माघ मेला पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— पà¥à¤²à¥‰à¤Ÿ नं 91 सेकà¥à¤Ÿà¤° नं 2 सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सदाननà¥à¤¦ ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ परिषदॠके पणà¥à¤¡à¤¾à¤² में सनà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ सदाननà¥à¤¦ जी परमहंस से ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ महातà¥à¤®à¤¾ कमल जी ने सतà¥à¤¸à¤‚ग में सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ कि आध-अधूरे और à¤à¥‚ठे जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन का मंजिल मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ और अमरता का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ बोध कदापि समà¥à¤à¤µ नहीं है।
रिपोर्ट - ऑल नà¥à¤¯à¥‚ज़ à¤à¤¾à¤°à¤¤
दि0 23 जनवरी, माघ मेला पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— । पà¥à¤²à¥‰à¤Ÿ नं 91 सेकà¥à¤Ÿà¤° नं 2 सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ सदाननà¥à¤¦ ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ परिषदॠके पणà¥à¤¡à¤¾à¤² में सनà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ सदाननà¥à¤¦ जी परमहंस से ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ महातà¥à¤®à¤¾ कमल जी ने सतà¥à¤¸à¤‚ग में सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ कि आध-अधूरे और à¤à¥‚ठे जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन का मंजिल मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ और अमरता का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ बोध कदापि समà¥à¤à¤µ नहीं है। जीवन का परमलकà¥à¤·à¥à¤¯ व उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ इससे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नही हो सकता । आध-अधूरे जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‹à¤ªà¤¦à¥‡à¤¶ में ‘नीम हकीम खतरे जान’ वाली यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ लागू होती है । उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यह à¤à¥€ बताया कि यह मानवीय शरीर (पिणà¥à¤¡) इस सृषà¥à¤Ÿà¤¿ की सरà¥à¤µà¥‹à¤‚तà¥à¤¤à¤® मशीन है जो परमातà¥à¤®à¤¾-परमेशà¥à¤µà¤°-खà¥à¤¦à¤¾-गॉड-à¤à¤—वान ने हम लोगों को अहैतॠकी कृपा कर अपने ही निजरूप को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया है । इसीलिये ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤µà¥‡à¤¤à¥à¤¤à¤¾ सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ ‘ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ रूप à¤à¤—वदà¥à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ रूप सतà¥à¤¯à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨â€™ के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त कोई à¤à¥€ जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¥ à¤à¤•à¥à¤¤ ‘समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£â€™ (संसार-शरीर-जीव-ईशà¥à¤µà¤°-परमेशà¥à¤µà¤°) को समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ (शिकà¥à¤·à¤¾-सà¥à¤µà¤¾à¤§à¥à¤¯à¤¾à¤¯-योग साधना या अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® और ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ से) जानते हà¥à¤¯à¥‡ देख सकता है । महातà¥à¤®à¤¾ जी ने कहा- परमातà¥à¤®à¤¾-परमेशà¥à¤µà¤°-खà¥à¤¦à¤¾-गॉड-à¤à¤—वानॠअपने परमधाम या बिहिशà¥à¤¤ या पैराडाइज में हमेशा रहता है । अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ परमातà¥à¤®à¤¾-परमेशà¥à¤µà¤° बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤£à¥à¤¡ में नहीं होता बलà¥à¤•à¤¿ बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤£à¥à¤¡ ही उनमें रहता है । अवतार बेला में à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° अवतारी शरीर रूप सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ रूप à¤à¤—वदीय विधान रूप सतà¥à¤¯à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ से गीता वाले ही विराटरूप साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ देखा और बात-चीत करते हà¥à¤¯à¥‡ पहचाना जाता है । उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा- सचà¥à¤šà¤¾ सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वेद का तीनों सूतà¥à¤° का सैदà¥à¤§à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¿à¤• और पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥Œà¤—िक जà¥à¤žà¤¾à¤¨ देकर अपनी असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¥à¤µ, मारà¥à¤— और मंजिल तीनों का सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤ƒ बोध कराते हैं जैसे की ‘असदोमासदà¥à¤—मय’ (असतà¥à¤¯ नहीं, सतà¥à¤¯ की ओर चलें ! जिसके अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त करà¥à¤®à¤ªà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ सांसारिक जीवन जीने वालों को पूरà¥à¤£ गà¥à¤°à¥ या सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ सबसे पहले ‘जगनà¥à¤®à¤¿à¤¥à¥à¤¯à¤¾â€™ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ यह जगत à¤à¥‚ठा है को पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥Œà¤—िक रूप से दिखाता है । यानी सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ वही है जो सबसे पहले अनà¥à¤à¤µ और बोध सहित शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को यह सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤ƒ जना और दिखा दे कि संसार और शरीर दोनों ही बिलà¥à¤•à¥à¤² मिथà¥à¤¯à¤¾ है । तरà¥à¤• से सिदà¥à¤§ करके नहीं सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤ƒ पà¥à¤°à¤¾à¤¯à¥Œà¤—िक विधान से शरीर में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ जीव को शरीर से बाहर निकल कर जाने की यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ बताकर और तदà¥à¤¨à¥à¤¸à¤¾à¤° शरीर के बाहर निकाल कर साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ दिखाता है कि देख इस संसार के असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¥à¤µ के असलियत को कि यह कà¥à¤¯à¤¾ और कैसा है ?