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पाकिस्तान पर कुछ नोट्स-20 किसके दिल में कौन-सी धरती!


बिलावल भुट्टो पाकिस्तान के विदेश मंत्री बने तब उनका एक पुराना इंटरव्यू वायरल हुआ, जिसमें वो कह रहे हैं कि हरेक पाकिस्तानी के दिल में एक हिंदुस्तान बसता है और हरेक हिंदुस्तानी के दिल में एक पाकिस्तान मौजूद है। उन्होंने ये बात जिस संदर्भ में कही है, वो ये है कि दोनों देशों के लोग, खासतौर से पश्चिम और उत्तर भारत के लोग पाकिस्तान के साथ एक अलग का जुड़ाव महसूस करते हैं। ये बात अलग है कि दोनों तरफ से ही ये जुड़ाव अब नफरत की बुनियाद पर टिका है।

रिपोर्ट  - à¤¸à¥à¤¶à¥€à¤² उपाध्याय

बिलावल भुट्टो पाकिस्तान के विदेश मंत्री बने तब उनका एक पुराना इंटरव्यू वायरल हुआ, जिसमें वो कह रहे हैं कि हरेक पाकिस्तानी के दिल में एक हिंदुस्तान बसता है और हरेक हिंदुस्तानी के दिल में एक पाकिस्तान मौजूद है। उन्होंने ये बात जिस संदर्भ में कही है, वो ये है कि दोनों देशों के लोग, खासतौर से पश्चिम और उत्तर भारत के लोग पाकिस्तान के साथ एक अलग का जुड़ाव महसूस करते हैं। ये बात अलग है कि दोनों तरफ से ही ये जुड़ाव अब नफरत की बुनियाद पर टिका है। लेकिन जुड़ाव है, इसमें कोई संदेह नहीं है। दोनों तरफ एक-दूसरे के प्रति गहरी जिज्ञासा का भाव है कि न जाने उस तरफ क्या होगा, कैसा होगा, वो भी हमारे जैसे ही हैं या हमसे कुछ अलग हैं! ये तमाम बातें अनसुलझी ही रहती हैं क्योंकि अलगाव की जड़ें बहुत गहरी हैं। दोनों तरफ चंद ही लोग ऐसे होंगे जिनकी निगाह उदार और समावेशी होगी, अन्यथा ज्यादातर दुश्मनी का विष पिये बैठे हैं और इसमें रोज बढ़ोत्तरी कर रहे हैं। और ये लोगों के स्तर पर ही नहीं, सरकारों के स्तर पर भी है। हाल ही में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फैसला किया है कि जो लोग पाकिस्तानी विश्वविद्यालयों से डिग्री लेंगे, वे भारत में मान्य नहीं होंगी। यानि पढ़ने के लिए पाकिस्तान नहीं जाना है और न ही पाकिस्तानियों को यहां बुलाना है। और यदि डिग्री मान्य नहीं होगी तो सार्क (दक्षेस) में शैक्षिक आदान-प्रदान की बात क्यों कही गई है! दोनों देश काॅमनवेल्थ का हिस्सा हैं, वहां भी शैक्षिक आदान-प्रदान और उपाधियों की समकक्षता की बात कही गई है। तो क्या भारत के अंतरराष्ट्रीय कमिटमेंट झूठे हैं ? और डिग्री क्यों मान्य नहीं होंगी ? इसलिए क्योंकि पाकिस्तान एक दुश्मन देश है! लेकिन, पाकिस्तान से कहीं खतरनाक चीन है। उसकी डिग्रियों के मामले में यूजीसी द्वारा गोलमोल निर्देश जारी होते हैं, ये आदेश सुझाव की तरह होेते हैं कि भारत के छात्र उच्च-शिक्षा के लिए चीनी विश्वविद्यालयों में न जाएं। तब एक बार नहीं कहा जाता कि चीन की डिग्री मान्य नहीं होगी। सीमाओं पर परेशानी पैदा कर रहे दो दुश्मनों के प्रति अलग रुख क्या कारोबार और ताकत के परिप्रेक्ष्य में है ? खैर, ये टिप्पणी चीन के संदर्भ में नहीं है, पाकिस्तान के संदर्भ में है। इसलिए