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देसंविवि में दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न


अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, समृद्धि, आधुनिकीकरण, सतत विकास की प्रगति तथा विश्वभर के लोगों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के विषयों पर चर्चा की गई। साथ ही राष्ट्रों के बीच शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए धर्म और संस्कृति को वाहन के रूप में स्वीकार करने पर बल दिया गया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार २७ जून। देव संस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुंज में इंडिया एंड द यूरोपियन यूनियन (ईयू), द रोल ऑफ रिलिजन एंड कल्चर इन पीस बिल्डिंग का दो दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला सम्पन्न हुई। कार्यशाला में अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, समृद्धि, आधुनिकीकरण, सतत विकास की प्रगति तथा विश्वभर के लोगों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने के विषयों पर चर्चा की गई। साथ ही राष्ट्रों के बीच शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए धर्म और संस्कृति को वाहन के रूप में स्वीकार करने पर बल दिया गया। समापन अवसर पर देसंविवि के प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि किसी भी राष्ट्र के विकास, स्थिरता, सुरक्षा आदि दूरदर्शी नेतृत्व एवं सकारात्मक दिशा में चलने वालों युवा के हाथ में है। विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रमों के अलावा युवाओं को गढ़ने के साथ उनमें स्किल डेवलपमेंट जैसे प्रशिक्षण भी चलाये जायें। जेएनयू की कुलपति प्रो. शांतिश्री डी. पंडित ने कहा कि भारतीय संस्कृति के विकास में शांति, सुव्यवस्था के साथ सकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों की आवश्यकता है और इसकी पूर्ति विवि पूरी कर सकता है। भारतीय संस्कृति को जानने के लिए भारत की अन्य भाषाओं में विद्यमान साहित्यों की जानकारी भी रखनी चाहिए, जिससे भारत के कोने-कोने में स्थापित हमारी विराट संस्कृति को समझ पायें। अन्य वक्ताओं ने भी अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा, क्षेत्रीय स्थिरता, समृद्धि, आधुनिकीकरण, सतत विकास की प्रगति तथा विश्वभर के लोगों के बीच सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा देने की वकालत की। साथ ही राष्ट्रों के बीच शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए धर्म और संस्कृति को वाहन के रूप में स्वीकारने पर बल दिया। कार्यर्शाला के माध्यम से देसंविवि तथा जीन मोनेट प्रोजेक्ट (जो भारत में यूरोपीय संघ के अध्ययन को सुदृढ़ और बढ़ावा देना के लिए केंद्रित है) ने विश्वभर के प्रमुख विद्वानों और शिक्षाविदों को भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में आवश्यक शांति निर्माण तंत्र के रूप में संस्कृति और धर्म का उपयोग विषय पर शोध के लिए आमंत्रित किये। कार्यशाला का आयोजन देवसंस्कृति विवि शांतिकुंज, लिस्ट्ट इंस्टीट्यूट हंगेरियन कल्चरल सेंटर नई दिल्ली तथा यूरोपीय संघ द्वारा सह-वित्त पोषित जीन मोनेट प्रोजेक्ट सफीरे स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू के संयुक्त तत्त्वावधान में सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर शामिल डॉ प्रीति डी. दास-निदेशक जीन मोनेट प्रोजेक्ट स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज, जेएनयू; प्रो. भास्वती सरकार-जेएनयू; प्रो. कपिल कपूर- पूर्व कुलपति जेएनयू, डेनिएला-मारियाना सेजोनोव सेन-राजदूत रोमानिया दूतावास; डॉ मैरिएन एर्डो कल्चरल, डायरेक्टर कल्चरल कॉन्सूलर, हंगेरियन सांस्कृतिक केंद्र नई दिल्ली; डॉ मनुराधा चौधरी, स्कूल ऑफ लैंग्वेज, लिटरेचर एंड कल्चरल स्टडीज, जे.एन.यू. आदि ने संबोधित किया। इसके पश्चात अतिथियों ने देसंविवि में स्थापित एशिया के प्रथम बाल्टिक सेंटर में शिक्षा एवं संस्कृति केन्द्र का अवलोकन किया। अतिथियों ने देसंविवि की पहल की सराहना की। साथ ही देसंविवि के मातृसंस्था गायत्री तीर्थ शांतिकुंज में सन् १९२६ से अब तक सतत प्रज्वलित सिद्ध अखण्ड दीप का दर्शन कर युवाओं के विकास की प्रार्थना की। तो वहीं देसंविवि के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या एवं विवि की कुलसंरक्षिका श्रद्धेया शैलदीदी से भेंटकर मार्गदर्शन प्राप्त किया।

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