¤Ÿà¤¾ है। à¤à¤• वरà¥à¤— चà¥à¤ª है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सरकार के नाराज होने का खतरा है। जो सवाल उठरहे हैं, वे बेहद कमजोर आवाज में हैं। आखिर, à¤à¤¾à¤°à¤¤ की वायà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ किस दिन काम आà¤à¤—ी ? (यà¥à¤¦à¥à¤§ के पांचवें दिन इस बारे में पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ का à¤à¤• बयान आया है, जिसमें उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वायà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ को लगाने की बात कही है।) चाहें तो इराक पर कà¥à¤µà¥ˆà¤¤ के कबà¥à¤œà¥‡ को याद कर सकते हैं। तब à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार ने पौने दो लाख लोगों को बाहर निकाला था। उस वकà¥à¤¤ वायà¥à¤¸à¥‡à¤¨à¤¾ ने बड़ी à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆ थी। सबको पता है कि यà¥à¤¦à¥à¤§ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में हर मिनट कीमती है। लोगों को बाहर निकालने का अà¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨ जितना लंबा चलेगा, परेशानी उतनी ही बà¥à¤¤à¥€ जाà¤à¤—ी। शायद सरकार को ये à¤à¥€ पता होगा कि उसके पड़ोसी नेपाल, à¤à¥‚टान, बरà¥à¤®à¤¾, शà¥à¤°à¥€à¤²à¤‚का, अफगानिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨, मालदीव, बांगà¥à¤²à¤¾à¤¦à¥‡à¤¶ à¤à¥€ उमà¥à¤®à¥€à¤¦ लगाठबैठे हैं कि उनके नागरिकों को à¤à¥€ निकाला जाà¤à¤—ा। माफ कीजिà¤à¤—ा, मैं इस विचार से सहमत नहीं हो पाता कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ सरकार लोगों को निकालकर कोई अहसान कर रही है। ये सरकार की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ है। और अगर वह ठीक से जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ नहीं निà¤à¤¾ पा रही है तो इसके लिठयूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ गठमेडिकल छातà¥à¤° और उनके अà¤à¤¿à¤à¤¾à¤µà¤• जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤° नहीं हैं। वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤ƒ ये à¤à¤• मौका है, जब हम देश के यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को मेडिकल डिगà¥à¤°à¥€ के लिठयहां-वहां à¤à¤Ÿà¤•à¤¨à¥‡ की समसà¥à¤¯à¤¾ का वासà¥à¤¤à¤µà¤¿à¤• समाधान कर सकते हैं। à¤à¤• वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤• संदरà¥à¤ में देखें तो ये मामला केवल यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ से 18-20 हजार यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को बाहर निकालने तक सीमित नहीं है, बलà¥à¤•à¤¿ यह देश में मेडिकल à¤à¤œà¥à¤•à¥‡à¤¶à¤¨ के अवसरों की चिंताजनक कमी को रेखांकित करता है। à¤à¤¾à¤°à¤¤ मेडिकल संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ में दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के उन सबसे खराब देशों हैं जहां 24-25 लाख की आबादी पर महज à¤à¤• मेडिकल काॅलेज है, जबकि इस वकà¥à¤¤ इस संखà¥à¤¯à¤¾ को कम से कम दोगà¥à¤¨à¤¾ किठजाने की जरूरत है। और इसके बाद इसमें हर साल नà¥à¤¯à¥‚नतम 5-6 फीसद की सालाना बà¥à¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤°à¥€ की जरूरत है। तब शायद निकट à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में देश को यूकà¥à¤°à¥‡à¤¨ जैसे किसी देश में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के à¤à¤¾à¤µà¥€ डाॅकà¥à¤Ÿà¤°à¥‹à¤‚ के टारà¥à¤šà¤° जैसे हालात का सामना न करना पड़े।