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हमारी श्रद्धा कहीं नदियों का श्राद्ध न बने - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


वर्तमान समय में गणेश पूजन की दिव्य परम्परा का स्वरूप हम सभी के सामने है और केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में है, लेकिन जिस परम्परा से पर्यावरण बिगड़ता हो, उन परम्परारों पर अब ध्यान देने की जरूरत है। ऐसी परम्पराओं को अब हमें बदलना होगा ताकि हमारी परम्पराओं का मूल भी बचे और पर्यावरण भी बचे इसलिये गणेश जी की स्थापना और विसर्जन करें लेकिन नये सर्जन के साथ करें।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 29 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने श्री गणेश चतुर्थी से पहले देशवासियों का आह्वान करते हुये ‘प्रकृति संरक्षक गणेश’ की स्थापना पर्यावरण संरक्षण के साथ करने का संदेश दिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि गणेशोत्सव केवल पारिवारिक उत्सव नहीं बल्कि पर्यावरण और समुदायिक भागीदारी का उत्सव है, इससे समाज और समुदायों का मेलजोल तो बढ़ता ही है साथ ही पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी प्रसारित होगा। हमारे पूर्वजों ने गणेश जी की स्थापना और विसर्जन की परम्परा को बड़ी ही दिव्यता के साथ आगे बढ़ाया। वर्तमान समय में गणेश पूजन की दिव्य परम्परा का स्वरूप हम सभी के सामने है और केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में है, लेकिन जिस परम्परा से पर्यावरण बिगड़ता हो, उन परम्परारों पर अब ध्यान देने की जरूरत है। ऐसी परम्पराओं को अब हमें बदलना होगा ताकि हमारी परम्पराओं का मूल भी बचे और पर्यावरण भी बचे इसलिये गणेश जी की स्थापना और विसर्जन करें लेकिन नये सर्जन के साथ करें। शास्त्रों में तो यह मर्यादा है कि गणेश जी की जो मूर्ति व प्रतिमा है वह, यज्ञ, पूजा और उत्सवों हेतु मात्र एक अंगूठे के बराबर बनाने का विधान हैं। जब यह परम्परा प्रारम्भ हुई तब पूजा में, हवन में, यज्ञ में गोबर और मिट्टी के गणेश बनाये जाते थे और फिर पूजन के पश्चात उस प्रतिमा को तालाबों में, जलाश्यों में, सरोवरों में, उनका विसर्जन किया जाता था। हमारे शास्त्रों में श्री गणेश जी की मूर्ति को नदी में, जल में प्रवाहित करने का विधान है क्योंकि जल में गोबर और मिट्टी घुल जाती हैं और जो गोबर के जो गुणकारी तत्व हंै, वह जाकर पानी की तलहटी में मिलते है, जिससे वे मिट्टी, पानी आदि अन्य चीजों को शुद्ध करते हैं, उससे धरती उपजाऊ बनती है तथा पर्यावरण की रक्षा भी होती है। पर्यावरण के साथ -साथ इससे गौ माता का संरक्षण और संवर्द्धन भी सम्भव है। गणेश चतुर्थी को शास्त्रोक्त विधि से मनाने पर हमारी परम्परायें भी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा। बाकी जो प्लास्टर आॅफ पेरिस और सिंथेटिक की प्रतिमायें हैं, वह कोई शास्त्रीय विधान के अनुसार नहीं हैं।

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