Latest News

भारत में रहने वाले तिब्बती भाई बहन कभी भी स्वयं को कमजोर न समझें - प्रो सुरेखा डंगवाल


तिब्बत की रक्षा भारत की सुरक्षा की गारंटी है। भारत में रहने वाले तिब्बती भाई बहन कभी भी स्वयं को कमजोर न समझें। यह बात भारत तिब्बत समन्वय संघ की बैठक में बतौर मुख्यातिथि दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने कही।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

देहरादून। तिब्बत की रक्षा भारत की सुरक्षा की गारंटी है। भारत में रहने वाले तिब्बती भाई बहन कभी भी स्वयं को कमजोर न समझें। यह बात भारत तिब्बत समन्वय संघ की बैठक में बतौर मुख्यातिथि दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो सुरेखा डंगवाल ने कही। उन्होंने कहा कि चीन की आर्थिक व्यवस्था मौजूदा दौर में अत्यंत चिंताजनक है, विश्व के अनेक देशों ने चीन से किनारा कर लिया है, तिब्बत में रह रहे भाई बहिनों की संस्कृति और सभ्यता को कुचलने का खूनी खेल अबतक के सबसे क्रूर शासक जिनपिंग द्वारा खेला जा रहा है। उन्होंने कहा कि धरती के स्वर्ग की उपमा केवल तिब्बत को ही मिली है इसलिए तिब्बत देवी देवताओं के रहने का पवित्र स्थान है,तिब्बत की स्वतंत्रता के लिए काम कर रहे सभी बन्धु देवतुल्य हैं। उन्होंने कहा कि तिब्बती चिकित्सा पद्धति में गंभीर रोगों को दूर करने के उपाय हैं,यह चिकित्सा पद्धति चलती रहे इसको संरक्षित करने का कार्य तिब्बती भाई बहिनों को करना है। विशिष्ट अतिथि उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर दिनेश चंद्र शास्त्री ने कहा कि तिब्बती भाषा पर बहुत बड़ा संकट है,इस भाषा को बचाने के लिए भारतीय विश्वविद्यालयों को अपने संस्थानों में कोर्स शुरू करने होंगे। प्रोफेसर शास्त्री ने कहा कि तिब्बत भारत से अलग नही है इसलिए तिब्बती भाई बहिन शरणार्थी कतई नहीं हो सकते।यह सभी हमारे भाई बन्धु हैं,आदिकाल से हम सबकी साझी विरासत रही है।वेदों और भारतीय ग्रंथों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कोई ऐसा ग्रन्थ नहीं है जिसमें तिब्बत का ज़िक्र नही है। तिब्बत को आज़ाद कराने के लिए क्रांति की आवश्यकता है।यह क्रांति वैश्विक वैचारिक हो सकती है,दुष्ट चीन के चुंगल से तिब्बत आजाद कराने के लिए दुष्टता का व्यवहार जरूरी है। बीसवीं शताब्दी के 60 वें दशक में देश के कुछ राजनेताओं की अपरिपक्व नीति के कारण तिब्बत हमारे हाथों से चला गया।भारत तिब्बत समन्वय संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर प्रयाग दत्त जुयाल ने संगठन की यात्रा पर विस्तार से प्रकाश डाला।उन्होंने कहा कि थोड़े ही समय में बीटीटीएसएस ने कैलाश मानसरोवर और तिब्बत की आज़ादी के लिए भारत ही नहीं विश्व में संदेश दिया,उसका असर भारत की विदेश नीति में भी देखने को मिल रहा है। बैठक में तिब्बत सरकार के दो सांसदों का अभिनन्दन किया गया। कार्यक्रम का संचालन उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के वेद विभागाध्यक्ष संगठन के प्रान्त शोध प्रमुख डॉ अरुण मिश्र ने किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रान्त महामंत्री मनोज गहतोड़ी ने किया।इस अवसर पर कर्नल थपलियाल, प्रान्त उपाध्यक्ष प्रोफेसर विजय कॉल, प्रोफेसर पुरोहित, युवा विभाग के प्रान्त महामंत्री आशीष सेमवाल ,जिलाध्यक्ष देहरादून डॉ गिरीश नेगी,हिमांशु नोरियाल सहित अनेक कार्यकर्ता मौजूद थे।

Related Post