Latest News

भारत अपने ज्ञान, विज्ञान और परम्पराओं से श्रेष्ठ - डा इन्द्रेश कुमार


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अवधूत मंडल आश्रम में आयोजित भगवान परशुराम राष्ट्रीय शोध पर आधारित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में सहभाग किया। इस अवसर पर माननीय वरिष्ठ सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इन्द्रेश कुमार, स्वामी संतोषानन्द महाराज, स्वामी तुलसी महाराज, नटवरलाल जोशी , न्यासी रामजन्मभूमि न्यास, अयोध्या कामेश्वर चौपाल , संस्थापक संरक्षक राÛ पÛ पÛ माननीय सुनील भराला , वरिष्ठ अधिवक्ता शिवप्रसाद मिश्र , वरिष्ठ समाजसेवी डा हरीश त्रिपाठी , उनके विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्य विशिष्ट जन उपस्थित हुये।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 19 जून। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अवधूत मंडल आश्रम में आयोजित भगवान परशुराम राष्ट्रीय शोध पर आधारित दो दिवसीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में सहभाग किया। इस अवसर पर माननीय वरिष्ठ सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ इन्द्रेश कुमार, स्वामी संतोषानन्द महाराज, स्वामी तुलसी महाराज, नटवरलाल जोशी , न्यासी रामजन्मभूमि न्यास, अयोध्या कामेश्वर चौपाल , संस्थापक संरक्षक राÛ पÛ पÛ माननीय सुनील भराला , वरिष्ठ अधिवक्ता शिवप्रसाद मिश्र , वरिष्ठ समाजसेवी डा हरीश त्रिपाठी , उनके विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्य विशिष्ट जन उपस्थित हुये। इस संगोष्ठी में भगवान परशुराम जी की समाज और राष्ट्र हेतु सांस्कृतिक देन, उनका समग्र व्यक्तित्व, कर्मभूमि और तपोभूमि की खोज, युगानुकुल प्रासंगिकता, अम्बा प्रसंग, वैदिक व पौराणिक आधार पर उनका जीवन दर्शन, वैदिक संस्कृति के अप्रतिम संरक्षक जैसे अनेक विषयों पर चितंन और मंथन किया जा रहा है। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भगवान परशुराम शस्त्र और शास्त्र दोनों दृष्टि से महान थे। उनके पास अन्याय की समाप्त करने के लिये परसा था तो न्याय की स्थापना हेतु प्रभु राम की दिव्य शक्तियां थी। स्वामी जी ने कहा कि भारत देश की माटी और थाती को प्रणाम करता हूँ। भारत की जनता की श्रद्धा को प्रणाम। हरिद्वार में हो रहा यह सम्मेलन बहुत महत्वपूर्ण है। हरिद्वार में 12 वर्ष बाद पूर्ण कुम्भ और 6 वर्ष बाद अर्द्ध कुम्भ होता है। यहां पर सागर मंथन से अमृत निकला और फिर उस अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदे यहां गिरीं और आज भी लाखों-लाखों श्रद्धालु यहां पर एक डुबकी और आचमन के लिये आते हंै। आज सागर मंथन की यात्रा स्वयं के मंथन की यात्रा बनें। इस देश में महाभारत हुआ लेकिन अब महाभारत नहीं बल्कि इसे महान भारत बनाने की जरूरत है इसलिये परशुराम जी के परशु को फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। अब पर्यावरण का परशु; फरसा हम सभी अपने हाथ में ले लें तथा इससे पर्यावरण की रक्षा करें। आज हमारे कल्चर, नेचर और फ्यूचर की रक्षा करना बहुत जरूरी है। स्वामी जी ने कहा कि हम वाट्सअप ज्ञान से वैज्ञानिक ज्ञान की ओर बढ़े, भारतीय संस्कृति वाट्सअप ज्ञान पर नहीं बल्कि ऋषियों द्वारा दिये गये ज्ञान पर आधारित है। आज जो छोटे-छोटे मुद्दों को लेकर हमारे समाज में जो हिंसा हो रही हैं उसकी भी उन्होंने निंदा की और कहा कि हिंसा धर्म नहीं हो सकती। आज संवाद की आवश्यकता है, विवादों से दूर रहें और न्याय में निष्ठा रखते हुये संविधान में विश्वास रखे। यदि कोई समस्या है तो न्यायालय में जायें और समाधान प्राप्त करें।

Related Post