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मौन नहीं मुखर होने का समय - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन में मौनी अमावस्या के अवसर पर विश्व शान्ति हवन और विशाल भंडारा का आयोजन किया गया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने संतों को अपने हाथों से भोजन परोसा। उन्होंने कहा कि जहां पर सब समान हो, सब का सम्मान हो यही तो संविधान है और यही तो धर्म भी है।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

ऋषिकेश, 9 फरवरी। परमार्थ निकेतन में मौनी अमावस्या के अवसर पर विश्व शान्ति हवन और विशाल भंडारा का आयोजन किया गया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने संतों को अपने हाथों से भोजन परोसा। उन्होंने कहा कि जहां पर सब समान हो, सब का सम्मान हो यही तो संविधान है और यही तो धर्म भी है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि समान नागरिक संहिता - 2024 पारित होने से पूरे राज्य में ‘‘सब समान और सब का सम्मान के वातावरण का निर्माण होगा।’’ यह मातशक्ति की सुरक्षा, बच्चों की सुरक्षा और बुजुर्गों की सुरक्षा और सहायता का कानून है जो वास्तव में अभिनन्दन योग्य है। स्वामी जी ने कहा कि यह समय मौन नहीं मुखर होने का है। मौन भी अभिव्यक्ति है परन्तु अब मातृशक्ति के मुखर होने का समय है। चाहे भ्रूण हत्या हो, बाल विवाह हो या लिव-इन रिलेशनशिप हो सबसे अधिक समस्याओं का सामना हमारी मातृशक्ति को ही करना पड़ता है इसलिये अपनी अभिव्यक्तियों के प्रति मुखर होना आवश्यक है। आज मौनी अमावस्या के अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि जीवन में मौन चिंतन की गहराई से आता है। साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि मौन अभिव्यक्ति का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। भावों की अभिव्यक्ति बिना शब्दों के करना ही मौन है; जीवन की आंतरिक गहराई में उतरना भी मौन है। हम अक्सर मौन को अभिव्यक्ति मानना भूल जाते हैं जैसे-जैसे हम मौन की महत्ता को पहचानने लगते है वैसे ही जीवन में प्रेम उतरने लगता है। प्रेम व मौन का बड़ा ही गहरा संबंध है। दोनों एक-दूसरे से अलग नहीं है। आज का दिन हमें बताता है कि मौन, अभिव्यंजना है उस परमात्मा के लिये जिसे हम प्रेम करते हैं। जब परमात्मा से प्रेम हो जाता है तो सारा ब्रह्मांड शून्य हो जाता है और फिर जीवन में मौन का जन्म होता है।

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