आज के दौर मे सूचना तकनीक के माधà¥à¤¯à¤® से हम विशà¥à¤µ की किसी à¤à¥€ जगह या उसके महतà¥à¤µ को à¤à¤• कà¥à¤²à¤¿à¤• से जà¥à¤Ÿà¤¾ सकते है। लेकिन आज से कई वरà¥à¤· पहले किसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की जानकारी और महतà¥à¤¤à¥¤ को कैसे पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ मे लोगो ने पहà¥à¤šà¤¾à¤¯à¤¾ होगा।
रिपोर्ट - राजेश à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ
(राजेश à¤à¤Ÿà¥à¤Ÿ) देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—। आज के दौर मे सूचना तकनीक के माधà¥à¤¯à¤® से हम विशà¥à¤µ की किसी à¤à¥€ जगह या उसके महतà¥à¤µ को à¤à¤• कà¥à¤²à¤¿à¤• से जà¥à¤Ÿà¤¾ सकते है। लेकिन आज से कई वरà¥à¤· पहले किसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ की जानकारी और महतà¥à¤¤à¥¤ को कैसे पूरे à¤à¤¾à¤°à¤¤ मे लोगो ने पहà¥à¤šà¤¾à¤¯à¤¾ होगा। à¤à¤¾à¤°à¤¤ के चार धामो में बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ धाम की धारà¥à¤®à¤¿à¤• और सांसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥‹à¤‚ का महतà¥à¤µ विशà¥à¤µ के कोने-कोने तक लोगों को समà¤à¤¾à¤¯à¤¾ होगा। इस समà¥à¤¬à¤‚ध में बदरीनाथ के तीरà¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ के समà¥à¤¬à¤‚ध को समà¤à¤¨à¤¾ बेहद जरूरी है।। पंचपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤—ों में पà¥à¤°à¤¥à¤® पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— सहित 55 गांवों में बसे पंडा समाज के जà¥à¤¡à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ है। जो सैकड़ो वरà¥à¤· से परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त तरीके से यजमानी करने के लिये देशाटन करने जाते रहे है। देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— के पंडे छह महीने बदरीनाथ धाम के कपाट खà¥à¤²à¤¨à¥‡ व कपाट बंद होने के बाद अपनी यजमान वृति देखने सà¤à¥€ राजà¥à¤¯à¥‹ में जाकर बदरीनाथ धाम के महतà¥à¤µ को लोगो तक पहà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥‡ चले आ रहे है। पंडे या तीरà¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ की यह पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ परंपरा समय के साथ अपडेट होती रही है। पंडों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पैदल यातà¥à¤°à¤¾ के दौरान बदरीनाथ तक यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को ले जाने का काम किया हà¥à¤† है। इन लोगो दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ देशाटन के दौरान बदरीनाथ यातà¥à¤°à¤¾ का जो संदेश लोगों तक पहà¥à¤šà¤¾à¤¯à¤¾ उससे परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड को à¤à¥€ आरà¥à¤¥à¤¿à¤• मजबूती मिल रही है। बदरीनाथ के पंडों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ की गयी पणà¥à¤¡à¤¾à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ का आरमà¥à¤ सेकड़ो वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है। सरà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¥à¤® दकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤ से यहां वैषà¥à¤£à¤µ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के लोगो अलकनंदा और à¤à¤¾à¤—ीरथी के संगम देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— में आकर बसे थे। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यही से गंगा नदी का जनà¥à¤® हà¥à¤† था और रोजमरा के दैवीय पूजा पाठमें इसका सबसे बड़ा महतà¥à¤µ था।वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— पंडो के 55 गांवों है। शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤ में यातà¥à¤°à¥€ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° तक ही आते थे। लेकिन यहाठके पंडो दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ उनको बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ तक पहà¥à¤šà¤¾à¤¯à¤¾ गया। उसके बाद ही धीरे धीरे बदरीनाथ यातà¥à¤°à¤¾ की परमà¥à¤ªà¤°à¤¾à¤—त सà¥à¤µà¤°à¥‚प लिया।