कà¥à¤› बचà¥à¤šà¥‡ इतने बदमाश थे कि जिस वकà¥à¤¤ गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ डूबकर पà¥à¤¾ रहे होते, उस वकà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° बचà¥à¤šà¥‡ पिछले दरवाजे से बाहर निकल चà¥à¤•à¥‡ होते थे। ककà¥à¤·à¤¾ के शà¥à¤°à¥ होने के वकत बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ लगà¤à¤— 50 होती थी, जबकि गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ ककà¥à¤·à¤¾ समापà¥à¤¤ करते तो कà¥à¤² जमा 10-12 बचà¥à¤šà¥‡ बैठे होते। पर, मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• दिन à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ पर नाराज होते नहीं देखा। यह सिलसिला दो साल तक à¤à¤¸à¥‡ ही चलता रहा।
रिपोर्ट - सà¥à¤¶à¥€à¤² उपाधà¥à¤¯à¤¾à¤¯
उनकी सà¥à¤¦à¥€à¤°à¥à¤˜ काया, सीने पर लहराती सफेद दाà¥à¥€, मोटे फà¥à¤°à¥‡à¤® का चशà¥à¤®à¤¾, लंबे डग à¤à¤°à¤¤à¥‡ पांव और रौबीली आवाज सà¥à¤¨à¤•à¤° पहली निगाह में किसी à¤à¥€ छातà¥à¤° को डर का अहसास होने लगता था। उनका नाम à¤à¥€ à¤à¤¾à¤°à¥€ à¤à¤°à¤•à¤® था-à¤à¥‹à¤ªà¤¾à¤² सिंह शरà¥à¤®à¤¾ पौलतà¥à¤¸à¥à¤¯! सिंह, शरà¥à¤®à¤¾ और पौलतà¥à¤¸à¥à¤¯, वे तीनों à¤à¤• साथ थे। सà¥à¤¬à¤¹ की पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ में जब वे सà¤à¤¾ का संचालन करते तो कà¥à¤› देर के लिठसब कà¥à¤› ठहर जाता, केवल गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ की आवाज गूंजती। सà¤à¤¾ के तà¥à¤°à¤‚त बाद वे ककà¥à¤·à¤¾ में चले जाते और इंटरवल की घंटी लगने के बाद ही कà¥à¤› देर के लिठबाहर दिखते। थानाà¤à¤µà¤¨ कसबे के इंटर काॅलेज में मà¥à¤à¥‡ दो बरस उनसे पà¥à¤¨à¥‡ का मौका मिला। उनसे जà¥à¥œà¥€ सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की लंबी शà¥à¤°à¤‚खला कई दिन से मन में घà¥à¤®à¥œ रही है। हमारे पाठà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में रामचरित मानस का कà¥à¤› हिसà¥à¤¸à¤¾ à¤à¥€ लगा हà¥à¤† था। पà¥à¤¾à¤¤à¥‡ वकà¥à¤¤ गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ इतने à¤à¤¾à¤µà¥à¤• हो जाते कि à¤à¤¸à¤¾ लगता जैसे à¤à¤—वान राम को नहीं, बलà¥à¤•à¤¿ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ वनवास दिया गया हो। उनकी आंखों में आंसू के मोती चमकने लगते। वे पà¥à¤¾à¤¤à¥‡ जाते और रोते जाते। यह सिलसिला इतना लंबा चलता कि अगला पीरियड à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥€à¤‚ के नाम हो जाता है और फिजिकà¥à¤¸ या केमेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ वाले सर दरवाजे के बाहर टहलते रहते। ककà¥à¤·à¤¾ में 50 से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ बचà¥à¤šà¥‡ थे। जिस कमरे में पà¥à¤¾à¤ˆ होती, उसमें दो दरवाजे थे। कà¥à¤› बचà¥à¤šà¥‡ इतने बदमाश थे कि जिस वकà¥à¤¤ गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ डूबकर पà¥à¤¾ रहे होते, उस वकà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° बचà¥à¤šà¥‡ पिछले दरवाजे से बाहर निकल चà¥à¤•à¥‡ होते थे। ककà¥à¤·à¤¾ के शà¥à¤°à¥ होने के वकत बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की संखà¥à¤¯à¤¾ लगà¤à¤— 50 होती थी, जबकि गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ ककà¥à¤·à¤¾ समापà¥à¤¤ करते तो कà¥à¤² जमा 10-12 बचà¥à¤šà¥‡ बैठे होते। पर, मैंने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤• दिन à¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ पर नाराज होते नहीं देखा। यह सिलसिला दो साल तक à¤à¤¸à¥‡ ही चलता रहा। उनका पहनाव बड़ा कà¥à¤°à¤¾à¤‚तिकारी था। वे किसी दिन केवल धोती पहनकर आते, बदन का ऊपरी à¤à¤¾à¤— खà¥à¤²à¤¾ रहता। उनके सफेद बाल गरà¥à¤¦à¤¨ तक लटके होते। à¤à¤¸à¤¾ लगता जैसे उनके बालों और दाà¥à¥€ के बीच पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¸à¥à¤ªà¤°à¥à¤§à¤¾ चल रही हो। इस पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¸à¥à¤ªà¤°à¥à¤§à¤¾ में आखिर में दाà¥à¥€ की जीत हà¥à¤ˆà¤‚। सिर के बाल घटते गठऔर दाà¥à¥€ लंबी होती गई। उस पहनावे में वे किसी संत की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ लगते। ठीक अगले दिन वे फिर अपने सहकरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को चैंका देते और बंद गले का सूट पहनकर काॅलेज