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श्वास और विश्वास के सेतु की जरूरत - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


मानस कथाकार मुरलीधर के श्रीमुख से परमार्थ निकेतन गंगा तट पर होने वाली मासिक मानस कथा में आज विख्यात योगाचार्य स्वामी रामदेव जी महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, अजय भाई , डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष डा साध्वी भगवती सरस्वती जी ने सहभाग कर भारत के विभिन्न राज्यों से आये मानस कथा प्रेमियों को सम्बोधित किया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 22 मई। मानस कथाकार मुरलीधर के श्रीमुख से परमार्थ निकेतन गंगा तट पर होने वाली मासिक मानस कथा में आज विख्यात योगाचार्य स्वामी रामदेव जी महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, अजय भाई , डिवाइन शक्ति फाउंडेशन की अध्यक्ष डा साध्वी भगवती सरस्वती जी ने सहभाग कर भारत के विभिन्न राज्यों से आये मानस कथा प्रेमियों को सम्बोधित किया। योगगुरू स्वामी रामदेव ने भगवान श्रीराम, माँ गंगा और सनातन संस्कृति में विश्वास करने वाले सभी प्रेमियों को सम्बोधित करते हुये कहा कि धर्म, योग, अध्यात्म और सनातन संस्कृति को जीना ही वास्तिविक जीवन है। मानव जन्म और जीवन को पाकर भगवान के चरित्र का गायन करना सर्वश्रेष्ठ और सर्वस्व है। उन्होंने कहा कि योग और कर्मयोग का विस्तार जीवन में जरूरी है तथा दुनिया के बहकावों से बचना है तो प्रभु के चरणों मंे ध्यान लगाना होगा। मन की शान्ति को कहीं से खरीदा नहीं जा सकता, मन की शान्ति कहीं मिलती है तो वह भगवान की प्रार्थना में। स्वामी रामदेव ने कहा कि भगवान के भजन में ही मुक्ति है। सत्संग करके हम सभी कर्मों से मुक्त रह सकते है; ध्यान कर सकते है। ध्यान सोचने और सोने के पार है इसलिये जितनी देर हम सत्संग करते है उतनी देर आप ध्यान में है। उन्होंने कहा कि दान के माध्यम से धन की मुक्ति होती है और जीवन मुक्ति कथा श्रवण से मिलती है। देह में रहते हुये विदेह होना ही वास्तिविक मुक्ति है इसलिये आप सभी भावतीत और गुणातीत होकर कथा का श्रवण करें। मानस कथा के दिव्य मंच से आज स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने पृथ्वी पर जीवन की विशाल विविधता का वर्णन करते हुये कहा कि जैव विविधता पौधों, बैक्टीरिया, प्राणियों और मनुष्यों सहित हर जीवित चीज को संदर्भित करती है। वर्तमान समय में वैश्विक स्तर पर जैव विविधता में भारी गिरावट आ रही है। कहा जा रहा है कि 50 वर्षों से भी कम समय में 68 प्रतिशत वैश्विक प्रजातियों के नष्ट होने की सम्भावना है जबकि इससे पहले प्रजातियों में इतनी गिरावट नहीं देखी गई थी, यह अत्यंत चिंता का विषय है। प्रकृति बचेगी तो पानी बचेगा और पर्यावरण भी बचेगा इसलिये अपने उत्सवों, पर्वों, तर्पण, विवाह वर्षगांठ और जन्मदिवस को पौधा रोपण कर मनाये।

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