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भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के पुरोधा आदिगुरू शंकराचार्य - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


सनातन संस्कृति के पुरोधा व सनातन धर्म के ज्योतिर्धर जगद्गुरू शंकराचार्य जी के प्राकट्य दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में प्रातःकालीन विश्व शान्ति यज्ञ में महन्त हठयोगी , कथा व्यास रामेश्वरदास बापू, महंत ऋषिश्वरानन्द, महामंडलेश्वर स्वामी हरि चेतनानन्द, साध्वी भगवती सरस्वती, महंत कमलदास और योगाचार्य विमल बधाव ने जगद्गुरू शंकराचार्य का पूजन और विश्व शान्ति हवन में आहुतियां समर्पित कर विश्व शान्ति की प्रार्थना

रिपोर्ट  - à¤‘ल न्यूज़ ब्यूरो

6 मई, ऋषिकेश। सनातन संस्कृति के पुरोधा व सनातन धर्म के ज्योतिर्धर जगद्गुरू शंकराचार्य जी के प्राकट्य दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के पावन सान्निध्य में प्रातःकालीन विश्व शान्ति यज्ञ में महन्त हठयोगी , कथा व्यास रामेश्वरदास बापू, महंत ऋषिश्वरानन्द, महामंडलेश्वर स्वामी हरि चेतनानन्द, साध्वी भगवती सरस्वती, महंत कमलदास और योगाचार्य विमल बधाव ने जगद्गुरू शंकराचार्य का पूजन और विश्व शान्ति हवन में आहुतियां समर्पित कर विश्व शान्ति की प्रार्थना के साथ विश्वाभिषेक कर पर्यावरण को संरक्षित करने का संदेश दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि वर्तमान समय में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को अगर किसी चीज की आवश्यकता है तो वह है ‘‘शान्ति’’ और आदि गुरू शंकराचार्य जी का तो जीवन ही यज्ञ था ‘इदम् राष्ट्राय स्वाहा’’ उन्होंने राष्ट्र में एकता और शान्ति बनाये रखने के लिये अपने को समर्पित किया। आध्यात्मिकता के शिखर पर विराजमान स्वयं सागर सी गहराई और गंगा सी पवित्रता को जीने वाले जगद्गुरू, शंकराचार्य जी ने भारत के चारों दिशाओं में चार पीठ ज्योर्तिपीठ, श्रृंगेरी शारदा पीठ, द्वारिका पीठ, गोवर्धन पीठ को स्थापित कर सनातन संस्कृति को जीवंत बनाये रखने हेतु अभूतपूर्व योगदान दिया। स्वामी जी ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदिगुरू शंकराचार्य ने उत्तर भारत में हिमालय की गोद में स्थित बद्रीनाथ धाम में दक्षिण भारत के ब्राह्मण पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। वहीं पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम के पुजाारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के ब्राह्मण पुजारी को रखा, उन्होंने पूजा हेतु ‘केसर’ कश्मीर से तो ‘नारियल’ केरल से मंगवाये जाने की प्रथा चलायी जल, गंगोत्री से और पूजा रामेश्वर धाम में की जाती है, क्या अद्भुत दृष्टि थी उनकी ताकि भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो तथा एकता के सूत्र में बंधा रह सके। आदि गुरू शंकराचार्य जी ने छोटी सी आयु में भारत का भ्रमण कर हिन्दू समाज को एक सूत्र मंे पिरोने हेतु जीवनपर्यंत प्रयास किया। उन्होंने केरल से केदारनाथ तक तथा कश्मीर से कन्याकुमारी तक, दक्षिण से उत्तर तक, पूर्व से पश्चिम तक पूरे भारत का भ्रमण किया और वह भी ऐसे समय जब कम्युनिकेशन और ट्रंासपोर्टेशन के कोई साधन नहीं थे ऐसे समय यात्रायें कर एकात्मकता का संदेश दिया। जगद्गुरू शंकराचार्य जी ने ‘‘ब्रह्म सत्यम्, जगन्मिथ्या’’ का संदेश दिया। ’’ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया’’ का ब्रह्म वाक्य दिया। ’’अहं ब्रह्मास्मि’’ अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और सर्वत्र हूँ। जो आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित है। इसमें एकता और अभिन्नता का अद्भुत दर्शन है। ‘‘सर्वत्र हूँ, सब में हूँ के उद्घोष’’ ‘‘सब ब्रह्म है और सर्वत्र है’’ ये सूत्र प्राणीमात्र एवं प्रकृति के संरक्षण की भी प्रेरणा देते हैं। जगद्गुरू शंकराचार्य जी ने वैदिक धर्म और दर्शन को पुनः प्रतिष्ठित करने हेतु अथक प्रयास किये। तमाम विविधताओं से युक्त भारत को एक करने में अहम भूमिका निभायी। आज उनके अवतरण दिवस पर परमार्थ निकेतन में विशेष हवन किया गया।

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