‘तमसो मा जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤—मय’ (मोह-अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° नहीं, दिवà¥à¤¯ जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ की ओर चलें। सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ जड़ जगत रूप मोह अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° से बहिरà¥à¤®à¥à¤–ी इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को आà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤° मà¥à¤–ी बनाते हà¥à¤¯à¥‡ अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥ जीव को शरीर व संसार के ममता, मोह, आसकà¥à¤¤à¤¿ रूपी पतन विनाश व अनà¥à¤§à¤•à¤¾à¤° से मोड़कर आतà¥à¤®à¤¾-ईशà¥à¤µà¤°-बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹-सोल-नूर-सà¥à¤ªà¤¿à¤°à¤¿à¤Ÿ-सः जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ शिव को दिवà¥à¤¯ दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से दिखाते हà¥à¤¯à¥‡ उससे जोड़ देना सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ का दूसरा कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤• उपदेश होता है हालाà¤à¤•à¤¿ इस विधान से जीव को मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ और अमरता की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ नहीं हो पाती कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यह विधान से सिरà¥à¤« आतà¥à¤®à¤¾-ईशà¥à¤µà¤°-बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ होती है परमातà¥à¤®à¤¾-परमेशà¥à¤µà¤°-परमबà¥à¤°à¤®à¥à¤¹ की नहीं जो à¤à¤•à¤®à¥‡à¤µ à¤à¤• मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿-अमरताका दाता होता है । अतः मनà¥à¤·à¥à¤¯ जीवन के मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ और अमरता रूप मोकà¥à¤· रूप चरम व परम उपलबà¥à¤§à¤¿ के पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के लिये सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को तीसरे व अगले उपदेश के तरफ ले चलता है । ‘मृतà¥à¤¯à¥‹à¤°à¥à¤®à¤¾à¤½à¤®à¥ƒà¤¤à¤‚ गमय’ (मृतà¥à¤¯à¥ नहीं, अमरता के ओर चलें ! - सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€à¤œà¥€ ने आगे बताया कि सचà¥à¤šà¥‡ गà¥à¤°à¥ की पहचान सचà¥à¤šà¥‡ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ (ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨) के आधार पर होती है और सचà¥à¤šà¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ वह है जिसमें à¤à¤¾à¤à¤•à¤¨à¥‡ पर चार अकà¥à¤·à¤° वाला विराट पà¥à¤°à¥à¤· रूप à¤à¤—वान सामने ही दिखाई देता हो। à¤à¤—वानॠके सचà¥à¤šà¥‡ होने को तब सà¥à¤µà¥€à¤•à¤¾à¤°à¥‡à¤‚, जब उसमें समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ को समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£à¤¤à¤¯à¤¾ (सारी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ जिसमें बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹à¤¾, इनà¥à¤¦à¥à¤° और शंकर आदि-आदि à¤à¥€ समà¥à¤®à¤¿à¤²à¤¿à¤¤ हैं, की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿, सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ व लय-विलय à¤à¥€ ) साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ देखते हà¥à¤¯à¥‡ आमने-सामने ही बात-चीत सहित उनका परिचय-पहचान पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता हो तथा उनमें मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ और अमरता का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ बोध à¤à¥€ मिले। यदि à¤à¤¸à¤¾ नहीं तो वह सचà¥à¤šà¤¾ à¤à¤—वान नहीं और जब वह सचà¥à¤šà¤¾ à¤à¤—वान नहीं तो वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सच नहीं और जब वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ही सच नहीं तो वह जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ गà¥à¤°à¥ à¤à¤²à¤¾ कैसे सच हो सकता है ! सचà¥à¤šà¥‡ गà¥à¤°à¥ से सचà¥à¤šà¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ और सचà¥à¤šà¥‡ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में सचà¥à¤šà¤¾ à¤à¤—वान तथा सचà¥à¤šà¥‡ à¤à¤—वानॠसे मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿-अमरता का साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥ बोध ततà¥à¤•à¥à¤·à¤£ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ होता है । सचà¥à¤šà¥‡ à¤à¤—वान वाले जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को ही ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ कहते हैं और ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¦à¤¾à¤¤à¤¾ को ही सदà¥à¤—à¥à¤°à¥ कहते हैं । यही ततà¥à¤¤à¥à¤µà¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨ वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में पूरे à¤-मणà¥à¤¡à¤² पर ही à¤à¤•à¤®à¥‡à¤µ à¤à¤•à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤° à¤à¤• सनà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° सà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ सदाननà¥à¤¦ जी परमहंस से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤µà¤¾ है, सब à¤à¤—वतॠकृपा ।