Latest News

सनातन धर्म के ध्वजवाहक महामंडलेश्वर पवाहारी संत


ज्ञान भक्ति व कर्म योग को पूरी तरह से अपने जीवन में आत्मसात करने वाले जगत जननी जगदंबा के प्राणों से अनुप्राणित महादेव के परम भक्त पवाहारी महामंडलेश्वर संत स्वामी बालकृष्ण यतिजी महाराज देव संस्कृति तथा सनातन धर्म परंपरा के महानायक थे।

रिपोर्ट  - à¤²à¤¾à¤²à¤•à¥à¤†à¤‚ नैनीताल से अजय उप्रेती की रिपोर्ट

ज्ञान भक्ति व कर्म योग को पूरी तरह से अपने जीवन में आत्मसात करने वाले जगत जननी जगदंबा के प्राणों से अनुप्राणित महादेव के परम भक्त पवाहारी महामंडलेश्वर संत स्वामी बालकृष्ण यतिजी महाराज देव संस्कृति तथा सनातन धर्म परंपरा के महानायक थे देववाणी संस्कृत से वेदांत की उपाधि प्राप्त बालकृष्ण जी द्वारा अनेक देवालयों के अलावा आश्रम मठ एवं भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत कराती वैदिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा के विद्यालयों की स्थापना की तमाम मंदिर आश्रम गौशाला निर्माण के अलावा उन्होंने सहस्त्र चंडी यज्ञ शतचंडी यज्ञ भागवत शिव महापुराण का आयोजन कराया खुद वेद उपनिषद गीता आदि ग्रंथों का गहन अध्ययन करने के बाद समाज को धर्म एवं सत्कर्म के प्रति भी जागरूक किया और भारतीय संस्कृति के मूल तत्व से तथा सनातन धर्म परंपरा के महात्म्य से भी जन-जन को परिचित कराया 88 वर्ष की अवस्था में अपनी देह का त्याग कर परम सत्ता की परम ज्योति में एकाकार हो चुके संत शिरोमणि बालकृष्ण जी महाराज का जन्म अल्मोड़ा जनपद के सोमेश्वर नामक स्थान पर वर्ष 1925 में हुआ बचपन में ही पिता की छत्रछाया से वंचित हो चुके बालकृष्ण यति जी को सिद्ध संत तपोनिष्ठ महादेव गिरीजी का सानिध्य मिला जिन्होंने बालक की अद्भुत प्रतिभा को भांपते हुए उन्हें बागेश्वर में संस्कृत पाठशाला में दाखिला दिलवाया संस्कृत पाठशाला से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद वे अपने गुरु के सानिध्य में कैलाश मानसरोवर के अलावा तमाम दुर्गम तीर्थों की यात्राएं भी कर चुके थे लेकिन उन्होंने इस दौरान अपने पढ़ने की जिज्ञासा को शांत नहीं होने दिया और अवंतिका मिर्जापुर काशी से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी से वेदांत आचार्य की उपाधि प्राप्त की इनकी विलक्षण प्रतिभा को देखते हुए स्वामी विश्वनाथ यति जी ने इन्हें सिद्ध शक्तिपीठ हथियाराम मठ में बुला लिया हथियाराम मठ गाजीपुर में स्थित है और यह लगभग 700 वर्ष पुराना प्राचीन शक्ति स्थल बताया जाता है जो अनेक संत महात्माओं की तपस्थली रहा है इस स्थान पर जगत जननी जगदंबा के नवम स्वरूप माता सिद्धिदात्री का मंदिर है मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन प्राप्त कर लकवा से पीड़ित मरीज रोग मुक्त हो जाता है इसी सिद्ध पीठ से बालकृष्ण यति जी महाराज ने संन्यास की दीक्षा ग्रहण की सिद्ध संत विश्वनाथ यति जी ने कैलाश आश्रम का निर्माण करवाया जिस का विस्तारीकरण करते हुए बाल कृष्ण यति जी महाराज द्वारा वहां अतिथि