विरासत आरà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड हेरिटेज फेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤² 2022 के पंदà¥à¤°à¤¹à¤µà¥‡à¤‚ दिन à¤à¤µà¤‚ समापन कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ डॉ. बी. आर. अंबेडकर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¡à¤¿à¤¯à¤® (कौलागॠरोड) देहरादून में दीप पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¨ के साथ हà¥à¤† à¤à¤µà¤‚ लायक राम जौनसार बावर संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ रंगमंच के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जौनसार जनजाति के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ नृतà¥à¤¯ तांडी, हारूल à¤à¤µà¤‚ à¤à¥‡à¤‚ता जैसे लोक गीतों की पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ नृतà¥à¤¯ के साथ दिया गया।
रिपोर्ट - allnewsbharat.com
देहरादून-29 अपà¥à¤°à¥ˆà¤² 2022- विरासत आरà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड हेरिटेज फेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤² 2022 के पंदà¥à¤°à¤¹à¤µà¥‡à¤‚ दिन à¤à¤µà¤‚ समापन कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® की शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ डॉ. बी. आर. अंबेडकर सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¡à¤¿à¤¯à¤® (कौलागॠरोड) देहरादून में दीप पà¥à¤°à¤œà¥à¤µà¤²à¤¨ के साथ हà¥à¤† à¤à¤µà¤‚ लायक राम जौनसार बावर संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ रंगमंच के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जौनसार जनजाति के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ नृतà¥à¤¯ तांडी, हारूल à¤à¤µà¤‚ à¤à¥‡à¤‚ता जैसे लोक गीतों की पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ नृतà¥à¤¯ के साथ दिया गया। इस पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ में कलाकार जौनसार के वेशà¤à¥‚षा à¤à¤µà¤‚ पोशाक में दिखें। इस समूह में 20 कलाकारों ने à¤à¤• साथ अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दी और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के पारंपरिक हाकलियात सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• à¤à¤µà¤‚ वादà¥à¤¯ यंतà¥à¤° रणसिंधा, ढोल à¤à¤µà¤‚ दमाऊ का उपयोग किया। वही आखरी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जौनसार के पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हाथी नृतà¥à¤¯ का à¤à¥€ मंचन किया। हाथी नृतà¥à¤¯ जो दिवाली उतà¥à¤¸à¤µ के दौरान मनाया जाता है और यह आमतौर पर पारंपरिक दिवाली के à¤à¤• महीने के बाद पहाड़ों में लोग मनाते है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ उन दिनों कटाई में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ होते हैं। लायक राम जौनसार बावर संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ रंगमंच के पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ में लायक राम दलनायक, मायाराम ढोलवादक और सनà¥à¤¨à¥€ दयाल लोकगायक थें। सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ के अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¤¾à¤°à¤¤ के मशहूर ग़ज़ल गायक तलत अज़ीज़ ने अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ दी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µ जगजीत जी को याद किया à¤à¤µà¤‚ ’कैसे सà¥à¤•à¥‚न पाउ’ ग़ज़ल पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ की। अनकी अगली गजल आज जाने कि जिद न करो, उसके बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यूॅ ही पहलू में बैठे रहो, कà¤à¥€ खà¥à¤µà¤¾à¤¬ में या खà¥à¤¯à¤¾à¤² में, और खूब सूरत हैं आखें तेरी रात जागना छोड़ दे पर अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ दी। उनके साथ सा रे गा मा फेम जीतू शंकर तबले पर थे, गिटार रतन पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¾ ने बजाया, कीबोरà¥à¤¡ अजय सोनी ने, अतà¥à¤² शंकर ने बांसà¥à¤°à¥€ बजाई जबकि हारमोनियम खà¥à¤¦ तलत अजीज साहब ने बजाया। बताते चले कि तलत अजी़ज़ का जनà¥à¤® हैदराबाद में संगीत और उरà¥à¤¦à¥‚ साहितà¥à¤¯ के पà¥à¤°à¥‡à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के परिवार में हà¥à¤† था। तलत अज़ीज़ ने संगीत में अपना पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ किराना घराने से लिया à¤à¤µà¤‚ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ समद खान और फिर उसà¥à¤¤à¤¾à¤¦ फैयà¥à¤¯à¤¾à¤œ अहमद खान से पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ किया। पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¶à¤¿à¤•à¥à¤·à¤£ के बाद, अजीज ने गजल वादक मेहदी हसन से संगीत सीखा। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने विदेशों में à¤à¥€ अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दी है जिसमें 1986 में अमेरिका और कनाडा के à¤à¤• संगीत कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤¾à¤°à¤¤ का पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤˜à¤¤à¥à¤µ किया और कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ में अपना मंच साà¤à¤¾ कर अपनी पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿ दी। