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परोपकार की भावना और मानवीय मूल्यों के साथ जीवन जीने से ही आत्मिक शान्ति और विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता हैैै - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


आतंकवाद के पीड़ितों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने हेतु समर्पित है आज आज का दिन। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि इस समय पूरी दुनिया को शान्ति की नितांत आवश्यकता है इसलिये हमें आतंकवाद से अध्यात्मवाद की ओर बढ़ना होगा क्योंकि आंतकवाद किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 21 अगस्त। आतंकवाद के पीड़ितों को याद करने और उन्हें श्रद्धांजलि देने हेतु समर्पित है आज आज का दिन। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि इस समय पूरी दुनिया को शान्ति की नितांत आवश्यकता है इसलिये हमें आतंकवाद से अध्यात्मवाद की ओर बढ़ना होगा क्योंकि आंतकवाद किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। स्वामी जी ने कहा कि ’’परोपकार की भावना और मानवीय मूल्यों के साथ जीवन जीने से ही आत्मिक शान्ति और विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता हैैै।’’ शान्ति की स्थापना से तात्पर्य केवल आंतरिक एवं बाह्य संघर्षों से सुरक्षा; हमारी सीमायें सुरक्षित हो यही तक सीमित नहीं हैं बल्कि सामाजिक सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक सुविधायें प्राप्त हो तथा सभी को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार मिले यह भी शामिल हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शांति की संस्कृति केवल संवाद से स्थापित नहीं हो सकती उसके लिये सतत, समावेशी और टिकाऊ विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट), वैश्विक एकजुटता, मानवीय गरिमा और मानवाधिकारों का कठोरता से पालन करते हुये सभी को मिलकर सकारात्मक दिशा में प्रयास करना होगा तभी शांति की संस्कृति स्थापित की जा सकती है। शांति बनाए रखने के लिए सभी को प्रत्येक क्षण और अपनी हर श्वास के साथ प्रयास करना होगा जिससे एक बेहतर ग्रह और बेहतर भविष्य निर्माण की दिशा में बढ़ा जा सकता है। स्वामी जी ने कहा कि सभी मतभेदों और परिस्थितियों से ऊपर उठकर ही मानवता और शान्ति के लिये कार्य किया जा सकता हैं। परिस्थितियां बदले या न बदले परन्तु मनःस्थिति बदलेगी तो शान्ति की संस्कृति निश्चित रूप से स्थापित होगी। उन्होंने कहा कि आज जो विकास हो रहा कि वह मानव की सुविधाओं के लिये हो रहा हैं परन्तु वह कई अर्थो मंे मानव जीवन को विनाश के रास्ते पर भी ले जाने का कार्य कर रहा हैं इसलिये हमारे विकास का मार्ग और तकनीक प्रकृति और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल हो वही मानवता के लिये भी प्रभावी और बेहतर होगा।

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