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भारत सरकार के पैकेज बीस लाख करोड़ में किसको कितना,


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था, जिसके बाद बुधवार को वित्त मंत्री और उनकी टीम ने इस आर्थिक पैकेज के पहले हिस्से का ब्लूप्रिंट देश के सामने रखा है, आज हम इसी आर्थिक पैकेज को सरल भाषा के साथ फैसलों का पूरा मतलब समझाएंगे।

रिपोर्ट  - à¤†à¤² न्यूज भारत

समझने के लिए पूरा पढें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज का ऐलान किया था, जिसके बाद बुधवार को वित्त मंत्री और उनकी टीम ने इस आर्थिक पैकेज के पहले हिस्से का ब्लूप्रिंट देश के सामने रखा है, आज हम इसी आर्थिक पैकेज को सरल भाषा के साथ फैसलों का पूरा मतलब समझाएंगे। आर्थिक पैकेज का फोकस इस बात पर है कि कैसे कर्मचारियों और कंपनियों के हाथ में ज्यादा पैसे आएं, जिससे वो ज्यादा खर्च कर सकें और अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर से पटरी पर लौटे। सबसे बड़ा फैसला ये है कि अगले साल मार्च तक नॉन सैलरीड इनकम पर टीडीएस कटौती को 25 प्रतिशत कम कर दिया गया है। इसे आसान भाषा में समझिए कि जो भी सर्विस प्रोवाइडर है या प्रोफेशनल्स हैं, अगर वो 1000 रुपए का काम करता है, तो उसमें पहले 100 रुपये टैक्स देना पड़ता था, लेकिन अब सिर्फ 75 रुपए टैक्स ही देना पड़ेगा, यानी 25 रुपए आपके बच जाएंगे। इस फैसले से करीब 50 हजार करोड़ रुपए लोगों के हाथ में आएंगे, जो रकम अब तक सरकार के पास जाती थी, इनकम टैक्स रिटर्न भी अब 30 नवंबर तक भर सकते हैं। इसी तरह से आपकी सैलरी में ईपीएफ के हिस्से को भी कम किया गया है, पहले सैलरी से 12 प्रतिशत हिस्सा ईपीएफ में जाता था, अब सिर्फ 10 प्रतिशत ही जाएगा, यानी अब आपको इन हैंड सैलरी थोड़ी ज्यादा मिल पाएगी। इसे ऐसे भी समझिए कि अगर पीएफ में पहले 12 रुपए आपके हिस्से से और 12 रुपए आपकी कंपनी के हिस्से से जाते थे तो अब 10-10 रुपए ही जाएंगे यानी 24 रुपए की जगह 20 रुपए ही पीएफ में जाएंगे, इससे आपको भी फायदा होगा और आपकी कंपनी को भी फायदा होगा। इसके अलावा 15 हजार रुपए से कम सैलरी वाले कर्मचारियों के पीएफ की रकम सरकार अगले तीन महीने तक और भरेगी। प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत पहले ये ऐलान किया गया था कि मार्च, अप्रैल और मई महीने के पीएफ का हिस्सा सरकार देगी। अब जून, जुलाई और अगस्त महीने में भी कर्मचारी और कंपनी दोनों के हिस्से की पीएफ की रकम सरकार ही देगी। इससे साढ़े तीन लाख कंपनियों और 72 लाख कर्मचारियों को फायदा होगा। आर्थिक पैकेज के इस पहले हिस्से का जो फोकस है, वो हमारे देश के छोटे और मध्यम उद्योग हैं, जिनसे करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है। नरेन्द्र पंडित। इन्हें माइक्रो, स्माल और मीडियम इंटरप्राइजेज यानी MSMEs कहा जाता है, इस सेक्टर पर देश की अर्थव्यवस्था भी काफी हद तक निर्भर है। भारत में कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार इन्हीं छोटे उद्योगों से मिलता है। भारत में करीब 11 करोड़ लोग इन छोटी कंपनियों में काम करते हैं, भारत की GDP का 30 प्रतिशत हिस्सा इस सेक्टर से आता है, इन्हीं कंपनियों का देश के कुल निर्यात में 40 प्रतिशत हिस्सा है। लेकिन कोरोना के दौर में सबसे बड़ा संकट इन्हीं छोटे और मध्यम उद्योगों पर है, क्योंकि पिछले 50 दिन से देश में लॉकडाउन है, कोई कारोबार चल नहीं रहा है. इसलिए अगर अर्थव्यवस्था की गाड़ी फिर से पटरी पर लाना है, तो इन छोटी-छोटी कंपनियों को ही मजबूती देनी होगी, यही वजह है कि आर्थिक पैकेज में सबसे पहले इन्हीं छोटे उद्योगों को राहत दी गई है। MSME सेक्टर के लिए 3 लाख करोड़ रुपए का लोन दिए जाने का ऐलान हुआ है। इससे करीब 45 लाख कंपनियों को सीधा फायदा होगा, कंपनियों को कारोबार के लिए आसानी से बिना गारंटी के लोन मिल सकेगा, कंपनियां चाहें तो ब्याज का भुगतान एक साल बाद कर सकती हैं, एक साल तक उन्हें छूट मिलेगी। MSME की परिभाषा में भी बदलाव कर दिया गया है। अब ये देखा जाएगा कि कंपनियों ने कितना निवेश किया और उनका कितना कारोबार हो रहा है, पहले ऐसा नहीं था, पहले 25 लाख तक का निवेश करने वाली कंपनियों को माइक्रो माना जाता था, लेकिन अब एक करोड़ रुपए का निवेश और 5 करोड़ रुपए तक सालाना कारोबार करने वाली कंपनी को ही माइक्रो माना जाएगा। इसी तरह से स्माल इंटरप्राइजेज वो कंपनियां मानी जाएंगी, जिनमें 10 करोड़ रुपए का निवेश होगा और जिनमें 50 करोड़ रुपए तक का सालाना कारोबार होगा। मीडियम इंटरप्राइजेज वो कंपनियां मानी जाएंगी, जिनमें 20 करोड़ रुपए तक का निवेश होगा और 100 करोड़ रुपए तक का सालाना कारोबार होगा। ऐसा इसलिए किया गया है क्योंकि हमारी घरेलू कंपनियां विदेशी कंपनियों के सामने कंपटीशन में टिक नहीं पाती थीं, इन कंपनियों के लिए लिमिट थी कि वो कितनी रकम का निवेश कर सकती हैं।।नरेन्द्र पंडित। मान लीजिए अगर कोई छोटी कंपनी अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए 25 लाख रुपए की कोई मशीन लगाना चाहती थी तो वो ऐसा नहीं कर पाती थी क्योंकि उसे डर होता था कि उसे सरकार से रियायतें नहीं।

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