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पतंजलि विश्वविद्यालय में वैदिक विज्ञान पुनश्चर्या पाठ्यक्रम कार्यशाला का उद्घाटन


वैदिक विज्ञान पुनश्चर्या पाठ्यक्रम कार्यशाला का उद्घाटन परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज एवं प्रो0 ईश्वर भारद्वाज जी द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो0 महावीर अग्रवाल जी ने किया। संकायाध्यक्ष पूज्या साध्वी देवप्रिया जी ने श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी का एवं कुलसचिव व उप-कुलसचिव ने प्रो0 ईश्वर भारद्वाज जी को पुष्पगुच्छ देकर उन्हें सम्मानित किया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार 19 जून पतंजलि विश्वविद्यालय में आज से वैदिक विज्ञान पर आधारित पुनश्चर्या पाठ्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है जोकि 02 जुलाई 2022 तक चलेगा। यहाँ पर विभिन्न विषयों पर आचार्यगण विद्धतापूर्ण अपना व्याख्यान देंगे। वैदिक विज्ञान पुनश्चर्या पाठ्यक्रम कार्यशाला का उद्घाटन परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज एवं प्रो0 ईश्वर भारद्वाज जी द्वारा दीप प्रज्जवलित कर किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति-कुलपति प्रो0 महावीर अग्रवाल जी ने किया। संकायाध्यक्ष पूज्या साध्वी देवप्रिया जी ने श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी का एवं कुलसचिव व उप-कुलसचिव ने प्रो0 ईश्वर भारद्वाज जी को पुष्पगुच्छ देकर उन्हें सम्मानित किया। वैदिक विज्ञान पुनश्चर्या कार्यशाला में अपने उद्बोधन में परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि आज प्रत्येक दिन सभी व्यक्तियों को अपने आप को रिफ्रेश करने की आवश्यकता है तभी उस व्यक्ति का व्यक्तित्व उभरकर सामने आयेगा। वैसे तो प्राचीन काल में योग दर्शन विषय का एक अंग होता था और उसे दर्शन विषय के साथ ही पढ़ाया जाता था मगर आज योग एवं दर्शन अलग-अलग विषय हैं यह सब इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि समय-समय पर विद्वानों ने इन विषयों को रिफ्रेश करने का कार्य किया। पतंजलि विश्वविद्यालय वैदिक संस्कृति पर आधारित एक संस्था है इसलिए इस कार्यशाला का आयोजन कर सभी सहभागी शिक्षकों को नूतन ज्ञान की प्राप्ति का अवसर यहाँ पर प्रदान किया जा रहा है। जब से हम वैदिक ज्ञान अपनी संस्कृति के मूल सिद्धान्तों से दूर हुए हंै तब से मानव विचारों में व व्यवहार में निम्नता आती जा रही है। आज हमारे बीच में जो लोग आत्महत्या करते हंै वह अधिकतर पढे़ लिखे ज्ञानी व्यक्ति ही होते हंै। ऐसा वे अपने संस्कारों, अपनी संस्कृति, अपने वैदिक ज्ञान से दूरी के कारण करता है। महर्षि दयानन्द जी ने कहा है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए जब विद्यार्थी निकलता है तब तक उसके सामने अनेक पथ होते हंै मगर जो वह विद्यार्थी दृढता से वैदिक ज्ञान के पथ का अनुसरण करता है वह सदैव अपने मंजिल तक पहुँचता है। वैसे तो हमारी संस्कृति कभी भी संचय करने पर विश्वास नहीं रखती, हमारी संस्कृति सदैव ज्ञान को बाँटने पर आधारित है। इसी क्रम में पतंजलि विश्वविद्यालय वैदिक विज्ञान पुनष्चर्या पाठ्यक्रम को आयोजित कर रहा है ताकि सभी इसका लाभ उठा सकें।

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