इसके विरोधाभास को भी समझने की जरूरत है। दोनों देशों के संदर्भ में हमेशा लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने और रिश्ते मजबूत करने की बात कही जाती है ताकि सरकारें मजबूर हों कि ऐसी नीतियां बनाएं जिनसे मेलजोल बढ़े, न कि नफरत। यदि पाकिस्तान और पाकिस्तानियों को देखना हो तो दोनों देशों की सीमाओं से बाहर जाकर देखिए। तब अलग ही पिक्चर नजर आती है। कुछ साल पहले बैंकाॅक जाना हुआ। जिस होटल में रुके हुए थे, वहां शाकाहारी खाना बहुत महंगा था। करीब एक हजार भारतीय रुपये में दो रोटी, थोड़ी दाल और जरा-सी सब्जी मिल रही थी। किसी ने बताया कि कुछ दूर पर भारतीय खाने के रेस्टोरेंट हैं। उस जगह पर कई रेस्टोरेंट थे, अमृतसर रेस्टोरेंट, दिल्ली रेस्टोरेंट, वीगन, पंजाब ढाबा और भी कई इसी तरह के नाम। एक रेस्टोरेंट के बाहर एक बुजुर्ग सज्जन बहुत सलीके से ग्राहकों को बुला रहे थे। शायद हम लोगों की शक्लों पर कुछ ऐसा भाव होगा कि उन्होंने देखते ही कहा कि हमारे यहां वीगन और वेजिटेरियन, दोनों के लिए खास ध्यान रखा जाता है। देश के बाहर जाने पर अपने जैसी शक्लें दिखने पर अक्सर पूछ लेते हैं कि आप कहां से हैं ? गेट पर मौजूद लड़के ने बताया कि वो बांग्लादेश से है। बहुत ही सधे हुए ढंग से हिंदुस्तानी बोल रहे वेटर ने खुद को म्यामार यानि बर्मा से बताया और रेस्टोरेंट के मैनेजर ने कहा कि वो पंजाब से है। खाना अच्छा था, लोगों का व्यवहार भी बढ़िया था, बस एक ही बात तय नहीं थी कि ये क्या सब लोग बांग्लादेश, म्यामार, नेपाल या फिर पंजाब से हैं भी या नहीं ? जवाब मिलने में देर नहीं हुई। हर कोई एक-दूसरे को भाईजान कहकर बुला रहा था। ग्राहकों द्वारा बुलाए जाने पर भी भाईजान शब्द में ही उत्तर मिल रहा था। लाल किले और ताजमहल के साथ एक कोने में मीनार-ए-पाकिस्तान भी मौजूद थी। बात साफ थी कि ये सब पाकिस्तान से थे। जिस व्यक्ति ने रेस्टोरेंट में आने का न्यौता दिया था, उसी से पूछा कि आप पाकिस्तान में कहां से हैं, वो एक पल के लिए झिझका और फिर उसने कहा-लाहौर से। अगला सवाल, आपके ये लोग खुद को अलग-अलग देशों से क्यों बताते हैं। उसने बड़ी सीधी बता कही कि पहले खुद को हिंदुस्तान से बताते थे, तब लोग ये पूछते थे कि किस शहर से हो। शहर भी बता दिया तो लोग ज्यादा बारीक बातें पूछते थे और जब ये पता चलता था कि सामने वाला आदमी पाकिस्तान से है तो लोगों की निगाह बदल जाती थी। इसलिए गोलमोल जवाब देने पड़ते हैं। और बिजनेस इस बात केे लिए मजबूर करता है कि अपनी पहचान छिपाकर उसे हिंदुस्तानी या अन्य पड़ोसी देशों से जोड़ा जाए क्योंकि ज्यादातर ग्राहक हिंदुस्तान से हैं। अपने मुल्क से बाहर रह रहा ये आदमी हमेशा ये ही सोचता है कि दोनों देशों के रिश्ते इतने अच्छे हो जाएं कि उन्हें खुद को पाकिस्तानी बताने में परेशानी न हो और उनके रेस्टोरेंट में हिंदुस्तानियों को आने में झिझक न हो। हालांकि इस आदमी के चाहने भर से दोनों तरफ के रिश्ते अच्छे हो जाएंगे, इसकी