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संघर्षमयी पत्रकारिता में भी बहती रही गंगा..


हम एसी ही एक महिला पत्रकार की बात कर रहे है जिन्होंने उत्तराखंड के बचपन को जानती है उसके बचपन से जवानी तक के तमाम उतार चड़ाव देखें है अपने परिवार को बिखरते हुए देखा है लेकिन इस महिला पत्रकार ने कभी हार नहीं मानी दुखों के पहाड़ दिन प्रतिदिन गिरते गए लेकिन गिरते पहाड़ों जैसे दुखों को झेलती इस गंगा ने हार नहीं मानी|

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

आज एक सम्मानित महिला पत्रकार के सम्मान देने की बात हो रही है तो में महिलाओं की पत्रकारिता की बात करूँगी जो महिलाओं ने बड़े ही संघर्ष से यह सम्मान हासिल कर पा रही हैं कुछ बदलते वक्त के साथ समाज भी करवटें ले रहा है। हर क्षेत्र में बदलाव हो रहा है। बदलाव से पत्रकारिता का क्षेत्र भी अछूता नहीं है। यकीनन, मीडिया में पहले की तुलना में अब महिलाओं के लिए ज्यादा अवसर हैं। लेकिन जो चीज बदलती नहीं दिख रही वह है मीडिया हाउस की पुरुषवादी सोच। लिहाजा जगह बनाने का महिला पत्रकारों का संघर्ष भी लंबा होता है। एक महिला को करियर के रूप में पत्रकारिता का चुनाव करना और फिर उस मार्ग पर चलना इतना आसान नहीं लोकतंत्र के चौथे स्तंभ में कार्य करने वाली महिला पत्रकारों की बात करते हैं, तो उनके लिए चुनौतियां इस क्षेत्र में भी कम नहीं हैं| हम एसी ही एक महिला पत्रकार की बात कर रहे है जिन्होंने उत्तराखंड के बचपन को जानती है उसके बचपन से जवानी तक के तमाम उतार चड़ाव देखें है अपने परिवार को बिखरते हुए देखा है लेकिन इस महिला पत्रकार ने कभी हार नहीं मानी दुखों के पहाड़ दिन प्रतिदिन गिरते गए लेकिन गिरते पहाड़ों जैसे दुखों को झेलती इस गंगा ने हार नहीं मानी| उमेश डोभाल स्मृति सम्मान से सम्मानित होने जा रही गंगा असनोड़ा थपलियाल अप्पर बाजार, श्रीनगर गढ़वाल से है वह अनिकेत, दैनिक जयंत, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, पर्वतीय टाइम्स में लेखन कर कर चुकी है, अमर उजाला प्रकाशन ( 2004 से 2011) अमर उजाला देहरादून में बतौर सब एडिटर / सब रिपोर्टर 2011 से 2014 अमर उजाला श्रीनगर गढ़वाल में ब्यूरो चीफ के रूप में रह चुकी है, रीजनल रिपोर्टर मासिक पत्रिका ( नवंबर 2014 से वर्तमान तक ) रीजनल रिपोर्टर मासिक पत्रिका में संपादक के रूप में कार्य कर रही हैं । आदर्श रूप से देखें तो पत्रकारिता एक ज़िम्मेदारी और चुनौतीभरा पेशा है. यह चुनौतियां और ज़िम्मेदारियां दोगुनी हो जाती हैं जब एक महिला पत्रकार हो तो क्यों की उसे घर और बाहर दौनों को ही देखना है उन्होंने एक अपने साक्षात्कार में बताया की मेरे जीवन का एक संयोग था या कहूं कि मेरे साथ जो भी घटित हुआ है, मेरा पत्रकारिता में आना उस सबकी भूमिका रच रहा था। ग्रेजुएशन की पढाई के लिए लखनऊ गई लेकिन वहां अस्वस्थता के चलते मुझे पढाई पूरी किए