विरासत आरà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड हेरीटेज फेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤² 2022 के छठा दिन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ ’विरासत साधना’ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के साथ हà¥à¤†à¥¤ विरासत साधना कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अंतरà¥à¤—त देहरादून के 12 सà¥à¤•à¥‚लों ने पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤— किया जिसमें कà¥à¤² 17 बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संगीत, गायन और नृतà¥à¤¯ पर अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दी।
रिपोर्ट - ऑल नà¥à¤¯à¥‚ज़ बà¥à¤¯à¥‚रो
देहरादून-20 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2022- विरासत आरà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड हेरीटेज फेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤² 2022 के छठा दिन की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ ’विरासत साधना’ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के साथ हà¥à¤†à¥¤ विरासत साधना कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अंतरà¥à¤—त देहरादून के 12 सà¥à¤•à¥‚लों ने पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤— किया जिसमें कà¥à¤² 17 बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संगीत, गायन और नृतà¥à¤¯ पर अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दी। विरासत अपने इस कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के माधà¥à¤¯à¤® से यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को उनकी जड़ों से जोड़ना और à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ को जीवित रखने का पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ कर रहा है। शो का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ सेंट कबीर अकादमी के अकà¥à¤·à¤¤ जोशी थे जिनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ जाइलोफोन पर अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ देकर मैजà¥à¤¦ दरà¥à¤¶à¤•à¥‹ को आनंदित कर दिया। विरासत साधना कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® मे छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने à¤à¤°à¤¤à¤¨à¤¾à¤Ÿà¥à¤¯à¤® और कथक नृतà¥à¤¯ पर अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ दी वही सà¥à¤µà¤° गायन में राग बागेशà¥à¤°à¥€ और राम का गà¥à¤£ गान जैसे गायन से छातà¥à¤°à¥‹à¤‚ ने दरà¥à¤¶à¤•à¥‹à¤‚ को मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ कर दिया। विरासत साधना में पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤à¤¾à¤— करने वाले सà¥à¤•à¥‚लों में आईटी चिलà¥à¤¡à¥à¤°à¤¨ à¤à¤•à¥‡à¤¡à¤®à¥€-नृतà¥à¤¯ किंकीनी, à¤à¤‚कार डांस सà¥à¤•à¥‚ल, ओलंपस हाई सà¥à¤•à¥‚ल, द ओà¤à¤¸à¤¿à¤¸, सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ वीणा महाराज मà¥à¤¯à¥‚जिक à¤à¤‚ड डांस à¤à¤•à¥‡à¤¡à¤®à¥€, गली मà¥à¤¯à¥‚जिक à¤à¤•à¥‡à¤¡à¤®à¥€, तà¥à¤²à¤¾à¤œ इंटरनेशनल सà¥à¤•à¥‚ल, दिलà¥à¤²à¥€ पबà¥à¤²à¤¿à¤• सà¥à¤•à¥‚ल, सेंट जूडà¥à¤¸ सà¥à¤•à¥‚ल, हिल फाउंडेशन सà¥à¤•à¥‚ल, सेंट कबीर अकादमी और गà¥à¤°à¤¾à¤«à¤¿à¤• à¤à¤°à¤¾ ने इस कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में à¤à¤¾à¤— लिया। सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• संधà¥à¤¯à¤¾ कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® का शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठदीप पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¨ के साथ हà¥à¤† à¤à¤µà¤‚ कालू राम बमानिया दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लोक संगीत पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया गया। कालू राम बमानिया मधà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के मालवा कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के à¤à¤• लोक गायक हैं और वे सूफी, à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ और पारंपरिक लोक गीत को गाना पसंद करते है। वे अपने अनोखे तरीके से कबीर à¤à¤œà¤¨, मीरा, सूरदास, गोरखनाथ कि रचना à¤à¥€ गाते हैं। उनका मानना है कि कबीर à¤à¤• संपूरà¥à¤£ दरà¥à¤¶à¤¨ है और à¤à¤—वान सà¤à¥€ के à¤à¥€à¤¤à¤° हैं जो दूसरों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ अचà¥à¤›à¤¾à¤ˆ à¤à¤—वान को सदेव जगाये रखता है। वही सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में शिंजिनी कà¥à¤²à¤•à¤°à¥à¤£à¥€ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कथक नृतà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ किया गया। शिंजिनी कà¥à¤²à¤•à¤°à¥à¤£à¥€ कालका बिंदादीन वंश की नौवीं पीà¥à¥€ में जनà¥à¤®à¥€ है à¤à¤µà¤‚ वे पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ कथक नरà¥à¤¤à¤• सà¥à¤µ पं बिरजू महाराज की पोती हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कथक नृतà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ अपने दादा से पांच साल की उमà¥à¤° में सीखना शà¥à¤°à¥‚ किया था। