Latest News

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति


हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के दो दिवसीय पैनल डिस्कशन में आज दूसरे दिन स्कूली शिक्षा पर परिचर्चा की गई। 34 साल बाद आई नई शिक्षा नीति में कई बदलाव स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में किये गये हैं।

रिपोर्ट  - ALL NEWS BHARAT

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के दो दिवसीय पैनल डिस्कशन में आज दूसरे दिन स्कूली शिक्षा पर परिचर्चा की गई। 34 साल बाद आई नई शिक्षा नीति में कई बदलाव स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में किये गये हैं। इन्हीं बदलावों व आने वाली चुनौतियों पर परिचर्चा के लिए मुख्य वक्ता के रूप में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के डीन प्रोफ़ेसर आशीष श्रीवास्तव, दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के प्रोफ़ेसर पंकज अरोड़ा, एनसीईआरटी की डॉ भारती, एससीईआरटी उत्तराखंड के कुलदीप गैरोला मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए कार्यक्रम के संयोजक प्रोफ़ेसर एम एम सेमवाल ने सभी वक्ताओं का स्वागत करते हुए कहा कि यह नीति भारतीयता को साथ लेकर वैश्विक संभावनाओं को संबोधित करने वाली है और छात्रों को केवल ज्ञान ही नहीं बल्कि उनके नैतिक, चारित्रिक एवं आत्मिक विकास को लक्ष्य बनाने वाली भी है। यह नीति 10+2 पर आधारित हमारी स्कूली शिक्षा प्रणाली को 5+3+3+4 के रूप में बदलती है। इसके माध्यम से शिक्षा के अधिकार क़ानून का दायरा बढ़ाया गया है जो कि अब बढ़कर 3 से 18 साल की उम्र तक बढ़ गया है। यह शिक्षा नीति केवल छात्रों के बोझ को कम ही नहीं करती बल्कि शिक्षकों को भी बेहतर करने के लिए प्रेरित करती है। इस कार्यक्रम की समन्वयक व संचालक प्रोफ़ेसर सीमा धवन ने कहा कि यह नीति औपचारिक शिक्षा से पहले ही शुरू हो जाती है जिससे छात्रों का मानसिक एवं भावनात्मक ही नहीं बल्कि शारीरिक विकास भी संभव होगा। उन्होंने इसके लिए शिक्षकों को विशेष रूप से प्रशिक्षित करने की वकालत की. वक्ता एससीईआरटी के संयुक्त निदेशक कुलदीप गैरोला ने सवालों के जवाब देते हुए कहा कि यह नई शिक्षा नीति प्राथमिक शिक्षा पर बहुत अधिक ध्यान देती है और शिक्षकों के शिक्षा प्रशिक्षण पर भी बल देती है। यह नीति बच्चों को अपने अनुभव से रंगों, चित्रों व कहानियों के माध्यम से सीखने पर बल देती है। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के डीन प्रोफ़ेसर आशीष श्रीवास्तव ने कहा कि यह एक प्रगतिशील नीति है जिसमें शिक्षकों को आगे आकर निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। इस नीति में शिक्षकों को ग़ैर शैक्षणिक कार्यों को एक नियत समय से अधिक करने की अनुमति नहीं होगी जिससे वे शिक्षण कार्यों पर अपना पूरा ध्यान दे पाएँगे। एनसीईआरटी की डॉ भारती ने कहा कि इस नीति में समावेशी शिक्षा को महत्व दिया गया है। बच्चे किस वजह से स्कूल छोड़ रहे हैं उनका पता लगाया जाना चाहिये ताकि प्राथमिक शिक्षा में 100% नामांकन के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके। शिक्षा साझेदारी का विषय है इसलिए हमें मिलकर काम करना होगा। इसके लिए आवश्यक है कि राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर एक टास्क फ़ोर्स का गठन किया जाए जो कि समस्या का निरीक्षण कर सके। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के प्रोफ़ेसर पंकज अरोड़ा ने कहा कि सीखने की प्रक्रिया बहुत लंबी होनी चाहिये। जिसके पास जितना अच्छा अनुभव होगा वह उतने अच्छे तरीक़े से शिक्षण समस्याओं का अवलोकन तथा उनका समाधान प्रदान कर सकेगा। इसलिए अनुभवी शिक्षकों का एक ऐसा समूह गठित करने की आवश्यकता है जो अपने अनुभवों से शिक्षक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सके तथा भविष्य के शिक्षकों को दिशा निर्देशित कर सके। इस कार्यक्रम में धन्यवाद डॉ नरेश कुमार ने किया। इस कार्यक्रम के अवसर पर देश के अनेक विश्वविद्यालयों के छात्र-छात्राऐं तथा शोध छात्र मौजूद रहे। इसके साथ ही कार्यक्रम की आयोजन समिति के सदस्य डॉ आशु रौलेट, डॉ जे पी भट्ट, डॉ राकेश नेगी, डॉ देवेंद्र सिंह, , प्रो० सुनील खोसला, प्रो० महावीर नेगी, प्रो० वाई पी सुंदरियाल, प्रो० मोनिका गुप्ता , प्रो० इंदु पांडेय खंडूरी डा शर्मा भट्ट डा ए आर सेमवाल,अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के जगमोहन कठैता, डा प्रदीप अंथवाल तथा स्कूली शिक्षा से कई प्रधानाचार्य व शिक्षक आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम में 380 लोगो ने पंजीकरण किया था . प्रतिभागियों ने इस तरह की परिचर्चा आगे भी करने की मांग की।

Related Post