Latest News

परमार्थ निकेतन में दो दिवसीय संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन


परमार्थ निकेतन में राष्ट्रीय अभ्युदय का अनवरत स्रोत विषय पर दो दिवसीय संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन परमार्थ निकेतन, वैश्विक संस्कृत मंच और डा शिवानन्द नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग के संयुक्त तत्वाधान में किया गया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 27 अप्रैल। परमार्थ निकेतन में राष्ट्रीय अभ्युदय का अनवरत स्रोत विषय पर दो दिवसीय संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का आयोजन परमार्थ निकेतन, वैश्विक संस्कृत मंच और डा शिवानन्द नौटियाल राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय कर्णप्रयाग के संयुक्त तत्वाधान में किया गया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, महापौर ऋषिकेश श्रीमती अनीता ममगाई जी, राष्ट्रीय अध्यक्ष वैश्विक संस्कृत मंच प्रोफेसर विष्णुपद महापात्र जी, लाल बहादुर शास्त्री विश्वविद्यालय दिल्ली से श्री केदार प्रसाद पुरोहित जी, डा जोरावर सिंह जी और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर संस्कृत राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि संस्कृत भाषा दिव्यता और भव्यता का संगम है। संस्कृत भाषा दिव्य भाषा है; भव्य भाषा है; वेद भाषा है और देव भाषा है। संस्कृत हमारी मातृ भाषा है और भाषाओं का मूल भी है। वह वैकल्पिक भाषा नहीं बल्कि वैश्विक भाषा है क्योंकि कई भाषाओं की जन्मदात्री है संस्कृत भाषा। स्वामी जी ने कहा कि संस्कृत को हमारे पाठ्यक्रमों में एक वैकल्पिक भाषा के रूप में नहीं बल्कि वैश्विक भाषा के रूप में स्थापित करने की जरूरत है क्योंकि यह भाषा भारतीय संस्कृति और हिंदू संस्कृति की प्राथमिक, साहित्यिक और दिव्य भाषा है। वर्तमान समय में संस्कृत भाषा को कंप्यूटर के लिये उपयुक्त भाषा माना गया है। युवाओं को संदेश देते हुये कहा कि आईये संस्कृत को अपने जीवन और पाठ्यक्रम दोनों में उपयुक्त स्थान प्रदान करें। स्वामी जी ने कहा कि भारत में पाँच हजार साल पहले संस्कृत ही भाषा के रूप में थी सभी प्रबुद्ध जन संस्कृत बोलते थे उनके उद्बोधन, संगीत और कविताओं में संस्कृत ही थी तब से संस्कृत भाषा के रूप में प्रकाशमान है। हमें संस्कृत भाषा को जीवंत बनायें रखना होगा क्योंकि उसमें हमारे संस्कार ही नहीं बल्कि संस्कृति भी समाहित है। भाषा के बल पर हम अपनी भावनाओं को और अपनी संस्कृति को जीवंत बनाये रख सकते है। उन्होंने कहा कि जो खोया उसका गम नहीं, लेकिन जो बचा है वह किसी से कम नहीं इसलिये संस्कृत के उत्थान के लिये मिलकर कार्य करना होगा। आने वाले 10 वर्षो में संस्कृत अपने गौरव को प्राप्त कर सकती है क्योंकि संस्कृत कम्प्यूटर के लिये भी उपयुक्त भाषा मानी जा रही है।

Related Post