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पर्यटन तो बढ़े लेकिन तीर्थाटन का भाव न खो जायें - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन में संसद सदस्य (लोकसभा - गढ़वाल, उत्तराखंड), पूर्व राज्यसभा सांसद, उत्तराखंड, राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख एवं मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी विधायक यमकेश्वर, रेणु बिष्ट और अन्य गणमान्य अतिथिगण पधारे। उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर आशीर्वाद लिया।

रिपोर्ट  - आल न्यूज़ भारत

ऋषिकेश, 30 अगस्त। परमार्थ निकेतन में संसद सदस्य (लोकसभा - गढ़वाल, उत्तराखंड), पूर्व राज्यसभा सांसद, उत्तराखंड, राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख एवं मुख्य प्रवक्ता अनिल बलूनी विधायक यमकेश्वर, रेणु बिष्ट और अन्य गणमान्य अतिथिगण पधारे। उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती से भेंट कर आशीर्वाद लिया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और अनिल बलूनी की उत्तराखंड के हरित व सतत विकास, तीर्थाटन संस्कृति का विकास, पलायन को रोकने के लिये स्थानीय रोजगार को विकसित करने व पहाड़ की संस्कृति, अन्न व उत्पादों को बढ़ावा देने आदि विषयों पर चर्चा हुई। साथ ही स्वामी जी ने कहा कि अब गंगा में कोई भी नाला न गिरे इस पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य में माननीय कर्मयोगी मुख्यमंत्री श्री पुष्कर सिंह धामी जी के नेतृत्व में हरित और सतत विकास को प्राथमिकता देने हेतु कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। इससे न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा बल्कि राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को भी संरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड से हो रहे पलायन को रोकने के लिये स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को बढ़ावा देना जरूरी है। स्थानीय रोजगार को विकसित करने हेेतु स्थानीय हस्तशिल्प और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना अत्यंत आवश्यक है। युवाओं को कौशल विकास कार्यक्रमों से जोड़ने के साथ ही पहाड़ की संस्कृति, अन्न, जड़ी-बूटियों और उत्पादों को बढ़ावा देना तथा स्थानीय खाद्य उत्पादों जैसे मंडुवा, झुंगोरा, गहत आदि को लोकल से ग्लोबल बनाने के लिये सभी को मिलकर प्रयास करना होगा। वर्तमान समय में जड़ी-बूटियों का महत्व व व्यापार पूरे विश्व में तेजी से बढ़ रहा हैं क्योंकि हिमालय की जड़ी-बूटियों का तो महत्व ही कुछ और है इसलिये इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यहां पर पर्यटन तो बढ़े लेकिन तीर्थाटन का भाव न खो जाये इस पर विशेष ध्यान देना होगा। पर्यटन को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसके साथ ही तीर्थाटन का पवित्र भाव भी बनाए रखना आवश्यक है इसलिये स्थानीय संस्कृति व पर्यावरण संरक्षण का सम्मान करते उत्तराखंड के पर्यटन को बढ़ावा देना होगा। स्वामी जी ने कहा कि पहाड़ की संस्कृति को जीवित रखने के लिये पारंपरिक वेशभूषा, लोक कलाओं एवं संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करना जरूरी है। साथ ही स्थानीय मेलों और त्योहारों का आयोजन कर इस दिव्य संस्कृति को जीवित रखा जा सकता है। उत्तराखंड पहाड़ों से युक्त राज्य होने के कारण यहां की समस्यायंे अन्य राज्यों से अलग हंै। पहाड़ों पर रहने वालों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है परन्तु पहाड़ों की संस्कृति और संस्कारों को जीवंत बनायें रखने के लिये उत्तराखंड वासियों का विशेष कर पहाड़ों पर रहने वाले भाई-बहनों का विशेष योगदान है। उत्तराखंड के पहाड़ और यहां की पवित्रता को बचाये रखने के लिये लोकल व पर्यटक दोनों स्तर पर एकल उपयोग प्लास्टिक से परहेज करना होगा। इस राज्य की नैसर्गिक समृद्धि, सुन्दरता और शान्ति को बनायें रखना तथा पर्यटन के स्थान पर तीर्थाटन को बढ़ावा देना होगा ताकि हमारा प्रदेश सदैव नई ऊर्जा और हरियाली से परिपूर्ण रहे।

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