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शांतिकुंज ने हर्षोल्लास के साथ मनाया कृष्ण जन्माष्टमी पर्व


गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज में संस्कृति के संरक्षक भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म के अवसर पर वैदिक विधिविधान के साथ उनके पूजन-अर्चन कर हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाया गया। उत्सव में सम्मिलित सभी परिजन ‘साँस-साँस में नाम बसैया, प्रेम के प्यासे कृष्ण कन्हैया’ ‘जय गोविन्दा जय गोपाला’, ‘जब जन्मे कृष्ण भगवान’, ‘कब आओगे कृष्ण कन्हाई’ आदि गीतों के साथ झूमते रहे। इस अवसर पर श्रीकृष्ण के परिधान में सजे नन्हें-मुन्ने बच्चों ने कार्यक्रम में उत्साह बढ़ा दिया।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार १९ अगस्त। गायत्री तीर्थ शान्तिकुञ्ज में संस्कृति के संरक्षक भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म के अवसर पर वैदिक विधिविधान के साथ उनके पूजन-अर्चन कर हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाया गया। उत्सव में सम्मिलित सभी परिजन ‘साँस-साँस में नाम बसैया, प्रेम के प्यासे कृष्ण कन्हैया’ ‘जय गोविन्दा जय गोपाला’, ‘जब जन्मे कृष्ण भगवान’, ‘कब आओगे कृष्ण कन्हाई’ आदि गीतों के साथ झूमते रहे। इस अवसर पर श्रीकृष्ण के परिधान में सजे नन्हें-मुन्ने बच्चों ने कार्यक्रम में उत्साह बढ़ा दिया। शांतिकुंज के मुख्य सभागार में आयोजित कृष्ण जन्माष्टमी के कार्यक्रम में संचालकों ने कहा कि हमें भगवान् श्रीकृष्ण को केवल उत्सव में नहीं, जीवन में भी अवतरित होने के लिए उन्हें आमन्त्रित करना चाहिए एवं इसके लिए समुचित भूमिका प्रस्तुत करना चाहिए। श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर यदि हमारा जीवन श्रीकृष्णमय बन सके, तभी उत्सव मनाना सार्थक है। अपने संदेश में गायत्री परिवार प्रमुख श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने कहा कि इस समय संसार की जैसी परिस्थिति हो रही है, उसमें भगवान् श्रीकृष्ण के उपदेशों को समझना आवश्यक हो गया है। ऐसी हालत में प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि किसी आततायी के अन्याय और अत्याचार के सम्मुख सिर न झुकायें और जो व्यक्ति दुर्भाग्य, अन्याय के शिकार बन गए हैं, उनकी सहायता के लिए भी सदा तैयार रहें। यह सच है कि इस प्रकार किसी बड़े शक्तिशाली का विरोध कर सकना हर एक का काम नहीं है, पर अगर हम न्याय के पक्षधर हैं और सच्चे हृदय से कार्य करेंगे, तो हमको अपने जैसे अन्य सहयोगी भी मिल जाएँगे। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में शांतिकुंज, गायत्री कुंज, ब्रह्मवर्चस एवं देश-विदेश से आये हजारों परिजन सम्मिलित रहे। पूजन कार्यक्रम का संचालन श्याम बिहारी दुबे एवं शांतिकुंज के आचार्यों ने किया।

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