बगैर ही वापस लौटना पड़ा, अब मुझे अपने स्वास्थ्य से अधिक पढाई की चिंता सताने लगी। मेरी चिंता को समझते हुए बाबूजी ने गोपेश्वर महाविद्यालय से मेरा बी0ए0 का फाॅर्म भर दिया , जल्दबाजी में इसमें विषय चयन को लेकर सतर्कता नहीं दिखाई गई और विषयों का बेमेल होना ही पत्रकारिता में आने के लिए नींव का पत्थर बना। पत्रकारिता की पढाई के लिए गढवाल विश्वविद्यालय श्रीनगर जाना चाती थी लेकिन बाबूजी से कहने की हिम्मत न हुई। बाबूजी और मेरी बूढी आमा मेरे लिए एक बड़े प्रेरणा स्तंभ रहे। ढाई साल की थी जब स्कूल जाने लगी तब ईजा कभी गैरसैण में रहती कभी हमारे मूल फयाटनोला में और मैं बाबूजी और आमा के साथ। छोटी सी बसाहट वाले गैरसैण की हमारी दुकान में तब क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय, आठ अखबार आते थे। बाबूजी दुकान संभालने के साथ ही इन अखबारों के संपादकीय भी बड़े ध्यान से पढते, यही उनके विश्वविद्यालय थे। उनके सानिध्य की मेरे व्यक्तित्व पर भी गहरी छाप पड़ी। मुझे खुशी है कि मै उनका अंश हूं। बूढी आमा की सकारात्मकता, सहनशीलता और पराक्रमी व्यक्तित्व ने विपरीत परिस्थितियों में भी मुझे जीना सिखाया। बूढे दादाजी के जाने के बाद आमा का जीवन संघर्षमय रहा, मैं अपने कठिन संघर्षों में उनको याद करती। पारिवारिक समस्याओं के साथ पढने लिखने में यही शक्ति काम आई फिर भवानी शंकर जैसे दमदार व्यक्तित्व के नौ साल के साथ ने मुझे जो आत्मीय ऊर्जा दी। उसने झंझावतों के साथ आगे बढने में मुझे बहुत मदद की। हमारे शुभचिंतकों, रीजनल रिपोर्टर के लेखकों एवं पाठकों का जो सहयोग रहा वो अतुलनीय है। मेरे साथ मेरे बाबूजी, ईजा, सासूजी एवं बच्चों का संघर्ष भी कदम से कदम मिलाता रहा। मैंने जाना कि एक दूसरे को खुश देखने के लिए विपरीत परिस्थितियों में भी हम कितना सुंदर जी सकते हैं, यह हम सबने मिलकर कर दिखाया। एसी महिला जो आज भी परिस्थियों से लड़ रही है और पत्रकारिता के नए मुकाम बना रही है | अमूमन ऐसा होता है कि महिला सशक्तिकरण का ज़िक्र छिड़ते ही हमारे ज़ेहन में उन सफल महिलाओं की तस्वीरें उभरने लगती हैं, जो या तो किसी मल्टीनेशनल कंपनी की सीईओ हैं या कोई बड़ी सामाजिक कार्यकर्ता या फिर कोई सेलिब्रेटी लेकिन हमारी सरकारें एसी महिलाओं के नाम भूल जाती है जो अपनी कलम के माध्यम से जमीनी सच्चाई दिखाई हो आज एसे अवसर पर यह लिखना नहीं चाहती थी लेकिन कहेंगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे | आज बड़े संघर्ष के बाद महिला पत्रकारों ने राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय अखबारों, पत्रिकाओं में अपनी महत्वपूर्ण जगह बना ली है ये सब उनके लगातार कठिन परिश्रम का ही नतीजा है | उमेश डोभाल स्मृति सम्मान के लिए परम सम्मानीय गंगा असनोड़ा थपलियाल को "आल न्यूज़ भारत" की ओर से हार्दिक शुभकामनाये |

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