भवन गौशाला स्थापित करने के अलावा कन्या महाविद्यालय की भी नींव रखी गई उनके द्वारा एक औषधालय का भी निर्माण कराया गया जिसे बाद में सरकार ने राजकीय औषधालय के रूप में मान्यता प्रदान की वहीं उन्होंने शंकर वन में अपने लिए साधना कुटी का निर्माण किया धर्म एवं अध्यात्म के प्रचार प्रसार के अलावा उन्होंने गुरुकुल परंपरा को भी आगे बढ़ाया अपने गुरु महामंडलेश्वर स्वामी विश्वनाथ जी द्वारा स्थापित संस्कृत पाठशाला को विराट रूप देकर उसे श्री विश्वनाथ गुरुकुल संस्कृत महाविद्यालय करण घंटा वाराणसी के नाम पर विख्यात किया इसी परिसर में उन्होंने बच्चों को आदर्श आश्रम पद्धति एवं आधुनिक शिक्षा का समन्वय करते हुए आवासीय इंटर कॉलेज बनाया वर्तमान में उनके द्वारा बनाए गए भारतीय संस्कृति शिक्षा संस्थान नाम के ट्रस्ट द्वारा उक्त इंटर कॉलेज की व्यवस्थाएं देखी जा रहे हैं सबसे बड़ी विशेषता इस विद्यालय की यह है कि यहां शिक्षा के साथ-साथ सहस्त्र चंडी आदि अनुष्ठान कराए जाते हैं जिस में अध्ययनरत छात्र भी हिस्सा लेते हैं ज्वालापुर हरिद्वार में शंकर आश्रम तथा शिवालय बनाया गया जहां अनेक संत महात्माओं श्रद्धालुओं का आवागमन बना रहता है जिनके ठहरने भोजन इत्यादि की व्यवस्था आश्रम द्वारा कराई जाती है वर्ष 2001 में उन्होंने हल्द्वानी स्थित अपने शिष्य के आवास में शतचंडी यज्ञ का आयोजन करवाया इस दौरान उन्होंने कुमाऊं में अष्टादश भुजा महालक्ष्मी मंदिर बनाए जाने की इच्छा व्यक्त की भागवत प्रेरणा से उनकी इच्छा ईश्वरी सत्ता का आदेश साबित हुई और भूमि दानदाताओं ने भूमि दान कर ईश्वरी कार्य में अपना सहयोग किया और बेरी पड़ाव हल्दूचौड़ में आज अष्टादश भुजा महालक्ष्मी बनकर तैयार है जहां स्थानीय के अलावा दूरदराज के श्रद्धालु भी आते हैं अष्टादश महालक्ष्मी मंदिर आश्रम के नियमित संचालन का जिम्मा उन्होंने अपने शिष्य स्वामी सोमेश्वर यति महाराज जी को सौंपा बालकृष्ण जी महाराज द्वारा 12 वर्ष तक अनवरत व्रत लिया गया इस दौरान वे सिर्फ एक समय दूध व एक समय फल लेते थे जिस कारण उन्हें पवाहारी संत भी कहा गया वेद पुराण उपनिषद के ज्ञाता संत बालकृष्ण यति जी महाराज जी द्वारा हल्द्वानी स्थित महादेव गिरी संस्कृत महाविद्यालय को अपना अद्वितीय योगदान दिया गया बालकृष्ण यति जी महाराज द्वारा हरी हरात्मक यज्ञ का अनुष्ठान करवाना अपने आप में अद्भुत अद्वितीय अलौकिक था क्योंकि यह वही यज्ञ होता है जिसमें हरि अर्थात नारायण और हर अर्थात शिव दोनों का सम्मिलित पूजन एवं यज्ञ होता है इसके माध्यम से उन्होंने यह संदेश दिया कि शिव और विष्णु में भेद करना बहुत बड़ी मूर्खता है क्योंकि दोनों एक ही है जुलाई 2013 में महामंडलेश्वर संत स्वामी बालकृष्ण यति महाराज जी अपने भौतिक शरीर को छोड़कर शिवलोक को प्रस्थान कर गए स्वामी बाल कृष्ण जी के असंख्य भक्त हैं उन का सानिध्य प्राप्त कर कई लोगों ने अपने जीवन को धन्य किया है महान संत पवाहारी महामंडलेश्वर बाल कृष्ण यति जी को उनकी आठवीं पुण्यतिथि पर शत शत नमन।

Related Post