इस पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° बदरीनाथ धाम के महातà¥à¤®à¥à¤¯ और वहां के लोकजीवन व लोकसंसà¥à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ देशवासियों में जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ पैदा कर पंडों ने धीरे-घीरे तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ को न सिरà¥à¤« राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤µà¤°à¥‚प पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया, पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤°à¤¾à¤‚तर से धारà¥à¤®à¤¿à¤• परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°-पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° में à¤à¥€ महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ à¤à¥‚मिका निà¤à¤¾à¤ˆà¥¤ बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ /देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— के पंडो को हर राजà¥à¤¯ को बोली à¤à¤¾à¤·à¤¾ रीतिरिवाजों के साथ वहाठके पहनावे का à¤à¥€ पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ है। हर पंडा अपने यातà¥à¤°à¥€ से उसकी बोली के साथ ही उसका सà¥à¤µà¤¾à¤—त बदरीविशाल की जय के साथ करता आ रहा है। वही बदरीनाथ तक यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पहचाने के लिठसबसे बड़ा योगदान देवपà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— पंडा समाज के ही चंदा पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ कोटियाल का रहा है । जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने यजमानों से कही à¤à¥‚ला पà¥à¤²à¥‹à¤‚ , धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾à¤“, असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कराया। वही पंडो की बही या पोथी में सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ लेखा पृथà¥à¤µà¥€ सिंह चौहान के वशंजों का है । जब बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ में राजवाड़े ही जाते थे।। करीब 1250 वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ आंधà¥à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, तमिलनाडà¥, करà¥à¤¨à¤¾à¤Ÿà¤• महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° आदि राजà¥à¤¯à¥‹ से à¤à¤—वान राम की तपोसà¥à¤¥à¤²à¥€ में ये तीरà¥à¤¥à¤ªà¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ बसे थे। 22 दिसमà¥à¤¬à¤° 853 का महाराजा पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ªà¤¦à¤¹à¤¨ केतà¥à¤¯à¤° दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने तामà¥à¤°à¤ªà¤¤à¥à¤° में यहाठके बà¥à¤°à¤¾à¤®à¤£à¥‹ को गà¥à¤°à¤¾à¤® देने का उलà¥à¤²à¥‡à¤– है। जो आज à¤à¥€ बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में विराजमान है। ये जानकारी पूरà¥à¤µ राजà¥à¤¯à¤®à¤‚तà¥à¤°à¥€ और बदरीं केदार मनà¥à¤¦à¤¿à¤° समिति पूरà¥à¤µ अधà¥à¤¯à¤•à¥à¤· मनोहरकानà¥à¤¤ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥€ ने à¤à¤• लेख में à¤à¥€ दी।वहीतीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की पहली सनद में लिखे यजमान के तीरà¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ब के वंशजो की पैतृक समà¥à¤ªà¤¤à¤¿ होने के अà¤à¤¿à¤²à¥‡à¤– तामà¥à¤° पतà¥à¤° का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ सन 1243 के है इस तामà¥à¤°à¤ªà¤¤à¥à¤° में नीमराणा अलवर का चौहान पृथà¥à¤µà¥€ सिंह के वश के वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ जनक सिंह है। इनके पंडा पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ तैलंग कोटेकर के वंशज प.रामनाथ सà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥‡à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ का नमोलेख है। आज à¤à¥€ पंडो या तीरà¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ को के पास à¤à¤¸à¥€ कही सनदे है जो उस दौरान कही राजाओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपने तीरà¥à¤¥ पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤à¥‹à¤‚ को दी गयी थी। उसके बाद जब कोई यजमान उस इलाके से बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ पहà¥à¤šà¤¤à¤¾ था। तो तीरà¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ उस यजमान का पूरा परिचय अपने बही में दरà¥à¤œ करते थे। जो परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ आज à¤à¥€ बदसà¥à¤¤à¥‚र जारी है। वही पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤®à¤¨à¤‚तà¥à¤°à¥€ जब इस वरà¥à¤· बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ पहà¥à¤šà¥‡ तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¥€ अपने तीरà¥à¤¥à¤ªà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ सà¥à¤¨à¥€à¤² पालीवाल की बही में अपना नामदरà¥à¤œ कराने के बाद बही को डिजिटिलाइंस करने को कहा था।