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प्रेम, दया, करुणा, सहनशीलता और सद्भाव से जीना ही भक्ति है - सुदीक्षा महाराज


निरंकारी सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा है कि प्रेम, शांति और सद्भाव से जीना ही भक्ति है। उन्होंने रविवार को हरिद्वार  स्थित ऋषिकुल मैदान में आयोजित विशाल निरंकारी संत समागम को संबोधित किया। समागम में उत्तराखंड के विभिन्न जिलों समेत वेस्ट यूपी से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार । निरंकारी सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा है कि प्रेम, शांति और सद्भाव से जीना ही भक्ति है। उन्होंने रविवार को हरिद्वार  स्थित ऋषिकुल मैदान में आयोजित विशाल निरंकारी संत समागम को संबोधित किया। समागम में उत्तराखंड के विभिन्न जिलों समेत वेस्ट यूपी से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। देर शाम आयोजित समागम में सद्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि जब जीवन में परमात्मा की प्राप्ति ब्रहमज्ञान द्वारा हो जाती है तो फिर हर -पल परमात्मा का अहसास करना संभव हो जाता है। भक्ति सहज रूप में हो जाती है। उन्होंने कहा कि संत हमेशा दूसरों को सुख पहुंचाने का प्रयास करते हैं। कठोर वचनों को भी सहजता से सह लेते हैं। अपने अन्दर नफरत का भाव नहीं पनपने देते। संत शीतल जल के समान होते हैं, जहां भी जाते हैं वहां ठंडक पहुंचाते हैं। ब्रह्मज्ञानी संत- महात्माओं का संग मानव जीवन को प्रेम, दया, करुणा, विशालता, सहनशीलता, नम्रता, सहजता जैसे अनेक दैवीय गुणों से भर देता है। जब मनुष्य भक्ति में लीन हो जाता है तो फिर वह किसी से नफरत नहीं करता। फिर कोई किसी को चोट नहीं पहुंचाता। ब्रह्मज्ञान कोई ऐसी चीज नहीं जिसको बस केवल संभाल कर रखना है, बल्कि इसको हर पल अपने जीवन में इस्तेमाल करना सद्गुरु माता सुदीक्षा  जी महाराज ने अपने प्रवचन में कहा कि ये तन परमात्मा की प्राप्ति के लिए है और अपनी पहचान भी परमात्मा की पहचान के बाद की जा सकती है। जब ये आत्मा शरीर में नहीं रहेगी तो जीवन खत्म होने पर संभव नहीं है कि परमात्मा की जानकारी की जा सके। उन्होंने कहा कि परमात्मा की आवश्यक है। जानकारी से जो भक्ति भरा जीवन होता है, वह केवल इस मनुष्य जीवन में किया जा सकता है। परमात्मा की जानकारी के बाद वह सभी कार्य आसान हो जाते हैं क्योंकि हर कार्य करते हुए हर सांस इस प्रभु परमात्मा का ही अहसास बना रहता है। उसके पश्चात परमात्मा सबकी भलाई के लिए इस शरीर से कार्य करा लेता है। उन्होंने कहा कि जब हम सत्वरंग में आते हैं, महापुरुषों की बातों पर गौर करते हैं तो हम कहां खड़े हैं, इसका हमें पता चलता है। फिर अपने जीवन को संतमति के अनुसार मोड़ कर अपने अंदर गुण अपना लेते हैं। सद्गुरु माता ने कहा कि परमात्मा हमारे अंग-संग खड़े हैं, मगर हमें खुद को सही रास्ते पर रखने के लिए सत्संग आवश्यक है - भक्तों के लिए लंगर और प्याऊ विशेष व्यवस्था कोविड की वजह से दो साल बाद हरिद्वार में समागम हुआ। समागम में कोरोनाकाल में निरंकारी भवन में वैक्सीन शिविर की सराहना की गई। समागम में हरिद्वार, सहारनपुर, टिहरी, पौड़ी, उत्तरकाशी और देहरादून से बड़ी संख्या में संतों और भक्तों ने प्रतिभाग किया। पूरा पंडाल खचाखच भरा रहा। इस दौरान भक्तों के लिए लंगर और प्याऊ की व्यवस्था की गई। पार्किंग की व्यवस्था के लिए भक्त खुद व्यवस्था बना रहे थे। इस दौरान दिल्ली से आए उपमुख्य सहायक, मिशन के पदाधिकारी, मीडिया टीम और समस्त सेवा दल के साथ साथ समस्त सेवा दल मौजूद रहे ट्रैफिक की सेवा की पुलिस एवं प्रशासन की टीमें भी मौजूद रही।

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