संभावना नहीं है। पर, यदि ये उम्मीद दोनों तरफ के दिलों में जगह बना ले तो क्या पता आने वाले समय में हालात सामान्य हो जाएं और इतने सामान्य हो जाएं कि दोनों तरफ के लोग डरे बिना एक-दूसरे के यहां जा सकें। और ये डर भी कैसा है ? अविश्वास से भरा हुआ है। साल 2014 की बात है। मैं जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली में एक रिफ्रेशर कोर्स में भाग ले रहा था। पाकिस्तान के कुछ स्टूडेंट्स का दल भारत आया हुआ था। इन्हें जामिया भी आना था। उत्सुकतावश बहुत सारे लोग वहां के छात्रों से बात करना चाहते थे, लेकिन इनके साथ आए प्रोफेसर किन्हीं छिपे हुए निर्देशों के चलते बातचीत को बढ़ावा या आपसी संपर्क को तरजीह नहीं दे रहे थे। शायद उन्हें लगता हो कि कहीं उनके छात्रों को हिंदुस्तानी हवा न लग जाए। कई बार दोनों देशों का रिश्ता कैसा रोचक दिखता है, इसका उदाहरण पाकिस्तान में इमरान खान के सत्ता गंवाने के दौरान देखने को मिला। उन्होंने अपने भाषणों में अपने विरोधियों के लिए मीर जाफर और मीर सादिक का उल्लेख किया। भारतीय इतिहास में दोनों को ही देश के दुश्मनों के साथ मिलकर गद्दारी करने का गुनाहगार माना जाता है। पाकिस्तान की कैसी मजबूरी है कि उसे गद्दारों की पहचान के लिए भी उस धरती से उदाहरण ढूंढने पड़ते हैं जो भौगोलिक तौर पर उससे अलग है। सभी को पता है कि दोनों देशों का विभाजन बहुत कृत्रिम है, दोनों का इतिहास साझा है, लेकिन वजूद को अलग साबित करने की जिद में पाकिस्तान ने इतिहास के खलनायकों को अपना नायक बना लिया है और अपने नायकों को बेगाना कर दिया इसीलिए लाहौर के सिख शासक महाराजा रणजीत सिंह और सिंध के आखिरी हिंदू राजा दाहिर उनके लिए बेगाने हो गए हैं। जबकि, भारत के लिए महाराजा रणजीत सिंह और सिंध के आखिरी हिंदू राजा दाहिर भारतीय अस्तिमा का हिस्सा हैं और पाकिस्तान के लिए भुला देने लायक ऐतिहासिक शख्सियत। फिलहाल, दोनों तरफ से चीजें सामान्य होना इतना आसान भी नहीं लगता। जब ये लेख लिखा जा रहा है, उस वक्त पाकिस्तान के पेशावर में दो सिखों की हत्या कर दी गई। भले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री ने कड़ी कार्रवाई की बात कही है, संभव है कि हत्यारे जल्द ही पकड़ भी लिए जाएं, लेकिन भारत में इन हत्याओं को हिंदुस्तान पर हमले की तरह देखा जाएगा। पिछले सप्ताह यानि मई, २०२२ में श्रीनगर में कश्मीरी पंडित की हत्या में पाकिस्तानी आतंकवादियों के नाम सामने आने के बाद आम लोगों के बीच यह धारणा और मजबूत होगी कि पाकिस्तान दुश्मन है और दुश्मन ही रहेगा। सरकार भी इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाती हैं क्योंकि प्रत्यक्ष-परोक्ष पर उनका हित दुश्मनी के नैरेटिव में ही सुरक्षित है। ये तमाम चीजें उस भाव को गहरी चोट पहुंचाती हैं, जो ये कहता है कि हरेक हिंदुस्तानी के दिल में पाकिस्तान और हरेक पाकिस्तानी के दिल में हिंदुस्तान बसता है।

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