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युवा पीढ़ी को दीपावली पर ऐसे पटाखे फोड़ने चाहिए जो कि पर्यावरण को बचाने में सहयोगी सिद्ध हो


वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो0 पवन कुमार ने दीपावली के अवसर पर जानकारी देते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को दीपावली पर ऐसे पटाखे फोड़ने चाहिए जो कि पर्यावरण को बचाने में सहयोगी सिद्ध हो सके। उन्होंने कहा कि पटाखे फोडना आजकल एक आम बात हो गयी है क्योकि कोई भी विशेष कार्यक्रम इसके बिना लोगो को अधुरा सा ही लगता है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय, हरिद्वार के भौतिक विभाग के विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो0 पवन कुमार ने दीपावली के अवसर पर जानकारी देते हुए कहा कि युवा पीढ़ी को दीपावली पर ऐसे पटाखे फोड़ने चाहिए जो कि पर्यावरण को बचाने में सहयोगी सिद्ध हो सके। उन्होंने कहा कि पटाखे फोडना आजकल एक आम बात हो गयी है क्योकि कोई भी विशेष कार्यक्रम इसके बिना लोगो को अधुरा सा ही लगता है। पटाखों के कारण आसमान में दिखने वाला शानदार नजारा, तेज आवाज तथा रंग-बिरंगी चकाचौंध लोगो को बहुत पसंद आती है। लेकिन वास्तव में इसका प्रभाव पर्यावरण तथा लोगों के स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है। दीपावली का त्यौहार प्रदूषित होने का मुख्य कारण ही पटाखे है। दीपावली पर पटाखे जलाना ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम जैसा ही है। इनसे निकलने वाला धुआँ वायुमंडल में हानिकारक गैसों के स्तर को बढाता है जिसका असर मनुष्य के साथ-साथ जीव-जन्तुओं पर भी नजर आता है। पटाखे फोड़ने से वातावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी जहरीली गैस उत्पन्न होती है जो पृथ्वी के तापमान को बढ़ाता है तथा हवा की गुणवत्ता को खराब करती है। साथ ही जहरीली होने के साथ-साथ धुंध से भी भरी होती है। आतिशबाजी से बच्चो तथा व्यस्को के जलने, ऑखो में चोट लगने तथा सुनने की क्षमता आदि प्रभावित होती है। इसके अलावा फेफड़ो की बीमारी, अस्थमा, तीव्र ब्रोकाइटिस और श्वसन संकमण, दिल के दौरे जैसी संवेदनशील बीमारियां होने की सम्भावनांए बढ़ जाती है। पटाखों को बनाने के लिए जिन केमिकल और रेडियोएक्टिव कम्पांउड का प्रयोग किया जाता है उनसे कैसंर होने का जोखिम कई गुना बढ़जाता है।

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