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सरकारी संस्थान, न्यायपालिका में मिलीभगत की वास्तविक और सच्ची घटना


भारत प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की जो पहले रुड़की यूनिवर्सिटी के नाम से जानी जाती थी उस पर आरोप है कि सरकार एवं न्यायपालिका से मिलीभगत कर अपने शिक्षकों का उत्पीड़न करते हैं। प्रोफेसर इंजीनियर डॉक्टर देवेंद्र स्वरूप भार्गवा ने बताया कि उनके द्वारा मांगी गई जानकारी को यह कहकर यूनिवर्सिटी ने ठुकरा दिया कि व्वे 1994 की बात कर रहे हैं आज से 20 साल पहले का रिकॉर्ड वे मांग रहे हैं जो उपलब्ध कराना मुमकिन नहीं।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

भारत प्रौद्योगिकी संस्थान रुड़की जो पहले रुड़की यूनिवर्सिटी के नाम से जानी जाती थी उस पर आरोप है कि सरकार एवं न्यायपालिका से मिलीभगत कर अपने शिक्षकों का उत्पीड़न करते हैं। प्रोफेसर इंजीनियर डॉक्टर देवेंद्र स्वरूप भार्गवा ने बताया कि उनके द्वारा मांगी गई जानकारी को यह कहकर यूनिवर्सिटी ने ठुकरा दिया कि व्वे 1994 की बात कर रहे हैं आज से 20 साल पहले का रिकॉर्ड वे मांग रहे हैं जो उपलब्ध कराना मुमकिन नहीं। गौरतलब है कि प्रोफेसर भार्गव जो विश्व विख्यात पर्यावरण के प्रोफेसर है और 500 से अधिक शोध पेपर प्रकाशित कर चुके हैं और यूजीसी के प्रमुख पुरस्कार प्राप्त है उन्हें एक षड्यंत्र के तहत कुछ असामाजिक तत्वों ने मिलीभगत कर बिना नेचुरल जस्टिस के इतने मानसिक अत्याचार किए कि उन्हें लगभग 35 रिट पिटिशन इलाहाबाद कोर्ट में करनी पड़ी इन शिक्षाविद का आरोप है कि यूनिवर्सिटी एक्ट के सारे नियम कायदे ताक पर रखकर उनके साथ पेमेंट संबंधी काफी नाइंसाफी की गई और वे आज 82 वर्ष के दिल और आंखों की बीमारी के साथ बिना किसी मदद के अकेले रहने पर मजबूर है वैसे प्रोफेसर भार्गव ने आई आईटी को विश्व स्तर पर ख्याति भी प्रदान की, अपने शोध से लोकसभा व राज्यसभा में 8 मार्च 1982 में प्रश्न संख्या 2338 एवं 1983 में प्रश्न संख्या 195 प्रश्न भी पूछे आरोप है कि जब उन्हें यूएस के आर्मी चीफ ने बहुत बड़े प्रोजेक्ट का न्योता दिया तो आईआईटी रुड़की ने उन्हें प्रयोगशाला उपलब्ध कराने से मना कर दिया दुर्भाग्य से उन्हें अच्छे वक्ता भी नहीं मिले और जो मिले उन्हें यूनिवर्सिटी ने खरीद लिया सूचना के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत जब प्रोफेसर भार्गव में काफी सारे प्रश्न पूछे जिससे कि यूनिवर्सिटी की ज्यादातर गलतियां पकड़ी जाए और गुनहगारों को सजा मिले लेकिन सारे जवाब यह कहकर टाल दिए गए की 1994 की सूचना 2006 में 20 वर्ष से अधिक है इसलिए नहीं दी जा सकती लेकिन यह तो 12 वर्ष है और उसे 20 साल कहकर सबको धोखे में रखा यहां तक कि सेंट्रल इनफॉरमेशन कमिशन नैनीताल हाई कोर्ट याचिका नंबर 72608 सुप्रीम कोर्ट तक मिलीभगत और पैसे से जवाब ठीक करवा दिए अब इन सवाल जवाबों के चिट्ठों को एकत्रित कर प्रोफेसर भार्गव न्याय की गुहार लगा रहे हैं।

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