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हिंदू नववर्ष समृद्धि एवं समरसता का प्रतीक गुड़ी पड़वा अर्थात भारत में पारंपरिक नववर्ष की शुरुआत


हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है। परमार्थ निकेतन में नव वर्ष की पर्व संध्या पर दीपदान कर विश्व शान्ति की प्रार्थना की। नव वर्ष का स्वागत करते हुये परमार्थ परिवार के सदस्यों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में माँ गंगा के पावन तट पर दीपदान किया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 1 अप्रैल। हिंदू नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रारम्भ होता है। परमार्थ निकेतन में नव वर्ष की पर्व संध्या पर दीपदान कर विश्व शान्ति की प्रार्थना की। नव वर्ष का स्वागत करते हुये परमार्थ परिवार के सदस्यों ने स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के पावन सान्निध्य में माँ गंगा के पावन तट पर दीपदान किया। हिंदू पंचांग, ज्योतिष और धार्मिक आधार पर चैत्र माह की प्रतिपदा तिथि का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी ने चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सम्पूर्ण सृष्टि और समस्त लोकों का सृजन किया था और इसी पावन तिथि को भगवान विष्णु का मत्स्यावतार भी हुआ था। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा नई आशा, आनंद और खुशी का त्योहार है। यह पर्व देश की समग्र संस्कृति और समृद्ध विरासत का भी प्रतीक है। हिंदू शास्त्रों के अनुसार नव संवत्सर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होता है और इसी दिन सृष्टि का प्रारम्भ हुआ। इस पवित्र दिन से हम सभी मिलकर सद्भाव, समरसता, सम्मान और समानता की सृष्टि का प्रारम्भ करें ताकि समाज का तानाबाना व्यवस्थित बना रहे। हम सभी का सम्मान करते हुये अपने मूल से; मूल्यों से; अपनी जड़ों से; अपने धर्म की जड़ों से तथा सांस्कृतिक विचारों से जुड़ें रहे क्योंकि विचार ही सबसे बड़ी वैक्सीन है। विक्रम संवत नववर्ष की शुरुआत को चिह्नित करता है जिसे वैदिक हिंदू, कैलेंडर के रूप में भी जाना जाता है। विक्रम संवत उस दिन से संबंधित है जब सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को हराया और एक नए युग का आह्वान किया। तब खगोलविदों ने चंद्र-सौर प्रणाली के आधार पर एक नया कैलेंडर बनाया जिसमें चैत्र माह हिंदू कैलेंडर का पहला माह है और प्रतिपदा तिथि चैत्र माह के ‘वर्दि्धत चरण’ का पहला दिन है। जिसमें चंद्रमा का दृश्य हर रात बड़ा होता जाता है इसलिये इसे उन्नति और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। प्रतिपदा की तिथि ऋतु परिवर्तन का प्रतीक है। इस समय चारों ओर पूरे वातावरण में भीनी-भीनी सुगंध फैली होती है, नयी फसलें भी पककर तैयार हो जाती हैं जिसके भारत जैसे कृषि प्रधान देश में नवजीवन का संचार होता है इसलिये हिंदू सौर नववर्ष को समृद्धि और समरसता का प्रतीक भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस समय नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं इसलिये किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने का यह शुभ अवसर होता है।

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