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना पहला à¤à¤²à¥à¤¬à¤® फरवरी 1980 में जगजीत सिंह के साथ रिलीज़ किया। जगजीत सिंह ने इस à¤à¤²à¥à¤¬à¤® की रचना की थी जिसका शीरà¥à¤·à¤• ’जगजीत सिंह पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करते है तलत अजीज को’ था। उसके बाद 1981 में खयà¥à¤¯à¤¾à¤® साहब के संगीत निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¤• ने तलत अजीज को कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤• फिलà¥à¤® उमराव जान में पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ ग़ज़ल ज़िंदगी जब à¤à¥€ पेश किया और इसके बाद बाज़ार में फ़िर छिड़ी रात में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लता मंगेशकर के साथ गाया। तलत अजीज ने कई फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚ में गाया है और टीवी धारावाहिकों के लिठसंगीत à¤à¥€ तैयार किया है साथ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने फिलà¥à¤®à¥‹à¤‚, धारावाहिकों में अà¤à¤¿à¤¨à¤¯ à¤à¥€ किया है। इस बार अपà¥à¤°à¥ˆà¤² महीने में देहरादून का मौसम गरà¥à¤® होने की वजह से लोग हर शाम विरासत में सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के साथ-साथ कà¥à¤²à¥à¤«à¥€ और शिकंजी का लà¥à¤¤à¥à¥ž उठा रहे थे। इस बार विरासत में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤‚जनों का बोलबाला रहा जिसमें मà¥à¤–à¥à¤¯ रà¥à¤ª से राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ वà¥à¤¯à¤‚जन, पंजाबी वà¥à¤¯à¤‚जन, उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के पहाड़ी पकवान, हैदराबाद की मशहूर बिरियानी के साथ-साथ à¤à¥‡à¤²à¤ªà¥à¤°à¥€, शिकंजी कà¥à¤²à¥à¤«à¥€, पानी पà¥à¤°à¥€ à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ पकवान के सà¥à¤Ÿà¤¾à¤² लगाठगठथे। दो साल के लॉकडाउन के बाद देहरादून में विरासत पहला à¤à¤¸à¤¾ आयोजन था जहां लोगो को हर पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤à¤‚ मिल रही थी। विरासत में लोग मनोरजंन के साथ-साथ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ से जà¥à¤¡à¥‡à¤¼ हà¥à¤ वसà¥à¤¤à¥à¤“ं कि खरीदारी कर à¤à¥€ कर रहे थे à¤à¤µà¤‚ अपने परिवार के साथ शाम में दो पल सà¥à¤•à¥‚न के साथ बिता à¤à¥€ रहे थे। à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤‚जनों में हैदराबादी बिरयानी à¤à¤µà¤‚ चिकन के कई पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के वà¥à¤¯à¤‚जन यà¥à¤µà¤¾à¤“ं को अपनी ओर आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ कर रहा था वही हर शाम सैकड़ों की तादाद में लोग डिनर करने विरासत के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में पहà¥à¤‚च रहे थे। विरासत में आपको बचà¥à¤šà¥‡ -बूà¥à¥‡ सब अपने हाथ में कà¥à¤²à¥à¤«à¥€ लेकर घूमते नजर आ रहे थे। इस बार विरासत में देहरादून वासियों को रंग-बिरंगे सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ के साथ-साथ बहà¥à¤¤ कà¥à¤› देखने को मिला। कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ में मà¥à¤–à¥à¤¯ रूप से कà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿ विलेज, फूड फेसà¥à¤Ÿà¤¿à¤µà¤², कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤•à¤² मà¥à¤¯à¥‚जिक à¤à¤‚ड डांस, फोक मà¥à¤¯à¥‚जिक à¤à¤‚ड डांस, करà¥à¤¨à¥à¤¸à¤Ÿ के साथ-साथ कà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿ वरà¥à¤• शॉप, विंटेज à¤à¤‚ड कà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¿à¤• कार à¤à¤‚ड बाइक रैली à¤à¤µà¤‚ कà¥à¤µà¤¿à¤œ आदि कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® पà¥à¤°à¤®à¥à¤–à¥à¤¯ रूप से छाया रहा। रीच की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ 1995 में देहरादून में हà¥à¤ˆ थी, तबसे रीच देहरादून में विरासत महोतà¥à¤¸à¤µ का आयोजन करते आ रहा है। उदेश बस यही है कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ की कला, संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ और विरासत के मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को बचा के रखा जाठऔर इन सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• मूलà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को जन-जन तक पहà¥à¤‚चाया जाà¤à¥¤ विरासत महोतà¥à¤¸à¤µ कई गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ कलाओं को पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¤ करने में सहायक रहा है जो दरà¥à¤¶à¤•à¥‹à¤‚ के कमी के कारण विलà¥à¤ªà¥à¤¤ होने के कगार पर था। विरासत हमारे गांव की परंपरा, संगीत, नृतà¥à¤¯, शिलà¥à¤ª, पेंटिंग, मूरà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤²à¤¾, रंगमंच, कहानी सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤¾, पारंपरिक वà¥à¤¯à¤‚जन, आदि को सहेजने à¤à¤µà¤‚ आधà¥à¤¨à¤¿à¤• जमाने के चलन में लाने में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆ है और इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ वजह से हमारी शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ और समकालीन कलाओं को पà¥à¤£à¤ƒ पहचाना जाने लगा है।