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वैश्विक समुदाय को युद्ध की भयावहता नहीं बल्कि शान्ति का संदेश चाहिये


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व शान्ति दिवस के अवसर पर विश्व के अनेक देशों से आये योग जिज्ञासुओं को संदेश दिया कि हम सभी को मिलकर युद्ध की भयावहता नहीं शान्ति का संदेश प्रसारित करना होगा। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर शान्तिपूर्ण विश्व के निर्माण हेतु शान्ति की नयी अवधारणा और भयमुक्त वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 21 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व शान्ति दिवस के अवसर पर विश्व के अनेक देशों से आये योग जिज्ञासुओं को संदेश दिया कि हम सभी को मिलकर युद्ध की भयावहता नहीं शान्ति का संदेश प्रसारित करना होगा। वर्तमान में वैश्विक स्तर पर शान्तिपूर्ण विश्व के निर्माण हेतु शान्ति की नयी अवधारणा और भयमुक्त वातावरण तैयार करने की आवश्यकता है। साथ ही पूरे विश्व के लिये शान्ति के नये स्वरूप को गढ़ने की जरूरत है। स्वामी जी ने कहा कि भारतीय दर्शन की कई उत्कृष्ट अवधारणायें है जिसमें आध्यात्मिकता के साथ अहिंसा, सत्याग्रह, सत्य और पवित्रता आदि भी समाहित है। वास्तव में ये जीवन के वे अनमोल मोती है जिससे चारों ओर शान्ति स्थापित की जा सकती है। भारत तो हमेशा से ही शान्ति का उद्घोषक रहा है। हमारे ऋषियों ने ’सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के दिव्य मंत्रों से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में शान्ति की स्थापना की प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि जब हम शान्ति की बात करते हंै तो शान्ति से तात्पर्य केवल युद्ध विराम से ही नहीं बल्कि हमारे आन्तरिक द्वंद का शमन से भी है। आन्तरिक शान्ति ही वास्तविक शान्ति का स्रोत है। जब तक अन्तःकरण में शान्ति नहीं होगी तब तक न तो बाहर शान्ति स्थापित की जा सकती है और न ही अपने जीवन में शान्ति प्राप्त की जा सकती है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने योग जिज्ञासुओं को संदेश दिया कि शान्ति के लिये बढ़ाया हर कदम विलक्षण परिवर्तन कर सकता है और यह योग के माध्यम से सम्भव है। जीवन में आन्तरिक शान्ति योग और ध्यान के माध्यम से सम्भव है और बाह्य शान्ति के लिये स्वच्छ वातावरण अत्यंत आवश्यक है, स्वच्छ जल और स्वच्छ वायु के बिना वैश्विक शान्ति की कल्पना भी नहीं की जा सकती। नो वाॅटर, नो पीस, जब स्वच्छ वातावरण, स्वच्छ जल और स्वच्छ परिवेश होगा तो लोगों के दिलों में शान्ति की स्थापना भी होगी। अगर हम सम्पूर्ण मानवता की रक्षा करना चाहते है तो शान्ति ही एक मात्र मार्ग है।

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