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पेड़ मित्र बनें व पर्यावरण मित्र बनें - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


मित्रता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि अब समय आ गया है कि हम पेड़ों से मित्रता करंे; अपने पर्यावरण से मित्रता करें क्योंकि ये मित्रता सदा-सदा के लिये कायम रहेगी इसलिये आईये पेड़ मित्र बनें व पर्यावरण मित्र बनें।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश। आज मित्रता दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने अपने संदेश में कहा कि अब समय आ गया है कि हम पेड़ों से मित्रता करंे; अपने पर्यावरण से मित्रता करें क्योंकि ये मित्रता सदा-सदा के लिये कायम रहेगी इसलिये आईये पेड़ मित्र बनें व पर्यावरण मित्र बनें। अगस्त के पहले रविवार को प्रतिवर्ष भारत में मित्रता दिवस मनाया जाता है। स्वामी चिदानन्द सस्वती ने अपने संदेश में कहा कि प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिये हम सभी को साथ आना होगा और अपने पर्यावरण को अपना सबसे श्रेष्ठ मित्र बनाना होगा। जिस प्रकार दो मित्र एक-दूसरे की प्रकृति को समझते हुये प्यार और सहकार के साथ रहते हंै तथा रिश्तों में आने वाली सभी दीवारों को पाटते हुये आगे बढ़ते हैं उसी प्रकार हमें अपनी प्रकृति और पर्यावरण को समझना होगा। प्रकृति और पर्यावरण के साथ घनिष्ठ संबंध जोड़कर एक नई संस्कृति का निर्माण करना होगा यही आज का दिन हमें संदेश देता है। स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में अमन, एकता, सद्भाव, समरसता और भाईचारे की सबसे अधिक जरूरत है। किसी ने क्या खूब कहा है कि ’’मैंने गीता और क़ुरान को कभी लड़ते नहीं देखा हंै, और जो इनके लिये लड़ते है उन्हें कभी पढ़ते नहीं देखा है।’ वास्तव में हमें वैश्विक स्तर पर सद्भाव की संस्कृति का निर्माण करना होगा। अब समय आ गया कि हम ’पर्यावरण के पैरोकार और पृथ्वी के पहरेदार’ बने। विगत कुछ वर्षों मंे मनुष्य द्वारा प्रकृति का अत्यधिक शोषण किया गया। जैसे-जैसे शहरीकरण बढ़ता गया पेेड़ों को काटा गया, भूजल का अत्यधिक दोहन किया गया, अगर यह लम्बे समय तक ऐसा ही चलता रहा तो हरे-भरे क्षेत्र रेगिस्तान बन जायेंगे इसलिये अब जन शक्ति-जल शक्ति बने; जल जागरण-जन जागरण बने, अपने जन्मदिवस, पर्व और त्योहारों के अवसर पर पेडे नहीं पेड़ बाँटे; हर मेड पर पेड लगे, मेरा कचरा मेरी जिम्मेदारी; शिव जी के गले के अभिषेक के साथ अपनी गली का भी अभिषेक; शिव जी के मस्तक पर अभिषेक के साथ अपनी गलियों का भी अभिषेक करें, मेरा गांव-मेरा गौरव; मेरा शहर, मेरी शान का संकल्प कराते हुये हर गांव और शहरों को प्रकृति के अनुरूप बनाने और जीवन जीने का संकल्प लेना होगा।

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