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वन नहीं तो जन नहीं स्वामी चिदानन्द सरस्वती


राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है, यह दिन देशभर में वनों की रक्षा हेतु तैनात उन सभी कर्मचारियों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने वनों और वन्य प्राणियों की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति देने वाले वन शहदों को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की और आज की गंगा आरती उन्हें समर्पित की।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

भारत में प्रतिवर्ष 11 सितम्बर को राष्ट्रीय वन शहीद दिवस मनाया जाता है, यह दिन देशभर में वनों की रक्षा हेतु तैनात उन सभी कर्मचारियों को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने वनों और वन्य प्राणियों की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति देने वाले वन शहदों को भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की और आज की गंगा आरती उन्हें समर्पित की। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि वनों की रक्षा करने वाले प्रकृति के साथ निकटतम और महत्वपूर्ण संबंध रखते हैं। वनों की संस्कृति, सामाजिक प्रथाओं और रीति-रिवाजों को आज भी जनजातीय क्षेत्रों में जीवंत बनाये रखा है ताकि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ायी जायें वर्तमान और भावी पीढ़ियों को भी इन जीवनदायिनी परम्पराओं को जीवंत और जाग्रत बनाये रखना होगा। स्वामी ने कहा कि हमारे पर्व और त्योहारों के अवसर पर पेड़-पौधों, पुष्पों और प्राणियों के महत्त्व का विशेष ध्यान रखा जाता है। हम प्राणवायु आॅक्सीजन, औषधि, भोजन, जल, पशुओं के लिये चारा एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं के लिये वनों पर निर्भर रहते है, अतः हमें प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद करना होगा और सतत विकास को बढ़ावा देना होगा। स्वामी ने कहा कि भारत में प्रकृति के संरक्षण के लिये चिपको एवं एप्पिको आन्दोलन जैसी कई पहलों का नेतृत्व किया गया। उत्तराखंड के चमोली जिले की महिलाओं ने जंगलों को काटने से बचाने के लिये “जंगल हमारा मायका है हम इसे उजड़ने नहीं देंगे” जैसे आन्दोलनों को जन आन्दोलन बनाया। वर्तमान समय में हम सभी को मिलकर वनों की रक्षा और प्रबंधन के लिये आगे आना होगा। जिन इलाकों में अंधाधुंध पेड़ काटे जा रहे हैं जिससे पर्यावरण असंतुलन और ग्लोबल वार्मिग बढ़ती जा रही है इसलिये न केवल पेड़-पौधों अपितु पशु-पक्षियों के प्रति भी संरक्षण की संकल्पना जो प्राचीन काल में भी विद्यमान उसे जीवंत बनाये रखना होगा।

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