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उज्जैन में ब्रह्मलीन स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि महाराज की प्रतिमा का अनावरण


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि महाराज ने जीवनपर्यंत भारत माता, सनातन संस्कृति और वैदिक संस्कृति की रक्षार्थ अद्भुत कार्य किये। वे मूर्धन्य महापुरूष, विद्वान, सात्विक, भारतीय और आध्यात्मिक संस्कृति के सजग प्रहरी थे। उनका जीवन, हृदय, वाणी और कर्म देश भक्ति और सनातन संस्कृति से ओतप्रोत था। वे एक ऐसे महा दीप थे जो आगे आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रकाशित और आलोकित करते रहंेगे।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

उज्जैन, 19 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आज अनन्त विभूषित ब्रह्मलीन, निवृतमान शंकराचार्य पद्म भूषण, पूज्य स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि महाराज के अवतरण महोत्सव समारोह में सहभाग किया। इस अवसर पर ब्रह्मलीन स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि महाराज की प्रतिमा का अनावरण किया तथा सेवा-सदन ‘समन्वय निलयम्’ का लोकार्पण भी माननीय मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शिवराज सिंह चैहान जी और पूज्य संतों की पावन उपस्थिति में हुआ। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि महाराज ने जीवनपर्यंत भारत माता, सनातन संस्कृति और वैदिक संस्कृति की रक्षार्थ अद्भुत कार्य किये। वे मूर्धन्य महापुरूष, विद्वान, सात्विक, भारतीय और आध्यात्मिक संस्कृति के सजग प्रहरी थे। उनका जीवन, हृदय, वाणी और कर्म देश भक्ति और सनातन संस्कृति से ओतप्रोत था। वे एक ऐसे महा दीप थे जो आगे आने वाली पीढ़ियों को हमेशा प्रकाशित और आलोकित करते रहंेगे। उनके द्वारा स्थापित भारत माता मन्दिर उनकी कल्पनाओं का जीता जागता प्रतीक है जिसमें उन्होने भारतीय संस्कृति के गौरव ऋषि-मुनियांे, स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, शूर वीरों, वैज्ञानिकों और स्वयं धरती माता को संस्थापित कर आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश दिया कि अपने पूर्वजों और जड़ांे से जुड़कर रहना ही भारतीय संस्कृति है। वेदों का उद्घोष ’’माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः’’ को चरितार्थ करते हुये उन्होने ज्योतिर्मठ उपपीठ के जगतगुरू शंकराचार्य के पद को स्वेच्छा से त्याग कर भारत माता की सेवा के लिये अपने आप को समर्पित कर दिया। उनके द्वारा स्थापित भारत माता मन्दिर यजुर्वेद का उद्घोष ’नमो मात्रे पृथिव्ये, नमो मात्रे पृथिव्येः’ का जीवंत उदाहरण है। स्वामी जी ने सनातन संस्कृति की पताका को विश्व के अनेक देशों म फहराया है। पूज्य स्वामी जी अपने उद्बोधनों के माध्यम से सदैव ही वसुधैव कुटुुम्बकम्, विश्व बन्धुत्व, शान्ति और भाईचारा की स्थापना का संदेश प्रसारित करते थे। स्वामी जी का पूरा जीवन चन्दन की तरह सुगंधित रहा, उनके जीवन की सुगंन्ध से देश और दुनिया के लाखों लोगों को मार्गदर्शन प्राप्त हुआ और उनके उपदेशों से लाखों लोगों के जीवन को सकारात्मक दिशा प्रदान की। वे हिमालय सी ऊचाँई, सागर सी गहराई और गंगा सी पवित्रता लिये हुये पूरे विश्व में भ्रमण करते हुये सनातन और भारतीय संस्कृति का संदेश प्रसारित करते रहे।

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