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नदियाँ महज नदियाँ नहीं बल्कि देश की संस्कृति का प्रतीक - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने मुख्य अतिथि और प्रमुख वक्ता के रूप में सहभाग कर ’नदियां और समाज’ विषय पर उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि नदियाँ महज नदियाँ नहीं हैं बल्कि ये देश की संस्कृति का प्रतीक एवं पर्याय हैं। एक बड़ी आबादी के लिये नदियां जीवनदायिनी और जीविकादायिनी हैं और यह हमारी आस्था का भी केन्द्र है इसलिये नदियों के अविरल प्रवाह के साथ उनके पारिस्थितिकी तंत्र को सहेजना जरूरी है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 31 अगस्त। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती, जल शक्ति मंत्री उत्तर प्रदेश, स्वतंत्र देव सिंह और अनेक विभूतियों ने परिकल्प भवन लखनऊ में आयोजित नदी समग्र चितंन कार्यक्रम में सहभाग कर अपने बहुमूल्य विचार साझा किये। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने मुख्य अतिथि और प्रमुख वक्ता के रूप में सहभाग कर ’नदियां और समाज’ विषय पर उद्बोधन दिया। उन्होंने कहा कि नदियाँ महज नदियाँ नहीं हैं बल्कि ये देश की संस्कृति का प्रतीक एवं पर्याय हैं। एक बड़ी आबादी के लिये नदियां जीवनदायिनी और जीविकादायिनी हैं और यह हमारी आस्था का भी केन्द्र है इसलिये नदियों के अविरल प्रवाह के साथ उनके पारिस्थितिकी तंत्र को सहेजना जरूरी है। स्वामी ने कहा कि नदियां धरती की रूधिर वाहिकायें हैं। धरती के सौन्दर्य की कल्पना नदियों के बिना नहीं की जा सकती इसलिये हमें जल की हर बूंद के महत्व को जानना और स्वीकार करना जरूरी है क्योंकि जल की हर बंूद में जीवन है अतः उनका उपयोग भी उसी प्रकार करना होगा। जल को बनाया तो नहीं जा सकता परन्तु संरक्षित जरूर किया जा सकता है। जल का मुद्दा किसी संगठन, राज्य और राष्ट्र का नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवता का है इसलिये यह अन्तर नहीं किया जाना चाहिये कि कौन-सा पानी किसका है?

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