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पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान तथा वर्तमान और भविष्य में समन्वय स्थापित करने का अद्भुत कार्य किया - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने मानवतावादी चिंतक स्वामी विवेकानंद को आज उनकी पुन्यतिथि के अवसर पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन का परिचय न केवल भारत को बल्कि पश्चिमी दुनिया को भी कराया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने मानवतावादी चिंतक स्वामी विवेकानंद को आज उनकी पुन्यतिथि के अवसर पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि उन्होंने वेदांत और योग के भारतीय दर्शन का परिचय न केवल भारत को बल्कि पश्चिमी दुनिया को भी कराया। उनके अनुसार मनुष्य का जीवन ही एक धर्म है। धर्म न तो पुस्तकों में है, न सिद्धांतों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने ईश्वर का अनुभव स्वयं कर सकता है और “मेरा ईश्वर दुखी, पीड़ित हर जाति का निर्धन मनुष्य है। मानवता का उत्कृष्ट सिद्धान्त देने वाले स्वामी विवेकानन्द जी को आज की परमार्थ गंगा आरती समर्पित की गयी। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द जी ने शिकागो धर्म सभा में वसुधैव कुटुम्बकम् और विश्व बंधुत्त्व का संदेश दिया जो आज भी याद किया जाता है। जैसे नदियां विभिन्न धाराओं और विभिन्न दिशाओं से बहते हुए एक ही समुद्र में जाकर मिलती हैं, वैसे ही मनुष्य भी जीवन में जो धार्मिक मार्ग चुनता है, जो भी पद्धति अपनाता है और जो भी नाम सुमिरन करता है परन्तु वे सभी धारायें एक ही सर्वशक्तिमान ईश्वर की ओर ले जाती हैं। स्वामी विवेकानन्द जी ने वर्षों पहले अपने संदेश में कहा था कि भारत की समस्त समस्याओं का मूल कारण अशिक्षा है इसलिये समाज के प्रत्येक व्यक्ति की पहंुच शिक्षा तक हो, जो आज की भी सबसे बड़ी जरूरत है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारी शिक्षा केवल रोजगार और करियर निर्माण तक सीमित न रहे बल्कि शिक्षा के माध्यम से आत्मविश्वास और राष्ट्र भक्ति में भी वृद्धि हो तथा हमारी शिक्षा पद्धति चरित्र का निर्माण करने वाली हो। उन्होंने कहा कि शिक्षित नारी न केवल अपना बल्कि समाज का भी कल्याण कर सकती है इसलिये बेटा हो या बेटी शिक्षा सभी के लिये अत्यंत आवश्यक है।

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