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सच्चे गुरु की पहचान ऐसे करें-- सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द परमहंस


माघ मेला प्रयाग प्लॉट नं 91 सेक्टर नं 2 स्थित सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद् के पण्डाल में सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस से तत्त्वज्ञान प्राप्त महात्मा कमल जी ने सत्संग में सुनाया कि आध-अधूरे और झूठे ज्ञान से मनुष्य जीवन का मंजिल मुक्ति और अमरता का साक्षात् बोध कदापि सम्भव नहीं है।

रिपोर्ट  - à¤‘ल न्यूज़ भारत

दि0 23 जनवरी, माघ मेला प्रयाग । प्लॉट नं 91 सेक्टर नं 2 स्थित सदानन्द तत्त्वज्ञान परिषद् के पण्डाल में सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस से तत्त्वज्ञान प्राप्त महात्मा कमल जी ने सत्संग में सुनाया कि आध-अधूरे और झूठे ज्ञान से मनुष्य जीवन का मंजिल मुक्ति और अमरता का साक्षात् बोध कदापि सम्भव नहीं है। जीवन का परमलक्ष्य व उद्देश्य इससे प्राप्त नही हो सकता । आध-अधूरे ज्ञानोपदेश में ‘नीम हकीम खतरे जान’ वाली युक्ति लागू होती है । उन्होंने यह भी बताया कि यह मानवीय शरीर (पिण्ड) इस सृष्टि की सर्वोंत्तम मशीन है जो परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान ने हम लोगों को अहैतु की कृपा कर अपने ही निजरूप को प्रदान किया है । इसीलिये तत्त्ववेत्ता सद्गुरु से प्राप्त ‘तत्त्वज्ञान रूप भगवद्ज्ञान रूप सत्यज्ञान’ के अन्तर्गत कोई भी जिज्ञासु भक्त ‘सम्पूर्ण’ (संसार-शरीर-जीव-ईश्वर-परमेश्वर) को सम्पूर्णतया (शिक्षा-स्वाध्याय-योग साधना या अध्यात्म और तत्त्वज्ञान से) जानते हुये देख सकता है । महात्मा जी ने कहा- परमात्मा-परमेश्वर-खुदा-गॉड-भगवान् अपने परमधाम या बिहिश्त या पैराडाइज में हमेशा रहता है । अर्थात् परमात्मा-परमेश्वर ब्रम्हाण्ड में नहीं होता बल्कि ब्रम्हाण्ड ही उनमें रहता है । अवतार बेला में एकमात्र अवतारी शरीर रूप सद्गुरु से प्राप्त तत्त्वज्ञान रूप भगवदीय विधान रूप सत्यज्ञान से गीता वाले ही विराटरूप साक्षात् देखा और बात-चीत करते हुये पहचाना जाता है । उन्होंने कहा- सच्चा सद्गुरु अपने शिष्यों को वेद का तीनों सूत्र का सैद्धान्तिक और प्रायौगिक ज्ञान देकर अपनी अस्तित्त्व, मार्ग और मंजिल तीनों का स्पष्टतः बोध कराते हैं जैसे की ‘असदोमासद्गमय’ (असत्य नहीं, सत्य की ओर चलें ! जिसके अन्तर्गत कर्मप्रधान सांसारिक जीवन जीने वालों को पूर्ण गुरु या सद्गुरु सबसे पहले ‘जगन्मिथ्या’ अर्थात् यह जगत झूठा है को प्रायौगिक रूप से दिखाता है । यानी सद्गुरु वही है जो सबसे पहले अनुभव और बोध सहित शिष्यों को यह स्पष्टतः जना और दिखा दे कि संसार और शरीर दोनों ही बिल्कुल मिथ्या है । तर्क से सिद्ध करके नहीं स्पष्टतः प्रायौगिक विधान से शरीर में स्थित जीव को शरीर से बाहर निकल कर जाने की युक्ति बताकर और तद्नुसार शरीर के बाहर निकाल कर साक्षात् दिखाता है कि देख इस संसार के अस्तित्त्व के असलियत को कि यह क्या और कैसा है ?‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ (मोह-अन्धकार नहीं, दिव्य ज्योति की ओर चलें। सद्गुरु जड़ जगत रूप मोह अन्धकार से बहिर्मुखी इन्द्रियों को आभ्यान्तर मुखी बनाते हुये अर्थात् जीव को शरीर व संसार के ममता, मोह, आसक्ति रूपी पतन विनाश व अन्धकार से मोड़कर आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह-सोल-नूर-स्पिरिट-सः ज्योति शिव को दिव्य दृष्टि से दिखाते हुये उससे जोड़ देना सद्गुरु का दूसरा क्रियात्मक उपदेश होता है हालाँकि इस विधान से जीव को मुक्ति और अमरता की प्राप्ति नहीं हो पाती क्योंकि यह विधान से सिर्फ आत्मा-ईश्वर-ब्रम्ह की प्राप्ति होती है परमात्मा-परमेश्वर-परमब्रम्ह की नहीं जो एकमेव एक मुक्ति-अमरताका दाता होता है । अतः मनुष्य जीवन के मुक्ति और अमरता रूप मोक्ष रूप चरम व परम उपलब्धि के प्राप्ति के लिये सद्गुरु अपने शिष्यों को तीसरे व अगले उपदेश के तरफ ले चलता है । ‘मृत्योर्माऽमृतं गमय’ (मृत्यु नहीं, अमरता के ओर चलें ! - स्वामीजी ने आगे बताया कि सच्चे गुरु की पहचान सच्चे ज्ञान (तत्त्वज्ञान) के आधार पर होती है और सच्चा ज्ञान वह है जिसमें झाँकने पर चार अक्षर वाला विराट पुरुष रूप भगवान सामने ही दिखाई देता हो। भगवान् के सच्चे होने को तब स्वीकारें, जब उसमें सम्पूर्ण को सम्पूर्णतया (सारी सृष्टि जिसमें ब्रम्हा, इन्द्र और शंकर आदि-आदि भी सम्मिलित हैं, की उत्पत्ति, स्थिति व लय-विलय भी ) साक्षात् देखते हुये आमने-सामने ही बात-चीत सहित उनका परिचय-पहचान प्राप्त होता हो तथा उनमें मुक्ति और अमरता का साक्षात् बोध भी मिले। यदि ऐसा नहीं तो वह सच्चा भगवान नहीं और जब वह सच्चा भगवान नहीं तो वह ज्ञान सच नहीं और जब वह ज्ञान ही सच नहीं तो वह ज्ञानदाता गुरु भला कैसे सच हो सकता है ! सच्चे गुरु से सच्चा ज्ञान और सच्चे ज्ञान में सच्चा भगवान तथा सच्चे भगवान् से मुक्ति-अमरता का साक्षात् बोध तत्क्षण प्राप्त होता है । सच्चे भगवान वाले ज्ञान को ही तत्त्वज्ञान कहते हैं और तत्त्वज्ञानदाता को ही सद्गुरु कहते हैं । यही तत्त्वज्ञान वर्तमान में पूरे भ-मण्डल पर ही एकमेव एकमात्र एक सन्त ज्ञानेश्वर स्वामी सदानन्द जी परमहंस से प्राप्त हुवा है, सब भगवत् कृपा ।

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