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परमार्थ निकेतन में पहली बार अन्तर्राष्ट्रीय रामलीला महोत्सव का आयोजन


परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती की प्रेरणा और आशीर्वाद से परमार्थ निकेतन में राष्ट्रीय बाल युवा संस्कार योजना के अन्तर्गत भावात्मक श्री राम कथा के संग विद्यालय व गुरूकुल के विद्यार्थियों द्वारा डिजिटल कलात्मक श्री रामलीला मंचन किया जा रहा हैं।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

26 सितम्बर, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती की प्रेरणा और आशीर्वाद से परमार्थ निकेतन में राष्ट्रीय बाल युवा संस्कार योजना के अन्तर्गत भावात्मक श्री राम कथा के संग विद्यालय व गुरूकुल के विद्यार्थियों द्वारा डिजिटल कलात्मक श्री रामलीला मंचन किया जा रहा हैं। परमार्थ निकेतन और अन्तर्राष्ट्रीय रामलीला महोत्सव समिति के संयुक्त तत्वाधान में पं गणेश प्रसाद मिश्र सेवा न्यास के सहयोग से यह आयोजन किया जा रहा है। श्री रामकथा लीला का उद्घाटन परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, शिक्षा एवं स्वास्थ्य मंत्री उत्तराखंड सरकार, धनसिंह रावत , राष्ट्र मन्दिर, विश्व रामायण आश्रम, दिल्ली अजय भाई, मनोज तिवारी और विशिष्ट अतिथियों की पावन उपस्थिति में होगा। आज विश्व के कई देशों से आये पर्यटकों के साथ रामलीला का उद्घाटन किया। अजय भाई रामलीला के अवसर पर श्रीराम कथा के प्रसंगों पर प्रकाश डालेगे। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति मानवमात्र की संस्कृति है; विश्व मंगल की संस्कृति है; सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः की संस्कृति है। ऐसी संस्कृति जहां सबके सुख की कामना हो, सबके भले की प्रार्थना हो सब सुखी रहंे, सब निरोगी रहे की कामना भारतीय संस्कृति में समाहित है और रामायण हमें बिना भेद भाव के सबके लिये कार्य करने की शिक्षा देती हैं। स्वामी जी ने कहा कि भगवान श्री राम ने सदैव सबके बीच सेतु निर्माण का कार्य किया। उन्होंने जाति - पाति, ऊँच नीच, छोटे - बड़े के बन्धन तोड़ एकात्मता का दर्शन कराया। चाहे फिर शबरी हो या केवट या कोई अन्य भालू हो, रीछ हो, या वानर हो सबके बीच समता और प्यार का संदेश बांटा, नये भारत और नयी पीढ़ी को आज इस की नितांत आवश्यकता है। स्वामी जी ने कहा कि भगवान श्री राम ने वास्तव में जीवन के सभी सम्बंधों का आदर्श प्रस्तुत किया है। उनका जीवन सभी युगों के लिये प्रासंगिक है और उन्होंने सम्बंधों को जीवंत बनाये रखने के आदर्श रूप को प्रस्तुत किया है। रामायण में भाई-भाई का प्रेम; पिता पुत्र का प्रेम; माँ और बेटे का पे्रम; पति-पत्नी का प्रेम, राजा और प्रजा का प्रेम और सबसे अधिक भक्त और भगवान के प्रेम को प्रकट किया है। इन सभी सम्बंधों में भक्ति, त्याग, तपस्या, समर्पण एवं निष्ठा का भाव यथार्थ रूप में परिलक्षित है।

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