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ में खजà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥‹ नृतà¥à¤¯ महोतà¥à¤¸à¤µ, ताज महोतà¥à¤¸à¤µ, कालिदास महोतà¥à¤¸à¤µ, कथक महोतà¥à¤¸à¤µ आदि जैसे पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ित समारोहों में अपने नृतà¥à¤¯ का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ किया है। वही अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° पर नà¥à¤¯à¥‚यॉरà¥à¤•, सैन फà¥à¤°à¤¾à¤‚सिसà¥à¤•à¥‹, हà¥à¤¯à¥‚सà¥à¤Ÿà¤¨, मिनियापोलिस, बैंकॉक, तेहरान जैसे जगहो में à¤à¥€ अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ दिठहैं। शिंजिनी कà¥à¤²à¤•à¤°à¥à¤£à¥€ को अपने दादाजी की नृतà¥à¤¯à¤•à¤²à¤¾à¤“ं जैसे नृतà¥à¤¯ केली, होली उतà¥à¤¸à¤µ, कृषà¥à¤£à¤¯à¤¨ और लोहा का हिसà¥à¤¸à¤¾ बनने का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ मिला है। शिंजिनी कà¥à¤²à¤•à¤°à¥à¤£à¥€ ने आज के अपने पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ को अपने गरू और नाना जी सà¥à¤µ प बिरजॠमहाराज को शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚जलि सà¥à¤µà¤°à¥‚प à¤à¥‡à¤Ÿ किया जो 13 मातृ जैत ताला है। इस पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ में सितार पर विशाल मिशà¥à¤°à¤¾, वोकल में जकी खान, पदांत पर आरà¥à¤¯à¤µ आनंद à¤à¤µà¤‚ तबला पर शà¥à¤ महाराज थे। आज के सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अंतिम पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में आमिर अली खान दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सरोद वादन कि पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ हà¥à¤ˆà¥¤ आमिर अली खान à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² के संगीतकारों के à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ परिवार से हैं और वे अपने परिवार की सातवीं पीà¥à¥€ के संगीतकार हैं। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने दादा उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ अबà¥à¤¦à¥à¤² लतीफ खान से सरोद बजाना शिखा जो à¤à¤• पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ सारंगी वादक थे। उनके पिता नफीज अहमद खान, à¤à¤• तबला वादक हैं और जो अकà¥à¤¸à¤° अपने बेटे के साथ जाते हैं। आमिर अली खान जी को सरोद से लगाव तब हà¥à¤† जब उनके पिता ने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ अमजद अली खान के संगीत कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में ले गà¤, जिनसे वे सरोद वादन सीखना चाहते थे, लेकिन चूंकि वे अपनी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¬à¤¦à¥à¤§à¤¤à¤¾à¤“ं में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ थे, इसलिठआमिर ने अपने बड़े à¤à¤¾à¤ˆ उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ के कà¥à¤¶à¤² मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ में सरोद बजाना सीखा। आज के कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जै उजाला, विलवत तीन ताल à¤à¤µà¤‚ मधà¥à¤²à¥‡ तीन ताल पर अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ दी। इस 15 दिवसीय महोतà¥à¤¸à¤µ में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤‚त से आठहà¥à¤ संसà¥à¤¥à¤¾à¤“ं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤Ÿà¥‰à¤² à¤à¥€ लगाया गया है जहां पर आप à¤à¤¾à¤°à¤¤ की विविधताओं का आनंद ले सकते हैं। मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से जो सà¥à¤Ÿà¤¾à¤² लगाठगठहैं उनमें à¤à¤¾à¤°à¤¤ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के वà¥à¤¯à¤‚जन, हथकरघा à¤à¤µà¤‚ हसà¥à¤¤à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª के सà¥à¤Ÿà¥‰à¤², अफगानी डà¥à¤°à¤¾à¤ˆ फà¥à¤°à¥‚ट, पारंपरिक कà¥à¤°à¥‹à¤•à¤°à¥€, à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¡à¤¨ कà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿ à¤à¤µà¤‚ नागालैंड के बंबू कà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿ के साथ अनà¥à¤¯ सà¥à¤Ÿà¥‰à¤² à¤à¥€ हैं। रीच की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ 1995 में देहरादून में हà¥à¤ˆ थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोतà¥à¤¸à¤µ का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ की कला, संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और विरासत के मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को बचा के रखा जाठऔर इन सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जन-जन तक पहà¥à¤‚चाया जाà¤à¥¤ विरासत महोतà¥à¤¸à¤µ कई गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ कलाओं को पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¤ करने में सहायक रहा है जो दरà¥à¤¶à¤•à¥‹à¤‚ के कमी के कारण विलà¥à¤ªà¥à¤¤ होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृतà¥à¤¯, शिलà¥à¤ª, पेंटिंग, मूरà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤²à¤¾, रंगमंच, कहानी सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾, पारंपरिक वà¥à¤¯à¤‚जन, आदि को सहेजने à¤à¤µà¤‚ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• जमाने के चलन में लाने में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆ है और इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ वजह से हमारी शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ और समकालीन कलाओं को पà¥à¤£à¤ƒ पहचाना जाने लगा है।