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श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय में हुआ एकदिवसीय अखिल भारतीय संस्कृत शोध सम्मेलन।


श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, हरिद्वार में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहयोग से एक दिवसीय अखिल भारतीय संस्कृत शोध सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन का उद्घाटन प्रातः 10.00 बजे महाविद्यालय के सभागार में किया गया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार। श्री भगवानदास आदर्श संस्कृत महाविद्यालय, हरिद्वार में केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के सहयोग से एक दिवसीय अखिल भारतीय संस्कृत शोध सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन का उद्घाटन प्रातः 10.00 बजे महाविद्यालय के सभागार में किया गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष प्रो. सोमदेव शतांशु ने की। प्रो. सोमदेव शतांशु ने कहा कि संस्कृत भाषा के कारण ही हमारी भारतीय संस्कृति जीवित है। संस्कृत भाषा के शास्त्रॊ में संसार के अनेक गूढ़ तत्वों का वैज्ञानिक विवेचन किया गया। प्रो. शतांशु ने कहा कि संस्कृत का साहित्य राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत है। वेद से लेकर आधुनिक संस्कृत महाकाव्य तक राष्ट्रिय चेतना एवं राष्ट्रभक्ति का वर्णन संस्कृत साहित्य में विस्तार से किया गया है। उद्घाटन सत्र के विशिष्टातिथि उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री गिरीश कुमार अवस्थी ने कहा कि संस्कृत साहित्य मानवीय गुणों से भरा हुआ है। संस्कृत भाषा में सदाचार एवं सत्यनिष्ठा की चर्चा सर्वत्र की गयी है। आनेवाले समय में संस्कृत का भविष्य और अधिक उज्ज्वल है। तत्पश्चात् शोधपत्र वाचन के प्रथम सत्र का प्रारम्भ हुआ। जिसकी अध्यक्षता गुरुकुल कॉगड़ी विश्वविद्यालय के प्राच्य विद्या के संकाय अध्यक्ष प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने की। प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने कहा कि अखिल भारतीय संस्कृत शोध सम्मेलन से निश्चित ही हरिद्वार जनपद के संस्कृत प्रेमी उपकृत हुए हैं, क्योंकि यहॉ जिन विद्वानों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किये है, उनमें संस्कृत के महनीय गुणॊ को समाज के समक्ष उपस्थापित किया गया है। इस सत्र के विशिष्टातिथि हरिद्वार जनपद के संस्कृत सहायक निदेशक डॉ. वाजश्रवा आर्य ने कहा कि आदिकाल से लेकर आजतक संस्कृत भाषा का प्रवाह निरन्तर चल रहा है, क्यों कि इस भाषा में एसे गुण विद्यमान हैं , जिसके कारण यह सदा प्रवाहित होती रहेगी। इस सत्र के प्रमुख वक्ता गुरुकुल कॉगड़ी विश्वविद्यालय के वेदविभाग के प्रो. धर्मेन्द्र कुमार शास्त्री ने कहा कि गीता में कर्मों की कुशलता को योग कहा है। उन्होंने कहा कि निष्काम एवं धार्मिक कर्मो के करने से ही व्यक्ति योग की स्थिति में पहुॕचता है। शोध सम्मेलन में अनेक प्रान्तों के प्राध्यापकों एवं शोधार्थियों ने भाग ग्रहण किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रवीन्द्र कुमार के किया। सभी आगन्तुकों का धन्यवाद ज्ञापन महाविद्यालय के प्रभारी प्राचार्य डॉ. ब्रजेन्द्र कुमार सिंहदेव ने किया। सम्मेलन के समापन सत्र में उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. राजेश कुमार अधाना, संस्कृत भारती के प्रान्त संगठन मन्त्री श्री योगेश विद्यार्थी उपस्थित रहे। सभी विद्वानों ने सम्मेलन की सफलता की भूरिशः प्रशंसा की। डॉ. राजेश कुमार अधाना ने कहा कि आयुर्वेद संस्कृत का ही भाग है। संस्कृत के बिना आयुर्वेद को समझना कठिन है। श्री योगेश विद्यार्थी ने कहा कि सम्मेलन के आयोजन से निश्चित ही संस्कृत के प्रचार-प्रसार में गति आयेगी। समापन सत्र में सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्रें का वितरण किया गया। सम्मेलन में संस्कृत के 50 विद्वानों ने प्रतिभाग किया। शोध सम्मेलन के विशिष्ट वक्ता के रूप में डॉ. नौनिहाल गौतम, डॉ. रामविनय सिंह, डॉ. प्रमोद भारतीय, डॉ. दीपक कोठारी, डॉ. प्रकाश पन्त, डॉ. सोहनलाल बलूनी, डॉ. अन्नपूर्णा, डॉ. निरॕजन मिश्र, डॉ. आलोक सेमवाल, डॉ. अजय परमार, डॉ. कंचन कुमार, डॉ. अनिल त्रिपाठी, डॉ. सर्वेश कुमार तिवारी, डॉ. आशिमा श्रवण, डॉ. मॕजु पटेल आदि उपस्थित रहे

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