आते। बाकी दिनों में खादी का लंबा कà¥à¤°à¥à¤¤à¤¾ और पतली मोहरी का पाजामा ही उनकी पहचान होती। à¤à¤• बार à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ नहीं हà¥à¤†, जब उनके पाजामे का नाड़ा अपनी सही जगह पर रहा हो, उनका नाड़ा हमेशा ही घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‹à¤‚ तक लटकता रहता। बदमाश बचà¥à¤šà¥‡ इस बात की कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करते कि यदि कोई गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ का नाड़ा पकड़कर खींच दे तो कà¥à¤¯à¤¾ होगा! पर, बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की यह कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ कà¤à¥€ साकार नहीं हà¥à¤ˆà¥¤ उनकी नाड़ा सà¥à¤¥à¤¾à¤¯à¥€ पहचान की तरह हमेशा लटकता रहा। वे अकà¥à¤¸à¤° अपने खोये रहते। घर से साइकिल पर आते और वापस जाते वकà¥à¤¤ यह à¤à¥‚ल जाते कि सà¥à¤¬à¤¹ साइकिल से आठथे। वे पैदल ही घर पहà¥à¤‚च जाते। घर पर पहà¥à¤‚चने के बाद उनकी सहधरà¥à¤®à¤¿à¤£à¥€, जो कि खà¥à¤¦ à¤à¥€ शिकà¥à¤·à¤• थीं, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ याद दिलाती और वे अगले दिन साइकिल लेकर आने का वादा करते। कई बार à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥€ होता कि साइकिल उनके हाथ में होती, लेकिन उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ याद नहीं रहता कि साइकिल पर सवार होकर जाना चाहिà¤à¥¤ बाजार से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤, कोई उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ याद दिलाता, गà¥à¤°à¥à¤œà¥€! साइकिल में कोई खराबी आ गई है कà¥à¤¯à¤¾ ? फिर उनकी लौकिक चेतना जागती और वे साइकिल पर सवार हो जाते। काॅलेज से लेकर घर पहà¥à¤‚चने तक रासà¥à¤¤à¥‡ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इतने लोग पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करते कि मेरे जैसे देहाती बचà¥à¤šà¥‡ के लिठआशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ करना à¤à¥€ मà¥à¤¶à¥à¤•à¤¿à¤² हो जाता। शà¥à¤°à¥ के दिनों में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखकर डर लगा। वे गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡à¤µà¤¾à¤²à¥‡ लगते थे। उनसे पास जाने, बात करने, अपनी बात कहने, समसà¥à¤¯à¤¾ बताने से घबराहट होती थी। लेकिन, वकà¥à¤¤ के साथ मà¥à¤à¥‡ लगने लगा कि मेरी नियति जिसे तलाश रही है, वे वही हैं। उस बचपने में कà¥à¤› कविताà¤à¤‚ लिखी थी, à¤à¤• दिन वे उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दिखाई। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कविताà¤à¤‚ देखी और अगले दिन अपने घर आने को कहा। उनका घर कसबे को पार करके सहारनपà¥à¤°-दिलà¥à¤²à¥€ हाइवे पर à¤à¤• सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨-सी जगह पर था। घर में दो ही पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ थे, गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ और उनकी सहधरà¥à¤®à¤¿à¤£à¥€à¥¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• लड़की गोद ली हà¥à¤ˆ थी, जो उन दिनों कहीं बाहर पà¥à¤¤à¥€ थी। गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ का घर किसी औसत आदमी की समठऔर समà¤à¤¨à¥‡ के पैमानों से परे थे। घर का पहला हिसà¥à¤¸à¤¾ उनका सà¥à¤Ÿà¥‚डियो था, जहां वे पेंटिंग बनाते थे। इसके अगले हिसà¥à¤¸à¥‡ में उनकी लाइबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ थी। फिर à¤à¤• और कमरा था, जो कमरा कम, मंदिर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ था। घर के अलग-अलग हिसà¥à¤¸à¥‹à¤‚ पर देवताओं की बड़ी पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾à¤à¤‚ मौजूद थीं। कà¥à¤› कलाकृतियां à¤à¥€ यहां-वहां दिख रही थी। पूरा घर किसी संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ से कम नहीं था। मैंने, पहली बार à¤à¤¸à¤¾ घर देखा था। मैं, आंखे फाड़े गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ के घर को देखता रहा। उस दिन à¤à¥€ रोज की तरह ही मà¥à¤à¥‡ रात होने से पहले गांव लौटना था, आखिरी बस का टाइम à¤à¥€ नजदीक था। मैंने, जाने के लिठपूछा तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कहा, तà¥à¤® गदà¥à¤¯ अचà¥à¤›à¤¾ लिख सकते हो, अà¤à¥€ कविताà¤à¤‚ मत लिखना। मà¥à¤à¥‡ आज à¤à¥€ नहीं पता कि गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ ने à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ कहा होगा, पर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° लोग ये ही मानते हैं कि कविता की तà¥à¤²à¤¨à¤¾ में मेरा गदà¥à¤¯ ठीक है। बीतते वकà¥à¤¤ के साथ कसबे का इंटर काॅलेज छूट गया। रोजी-रोटी की जदà¥à¤¦à¥‹à¤œà¤¹à¤¦ यहां-वहां à¤à¤Ÿà¤•à¤¾à¤¤à¥€ रही। à¤à¤• दिन पतà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°-मितà¥à¤° à¤à¤¾à¤ˆ राजन शरà¥à¤®à¤¾ ने बताया कि गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ संनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ हो गठहैं और देश-दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में घूम रहे हैं। मैं, हमेशा उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ याद करता रहा, जब किसी परिचित से मिलते तो वे à¤à¥€ मà¥à¤à¥‡ याद करते। फिर, à¤à¤• दिन गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ ने अपनी लौकिक-यातà¥à¤°à¤¾ पूरी कर ली। लेकिन, मेरे मानस में वे आज à¤à¥€ जिंदा हैं। कई बार मà¥à¤à¥‡ लगता कि वे ही महातà¥à¤®à¤¾ रावण हैं। गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ ने जब रावण की विदà¥à¤µà¤¤à¤¾ को केंदà¥à¤° में रखकर महातà¥à¤®à¤¾ रावण उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लिखा तो कई लोगों को समठही नहीं आया कि उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤¯à¤¾ लिख डाला। असल में, वे अपने समय से आगे की रचना लिख रहे थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने रावण के उस पकà¥à¤· को उà¤à¤¾à¤°à¤¾, जो हिंदी जनमानस की समठसे परे था। इसके बाद उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने महरà¥à¤·à¤¿ वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ पर कृषà¥à¤£ दà¥à¤µà¥ˆà¤ªà¤¾à¤¯à¤¨ और परशà¥à¤°à¤¾à¤® पर परसà¥à¤§à¤° राम नाम से उपनà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लिखे। बाद के दौर में उनके बारे में सोचता तो कई बार वे मà¥à¤à¥‡ ओशो रजनीश जैसे लगते और कà¥à¤› मामलों में उनकी समठऔर तरà¥à¤•à¤£à¤¾ उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ जे. कृषà¥à¤£à¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ के बरअकà¥à¤¸ खड़ा करती। उनका हिंदी के अलावा अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ और संसà¥à¤•à¥ƒà¤¤ पर à¤à¥€ समान अधिकार था। वे उतने ही अधिकार से पंजाबी और कौरवी बोलते थे। वे उस पीà¥à¥€ के शिकà¥à¤·à¤• थे, जिनकी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚à¤à¤¿à¤• शिकà¥à¤·à¤¾ उरà¥à¤¦à¥‚ में हà¥à¤ˆ थी। लोग कहते थे, वे à¤à¤• दरà¥à¤œà¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤à¤‚ जानते थे, लेकिन मैंने छह à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में उनकी सिदà¥à¤§à¤¹à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤¾ देखी थी। राषà¥à¤Ÿà¥à¤° के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ उनका पà¥à¤°à¥‡à¤® किसी गिरोह का बंधà¥à¤† नहीं था, जब वे अपनी धà¥à¤¨ में गाते तो ‘वंदे मातरम‘ के जरिये अलग ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ की रचना करते। उनसे सà¥à¤¨à¤¾ हà¥à¤† वंदे मातरम आज कानों में गूंजता है। अचà¥à¤›à¥€ बात यह थी कि 30 साल पहले का वंदे मातरम आज की तरह सांपà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯à¤¿à¤• चशà¥à¤®à¥‡ की गिरफà¥à¤¤ में नहीं था। अब, जब à¤à¥€ कà¤à¥€ सहारनपà¥à¤° से दिलà¥à¤²à¥€ की ओर जाना होता है तो थानाà¤à¤µà¤¨ कसबे में उनके घर को देखकर मन तरल हो जाता है। गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ अब इस घर में नहीं रहते, घर पर ताला लगा है। संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ उनकी दतà¥à¤¤à¤• पà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ à¤à¥€ किसी दूसरी जगह रहती होंगी। घर के ऊपर के हिसà¥à¤¸à¥‡ में à¤à¤—वान शिव अब à¤à¥€ मौजूद हैं। अकà¥à¤¸à¤° मन के à¤à¥€à¤¤à¤° à¤à¤• बेचैनी रहती है कि काश, à¤à¤• बार फिर गà¥à¤°à¥à¤œà¥€ से मिलना हो पाता और मैं अपने छातà¥à¤°-छातà¥à¤°à¤¾à¤“ं को दिखा पाता कि ‘पूरे कद के गà¥à¤°à¥â€™ कैसे होते हैं।