हम à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की बात कर रहे है जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के बचपन को जानती है उसके बचपन से जवानी तक के तमाम उतार चड़ाव देखें है अपने परिवार को बिखरते हà¥à¤ देखा है लेकिन इस महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° ने कà¤à¥€ हार नहीं मानी दà¥à¤–ों के पहाड़ दिन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ गिरते गठलेकिन गिरते पहाड़ों जैसे दà¥à¤–ों को à¤à¥‡à¤²à¤¤à¥€ इस गंगा ने हार नहीं मानी|
रिपोर्ट - अंजना à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ घिलà¥à¤¡à¤¿à¤¯à¤¾à¤²
आज à¤à¤• समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° के समà¥à¤®à¤¾à¤¨ देने की बात हो रही है तो में महिलाओं की पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ की बात करूà¤à¤—ी जो महिलाओं ने बड़े ही संघरà¥à¤· से यह समà¥à¤®à¤¾à¤¨ हासिल कर पा रही हैं कà¥à¤› बदलते वकà¥à¤¤ के साथ समाज à¤à¥€ करवटें ले रहा है। हर कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में बदलाव हो रहा है। बदलाव से पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° à¤à¥€ अछूता नहीं है। यकीनन, मीडिया में पहले की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में अब महिलाओं के लिठजà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ अवसर हैं। लेकिन जो चीज बदलती नहीं दिख रही वह है मीडिया हाउस की पà¥à¤°à¥à¤·à¤µà¤¾à¤¦à¥€ सोच। लिहाजा जगह बनाने का महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ का संघरà¥à¤· à¤à¥€ लंबा होता है। à¤à¤• महिला को करियर के रूप में पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ का चà¥à¤¨à¤¾à¤µ करना और फिर उस मारà¥à¤— पर चलना इतना आसान नहीं लोकतंतà¥à¤° के चौथे सà¥à¤¤à¤‚ठमें कारà¥à¤¯ करने वाली महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ की बात करते हैं, तो उनके लिठचà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में à¤à¥€ कम नहीं हैं| हम à¤à¤¸à¥€ ही à¤à¤• महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° की बात कर रहे है जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड के बचपन को जानती है उसके बचपन से जवानी तक के तमाम उतार चड़ाव देखें है अपने परिवार को बिखरते हà¥à¤ देखा है लेकिन इस महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° ने कà¤à¥€ हार नहीं मानी दà¥à¤–ों के पहाड़ दिन पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¦à¤¿à¤¨ गिरते गठलेकिन गिरते पहाड़ों जैसे दà¥à¤–ों को à¤à¥‡à¤²à¤¤à¥€ इस गंगा ने हार नहीं मानी| उमेश डोà¤à¤¾à¤² सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ से समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¤¿à¤¤ होने जा रही गंगा असनोड़ा थपलियाल अपà¥à¤ªà¤° बाजार, शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र गढ़वाल से है वह अनिकेत, दैनिक जयंत, हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨, राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सहारा, परà¥à¤µà¤¤à¥€à¤¯ टाइमà¥à¤¸ में लेखन कर कर चà¥à¤•à¥€ है, अमर उजाला पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤¶à¤¨ ( 2004 से 2011) अमर उजाला देहरादून में बतौर सब à¤à¤¡à¤¿à¤Ÿà¤° / सब रिपोरà¥à¤Ÿà¤° 2011 से 2014 अमर उजाला शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र गढ़वाल में बà¥à¤¯à¥‚रो चीफ के रूप में रह चà¥à¤•à¥€ है, रीजनल रिपोरà¥à¤Ÿà¤° मासिक पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ ( नवंबर 2014 से वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ तक ) रीजनल रिपोरà¥à¤Ÿà¤° मासिक पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ में संपादक के रूप में कारà¥à¤¯ कर रही हैं । आदरà¥à¤¶ रूप से देखें तो पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ à¤à¤• ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ और चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¥€à¤à¤°à¤¾ पेशा है. यह चà¥à¤¨à¥Œà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ और ज़िमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दोगà¥à¤¨à¥€ हो जाती हैं जब à¤à¤• महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° हो तो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की उसे घर और बाहर दौनों को ही देखना है उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• अपने साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° में बताया की मेरे जीवन का à¤à¤• संयोग था या कहूं कि मेरे साथ जो à¤à¥€ घटित हà¥à¤† है, मेरा पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ में आना उस सबकी à¤à¥‚मिका रच रहा था। गà¥à¤°à¥‡à¤œà¥à¤à¤¶à¤¨ की पढाई के लिठलखनऊ गई लेकिन वहां असà¥à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¤à¤¾ के चलते मà¥à¤à¥‡ पढाई पूरी किठबगैर ही वापस लौटना पड़ा, अब मà¥à¤à¥‡ अपने सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥à¤¥à¥à¤¯ से अधिक पढाई की चिंता सताने लगी। मेरी चिंता को समà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤ बाबूजी ने गोपेशà¥à¤µà¤° महाविदà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से मेरा बी0à¤0 का फाॅरà¥à¤® à¤à¤° दिया , जलà¥à¤¦à¤¬à¤¾à¤œà¥€ में इसमें विषय चयन को लेकर सतरà¥à¤•à¤¤à¤¾ नहीं दिखाई गई और विषयों का बेमेल होना ही पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ में आने के लिठनींव का पतà¥à¤¥à¤° बना। पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ की पढाई के लिठगढवाल विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र जाना चाती थी लेकिन बाबूजी से कहने की हिमà¥à¤®à¤¤ न हà¥à¤ˆà¥¤ बाबूजी और मेरी बूढी आमा मेरे लिठà¤à¤• बड़े पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤£à¤¾ सà¥à¤¤à¤‚ठरहे। ढाई साल की थी जब सà¥à¤•à¥‚ल जाने लगी तब ईजा कà¤à¥€ गैरसैण में रहती कà¤à¥€ हमारे मूल फयाटनोला में और मैं बाबूजी और आमा के साथ। छोटी सी बसाहट वाले गैरसैण की हमारी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ में तब कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥€à¤¯ à¤à¤µà¤‚ राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯, आठअखबार आते थे। बाबूजी दà¥à¤•à¤¾à¤¨ संà¤à¤¾à¤²à¤¨à¥‡ के साथ ही इन अखबारों के संपादकीय à¤à¥€ बड़े धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से पढते, यही उनके विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ थे। उनके सानिधà¥à¤¯ की मेरे वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ पर à¤à¥€ गहरी छाप पड़ी। मà¥à¤à¥‡ खà¥à¤¶à¥€ है कि मै उनका अंश हूं। बूढी आमा की सकारातà¥à¤®à¤•à¤¤à¤¾, सहनशीलता और पराकà¥à¤°à¤®à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ ने विपरीत परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ जीना सिखाया। बूढे दादाजी के जाने के बाद आमा का जीवन संघरà¥à¤·à¤®à¤¯ रहा, मैं अपने कठिन संघरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में उनको याद करती। पारिवारिक समसà¥à¤¯à¤¾à¤“ं के साथ पढने लिखने में यही शकà¥à¤¤à¤¿ काम आई फिर à¤à¤µà¤¾à¤¨à¥€ शंकर जैसे दमदार वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ के नौ साल के साथ ने मà¥à¤à¥‡ जो आतà¥à¤®à¥€à¤¯ ऊरà¥à¤œà¤¾ दी। उसने à¤à¤‚à¤à¤¾à¤µà¤¤à¥‹à¤‚ के साथ आगे बढने में मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ मदद की। हमारे शà¥à¤à¤šà¤¿à¤‚तकों, रीजनल रिपोरà¥à¤Ÿà¤° के लेखकों à¤à¤µà¤‚ पाठकों का जो सहयोग रहा वो अतà¥à¤²à¤¨à¥€à¤¯ है। मेरे साथ मेरे बाबूजी, ईजा, सासूजी à¤à¤µà¤‚ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ का संघरà¥à¤· à¤à¥€ कदम से कदम मिलाता रहा। मैंने जाना कि à¤à¤• दूसरे को खà¥à¤¶ देखने के लिठविपरीत परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ हम कितना सà¥à¤‚दर जी सकते हैं, यह हम सबने मिलकर कर दिखाया। à¤à¤¸à¥€ महिला जो आज à¤à¥€ परिसà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से लड़ रही है और पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¿à¤¤à¤¾ के नठमà¥à¤•à¤¾à¤® बना रही है | अमूमन à¤à¤¸à¤¾ होता है कि महिला सशकà¥à¤¤à¤¿à¤•à¤°à¤£ का ज़िकà¥à¤° छिड़ते ही हमारे ज़ेहन में उन सफल महिलाओं की तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ उà¤à¤°à¤¨à¥‡ लगती हैं, जो या तो किसी मलà¥à¤Ÿà¥€à¤¨à¥‡à¤¶à¤¨à¤² कंपनी की सीईओ हैं या कोई बड़ी सामाजिक कारà¥à¤¯à¤•à¤°à¥à¤¤à¤¾ या फिर कोई सेलिबà¥à¤°à¥‡à¤Ÿà¥€ लेकिन हमारी सरकारें à¤à¤¸à¥€ महिलाओं के नाम à¤à¥‚ल जाती है जो अपनी कलम के माधà¥à¤¯à¤® से जमीनी सचà¥à¤šà¤¾à¤ˆ दिखाई हो आज à¤à¤¸à¥‡ अवसर पर यह लिखना नहीं चाहती थी लेकिन कहेंगे नहीं तो कोई सà¥à¤¨à¥‡à¤—ा कैसे | आज बड़े संघरà¥à¤· के बाद महिला पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ ने राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯, अंतरराषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ अखबारों, पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾à¤“ं में अपनी महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ जगह बना ली है ये सब उनके लगातार कठिन परिशà¥à¤°à¤® का ही नतीजा है | उमेश डोà¤à¤¾à¤² सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ समà¥à¤®à¤¾à¤¨ के लिठपरम समà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ गंगा असनोड़ा थपलियाल को "आल नà¥à¤¯à¥‚ज़ à¤à¤¾à¤°à¤¤" की ओर से हारà¥à¤¦à¤¿à¤• शà¥à¤à¤•à¤¾à¤®à¤¨à¤¾à¤¯à¥‡ |