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'उत्तराखंड में जंगलों की आग का ऐतिहासिक और वर्तमान परिदृश्य' विषय पर एक दिवसीय परिचर्चा


अंतर्राष्ट्रीय गुडविल सोसाइटी गढ़वाल चैप्टर के अध्यक्ष प्रोफेसर एमएम सेमवाल ने उत्तराखंड में लगातार भीषण रूप धारण कर रही इस आपदा के कारणों तथा उपायों के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि जब तक आम लोगों में पर्यावरणीय नैतिकता उत्पन्न नहीं होगी तबतक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी ।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

श्रीनगर में अंतरराष्ट्रीय गुडविल सोसायटी एवं राजनीति विज्ञान विभाग के संयुक्त तत्वाधान में 'उत्तराखंड में जंगलों की आग का ऐतिहासिक और वर्तमान परिदृश्य' विषय पर एक दिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस परिचर्चा का संचालन तथा शुभारंभ करते हुए शोध छात्रा शिवानी पांडे ने इस विषय में ऐतिहासिक जानकारी देते हुए बताया कि जंगलों की आग को उत्तराखंड में लोगों ने जंगलों पीआर अधिकार के लिए अंग्रेजों के खिलाफ प्रतिरोध के एक हथियार के रूप में उपयोग किया था। लेकिन आज सरकारों को लापरवाही से यह आग हमारी जैव विविधता को बहुत नुकसान पहुंचा रही है। अंतर्राष्ट्रीय गुडविल सोसाइटी गढ़वाल चैप्टर के अध्यक्ष प्रोफेसर एमएम सेमवाल ने उत्तराखंड में लगातार भीषण रूप धारण कर रही इस आपदा के कारणों तथा उपायों के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि जब तक आम लोगों में पर्यावरणीय नैतिकता उत्पन्न नहीं होगी तबतक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी । उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति ऐसी आपदाओं को कई गुना तक बढ़ा देती हैं अतः इसके उपाय भी उसी हिसाब से खोजे जाने चाहिए । पहाड़ों में चौड़ी पत्ती के स्थानीय प्रजातियों के पेड़ो को लगाने से लेकर वनों को आर्थिकी से जोड़ने तक कुछ ऐसे कदम हो सकते हैं जिससे वनों पर आग को सीमित किया जा सकता है । उन्होंने कहा कि लोगों को आपदा से पूर्व सहयोगात्मक रवैया अपनाना चाहिए ताकि इनकी तीव्रता को कम किया किया जा सके । विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ नरेश कुमार ने वनाग्नि के कारणों तथा इसके सम्भावित समाधानों पर चर्चा करते हुए हिमांचल प्रदेश के साथ उत्तराखंड का तुलनात्मक विवरण प्रस्तुत किया । डॉ राकेश नेगी ने कहा कि गांवो में हो रहे लगातार बदलावों, पलायन से आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं जिससे पूरी पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर पड़ रहा है। इसके लिए फिर से स्थानीय स्तर पर दायित्वों को देने की आवश्यकता है। विश्व विद्यालय के छात्रों, शिक्षकों और समाज के शिक्षित जागरूक लोगों को आगे आ कर ग्रामीण जनता को जंगलों की आग के नुकसान के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता है। इस से भविष्य में अच्छे बदलाव आयेंगे। शोध छात्र मयंक उनियाल ने जंगलों की आग के वर्ष 2022 के आंकड़ों को लेकर इसकी भयावहता बताई तथा सरकारी इंतजामों को इस लिहाज से नाकाफी बताया। डॉ सुभाष लाल ने वनाग्नि के विषय में जानकारी देते हुए कहा कि इस आपदा से तभी राहत मिल सकती है जब स्थानीय लोगों को साथ लेकर कोई कार्ययोजना बनाये जाएं। इस अवसर पर सोसायटी के सदस्य एवं राजनीति विभाग के शोधार्थी तथा स्नातक व स्नातकोत्तर कक्षाओं के विद्यार्थीयों के साथ मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान के छात्र-छात्राएं भी उपस्थित रहे ।

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