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खिलाडी समाज मे संतुलित व्यवहार का सर्वोत्तम उदाहरण


जीवन की प्रत्येक अवस्था मे संतुलन रखा जाना नितान्त आवश्यक है। संतुलन बनाए रखने के लिए एकाग्रता जरूरी है। जिसे व्यवहार मे परिवर्तन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ0 शिव कुमार चैहान का मानना है कि एकाग्रता से साथ किया गया कार्य लक्ष्य प्राप्ति के परिणाम को सार्थक बनाता है और जब जीवन मे तय लक्ष्य के अनुरूप परिणाम प्राप्त हो जाएं फिर कुछ और पाना बाकी नही रह जाता है।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

जीवन की प्रत्येक अवस्था मे संतुलन रखा जाना नितान्त आवश्यक है। संतुलन बनाए रखने के लिए एकाग्रता जरूरी है। जिसे व्यवहार मे परिवर्तन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। गुरूकुल कांगडी विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डाॅ0 शिव कुमार चैहान का मानना है कि एकाग्रता से साथ किया गया कार्य लक्ष्य प्राप्ति के परिणाम को सार्थक बनाता है और जब जीवन मे तय लक्ष्य के अनुरूप परिणाम प्राप्त हो जाएं फिर कुछ और पाना बाकी नही रह जाता है। अर्थात जीवन लक्ष्य की प्राप्ति हो जाती है। डाॅ चैहान ने सोशल साइंस विषय पर दिल्ली मे आयोजित विद्वानों के एक संवाद कार्यक्रम मे यह बात कही। इस परिप्रेक्ष्य मे महाभारत काल मे अर्जुन का द्रौपदी स्वयंवर का प्रसंग इस बात की सार्थकता सिद्व करता है कि किस प्रकार लक्ष्य भेदन के लिए अर्जुन ने मछली की आंख को लक्ष्य मानकर एकाग्र चित होकर भेदन किया और लक्ष्य की प्राप्ति संभव हो सकी। यदि महाभारत काल के आन्तरिक अन्र्तद्वन्द की बात को छोडकर पूरा प्रसंग देखा जाये तो यहां अर्जुन धर्नुविद्या का कुशल खिलाडी है जो एकाग्रता की सिद्वी द्वारा सर्वश्रेष्ठ धर्नुधर का खिताब हासिल करता है। जो एक कुशल धर्नुधर बनने वाले किसी भी खिलाडी का लक्ष्य होता है। सामान्यतः व्यक्ति के जीवन मे विकास अवस्था के प्रत्येक सोपान पर अलग अलग लक्ष्य निर्धारित होते रहते है। जैसे ब्रहमचर्य आश्रम मे शिक्षा तथा धन प्राप्ति। ग्रहस्त आश्रम मे वैवाहिक एवं सामाजिक उददेश्यों की प्राप्ति। वानप्रस्थ आश्रम मे आत्मिक उददेश्यों की प्राप्ति तथा सन्यास आश्रम मे परलोक उन्नति। लक्ष्य के इन सभी सोपान मे संतुलन की सर्वाधिक आवश्यकता रहती है। जिसके माध्यम से लक्ष्य भेदन संभव है। एक खिलाडी जब अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए आगे बढता है तब उसके पास साधन के रूप मे एक मात्र यह शरीर होता है। जिसके लिए प्रमाणिक ग्रंथ भी कहते है- शरीरमाध्यम खलुधर्म साधनम्। अर्थात इस शरीर के द्वारा लक्ष्य प्राप्ति संभव है। शरीर को लक्ष्य के अनुसार तैयार करने के लिए खिलाडी परिश्रम (अभ्यास) करता है। और शरीर को निपुण एवं कार्य-कुशल बनाते हुए उसे शक्तिवान, ऊर्जावान एवं सामथ्र्यवान बनाता है। जो एकाग्रता के पर्याय बनकर लक्ष्य प्राप्ति कराते है। एक सामान्य व्यक्ति की तुलना मे लक्ष्य प्राप्ति मे सहायक संतुलन एवं एकाग्रता जैसे महत्वपूर्ण घटकों को खिलाडी जल्दी प्राप्त कर लेता है। इसलिए खिलाडी को आज के आधुनिक समाज मे भी संतुलित व्यवहार का सर्वोत्तम उदाहरण माना जाता है।

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