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गुरुकुल तो स्थाई हैं किन्तु विचारों का आन्दोलन तो पूरे विश्व में जाएगा : मोरारी बापू


पतंजलि विश्वविद्यालय में ‘मानस गुरुकुल’ विषय पर आयोजित रामकथा का शुभारंभ हनुमान चालिसा से हुआ। कार्यक्रम में पूज्य मोरारी बापू ने कहा कि रामनाम सरल तो है किन्तु यह महामंत्र है, बीजमंत्र है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार 03, अप्रैल। पतंजलि विश्वविद्यालय में ‘मानस गुरुकुल’ विषय पर आयोजित रामकथा का शुभारंभ हनुमान चालिसा से हुआ। कार्यक्रम में मोरारी बापू ने कहा कि रामनाम सरल तो है किन्तु यह महामंत्र है, बीजमंत्र है। कलियुग में रामनाम संकीर्तन सबसे श्रेष्ठ है। मानस गुरुकुल विषय के क्रम में मोरारी बापू ने गुरु, गुरुकुल, गुरु-शिष्य परंपरा की महत्ता को बताया। उन्होंने कहा कि गुरुकुल यदि आध्यात्मिक तौर पर कोई अभ्यासक्रम निश्चित करता है तो उसकी शुरूआत हमारी पुरातन सनातन परम्परा से करता है। उन्होंने बताया कि गुरुकुल सर्वप्रथम हमें धर्म प्रदान करता है, जगत में अर्थ की भी आवश्यकता है तो गुरुकुल पारमार्थिक अर्थ भी देता है, गुरुकुल हमें व्यक्ति के अनुसार कार्य भी देता है और अंततः गुरुकुल हमें मोक्ष भी देता है। बापू ने बताया कि रामचरित मानस में गुरुकुल कोई शब्द ही नहीं है, वहाँ गुरु गृह का उल्लेख है। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों से पढ़ने आए पतंजलि गुरुकुलम् व पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कि आप यहाँ इस मानसिकता से आएँ कि गुरु के गृह आ रहे हैं। गुरुः गृह और गुरुगृह में मौलिक अन्तर है। गुरुः गृह सांसारियों का घर है जिसमें भोग की प्रधानता रहती है वहीं गुरुगृह संन्यासियों का घर है जहाँ योग की प्रधानता होती है। संसारियों के घर में किसी न किसी मुद्दे पर संघर्ष की स्थिति रहती है। गुरुगृह में शान्ति, प्रसन्नता व समर्पण की प्रधानता रहती है। संसारियों के घर में रिश्ते-नाते आदि सम्बंध होते हैं और सम्बंध में बंधन रहता है वहीं गुरुगृह एक आध्यात्मिक सम्बंध प्रदान करता है जिसमें निश्चित दूरी रहती है, स्वतंत्रता रहती है। हमारे देश में कई विचारधाराएँ आईं जो गुरु का निषेध करती हैं कि गुरु की कोई जरूरत नहीं। गुरुजनों को एजेंट बताया गया, नास्तिकतावाद उभरा। लेकिन संन्यास की यह परंपरा गुरु की पावन परंपरा है इसलिए यहाँ द्वैत आवश्यक है। गुरु बिना गति नहीं है। रामचरित मानस का प्रथम प्रकरण गुरु वंदना से ही प्रारंभ होता है। बालकाण्ड व अयोध्याकाण्ड में गुरुकुल की महत्ता को बताया गया है। गुरुकुल में मैत्री करना सिखाया गया है जिसका वर्णन किश्किंधा काण्ड में मिलता है। पूज्य बापू ने कहा कि गुरुकुल तो स्थाई हैं किन्तु विचारों का आन्दोलन तो पूरे विश्व में जाएगा। इस अवसर पर स्वामी रामदेव ने कहा कि रामकथा का यह पावन अनुष्ठान और चैत्र नवरात्र में एक समर्थ गुरु का आश्रय परम सौभाग्य की बात है। उन्होंने कहा कि गुरु सत्ता व प्रभु सत्ता के साथ हमारी एकात्मता के स्वर हमारे वेदों ने गाए हैं। वेदों में कहा गया है कि हे मेरे गुरु, मेरे परमात्मा मैं तुझमें इतना खो जाऊँ कि मेरा पूरा अस्तित्व तुझमें विलीन हो जाए। मैं आपके आशीषों से, आपके उपकारों से इतना उपकृत हूँ कि बिना माँगे ही मेरी सारी मनोकामनाएँ पूर्ण हो गईं। उन्होंने कहा कि वाल्मीकि रामायण, रामचरित मानस, श्रीमद्भगवदगीता आदि अभी तक जितने भी कालजयी ग्रन्थ लिखे गए हैं, ये मात्र किसी एक व्यक्ति का पुरुषार्थ नहीं हो सकता। इसके पीछे पूरी समष्टि में भगवान का विधान कार्य कर रहा है। उस विधान के अनुरूप, युगधर्म के अनुरूप पूज्य बापू जैसे समर्थ गुरु हमारे साथ हैं यह पतंजलि योगपीठ ही नहीं पूरे भारत का सौभाग्य है। उन्होंने कहा कि बापू हमारे लिए पिता तुल्य, पथ-प्रदर्शक, सनातन संस्कृत के गौरव तथा ऋषि परम्परा के प्रतिनिधि हैं। हमे ऐसे समर्थ गुरु की सन्निधि में हमें इनका अकिंचन दासत्व, इनका अनुग्रह, इनकी शरणागति का लाभ मिला, यह हमारे जीवन का सौभाग्य है। पूज्य स्वामी जी महाराज ने राजस्थानी भजन प्रस्तुत कर मन मोह लिया।

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