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सनातन धर्म निष्ठ तीर्थ रक्षा मंच की शिकायत के बाद तत्कालीन सचिव हरीश चंद्र सेमवाल के द्वारा आयुक्त गढ़वाल को जांच सौंपी


बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति जिसका नाता सीधे-सीधे केवल उत्तराखंड से ही नहीं बल्कि देश व विदेश के करोड़ों लोगों की आस्था व श्रद्धा से जुड़ा हुआ है।दरअसल मामला है श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी का।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के सीईओ बीडी सिंह नियमों की धज्जियां उड़ा कर दो साल के भीतर ही शासन की आंख में धूल झोंक कर AE का कर दिया EE पर प्रमोशन…कर दिया है।वित्तीय अनियमितताओं के चलते शासन ने इस आईएफएस अधिकारी के ऊपर जांच का शिकंजा कस दिया है सनातन धर्म निष्ठ तीर्थ रक्षा मंच की शिकायत के बाद तत्कालीन सचिव हरीश चंद्र सेमवाल के द्वारा आयुक्त गढ़वाल को जांच सौंपी गई थी कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह पर आरोप लगाया गया था कि यह आईफ़एस अधिकारी अपने मनमाने ढंग से शासन की आंखों में धूल झोंक कर कामयाब होने के चलते 10 सालों से सरकार के प्रतिनियुक्ति के नियमों से अलग हटकर ऐसे संस्थान में जमा हुआ है इसके साथ ही कई वित्तीय अनियमितताओं का भी इनके ऊपर आरोप लगाया गया है जिसके ऊपर जांच गतिमान है,बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति जिसका नाता सीधे-सीधे केवल उत्तराखंड से ही नहीं बल्कि देश व विदेश के करोड़ों लोगों की आस्था व श्रद्धा से जुड़ा हुआ है।दरअसल मामला है श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी का। इस पद पर पिछले 10 वर्षों से आई एफ एस अधिकारी बीडी सिंह का स्टाइल मठ मंदिरों में किसी मठाधीश से कम नहीं है सूत्र बताते है कि सरकार के नियम कानूनों से ऊपर उठकर इस अधिकारी का मंदिर समिति में अपना नियम चलता है। बड़े दानियों से दान के नाम पर धन लेकर अपने भ्र्ष्टाचार को दबाने का काम किया जा रहा है।शासन से इस अधिकारी के ऊपर वित्तीय अनियमितताओं को लेकर जांच का जिम्मा गढ़वाल मंडल आयुक्त को सौंपा गया है जांच अभी प्रक्रियाधीन है। एक ही समान कार्य करने वाले 2 कार्मिकों को किस हिसाब से वेतन मिलना है इसका निर्धारण सरकारी नियम से अलग हटकर के राजशाही के अंदाज में इस अधिकारी के द्वारा आदेश दिए जाते हैं। पिछले 10 सालों से मंदिर समिति में वित्तीय अनियमितताओं का खेल अपने परवान चढ़ रहा है । 1939 के श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर अधिनियम में अधीनस्थ मंदिरों से हटकर कांग्रेस शासनकाल में मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष व कांग्रेस के कद्दावर नेता पूर्व कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल के साथ मिलीभगत कर पौड़ी के दूरस्थ इलाके में बिनसर मंदिर में करोड़ों का खजाना लुटाया गया है। इस खजाने को लुटाने में सीईओ साहब ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है । खजाने को लुटाने के लिए ढूंढा गया विश्वासपात्र अभियंता। नियमों की धज्जियां उड़ा कर तमाम नियमों को धता बताते हुए शासन की आंख में धूल झोंक कर समिति के सीईओ मंदिर समिति के भीतर एक सहायक अभियंता को 2 साल के भीतर ही अधिशासी अभियंता बनाने में कामयाब होते चले गए और फिर चलता गया नोटों का खेल। 2017 में कांग्रेस शासन काल जाने के बाद गोदियाल तो हो गए सत्ता से बाहर लेकिन इन दोनों अधिकारियों का खेल चलता रहा बिनसर मंदिर के नाम पर। निर्माण से संबंधित लोक निर्माण विभाग, ग्रामीण निर्माण विभाग, समेत तमाम विभागों में सहायक अभियंता से अधिशासी अभियंता में प्रमोशन के लिए कम से कम 8 साल का समय लगने की शर्त होती है इसके अलावा अधिशासी अभियंता किसी डिवीजन के खुलने पर ही नियुक्त होता है अर्थात डिवीजन का जिम्मेदार अधिकारी और उस डिवीजन में कम से कम 20 करोड़ से ऊपर का वर्क लोड होना चाहिए यह बताता है सरकारी नियम लेकिन मंदिर समिति में इन नियमों से ऊपर उठकर के नियम चल रहे हैं। क्योंकि वित्तीय अनियमितताओं पर बैठी जांच का जिन बोतल से कब बाहर निकलेगा यह तो समय भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बात तो तय है कि समिति के भीतर यह अधिकारी अपने ऊंची पहुंच के चलते शासन व मंत्रियों की आंख में धूल झोंकने में कामयाब जरूर हो जाता है। खेल चल रहा है मंदिर समिति के भीतर सीईओ जेठा भाई और अधिशासी अभियंता छोटा भाई अनिल ध्यानी का। बड़ा सवाल यह है कि आखिर एक आईएफ़एस अधिकारी 10 सालों से कुंडली मारकर प्रतिनियुक्ति पर अपने मूल वन विभाग से हटकर मंदिर समिति में क्यों जमा रहना चाहता है। वित्त पटल पर भी अपने पसंद का एक लेखाकर बिठाया हुआ है जहाँ करोड़ो का गोलमाल होता है। ईमानदार अधिकारियों को जबरन प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है।अब यह देखना बहुत दिलचस्प होगा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आस्था का विशेष केंद्र बद्रीनाथ केदारनाथ मैं इस तरह की गड़बड़ी के बाद अब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी क्या एक्शन लेते हैं क्योंकि इससे पूर्व मुख्यमंत्री के द्वारा दो आईएफएस अधिकारियों को अभी तक सस्पेंड कर दिया गया है अब देखना होगा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी कब कार्रवाई का चाबुक बेलगाम अफसरशाही पर चलाते हैं।

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