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बच्चों के जीवन जीने के सलीके में बहुत बदलाव: जितेंद्र धीरवान


श्रीनगर मैं लक्ष्य कोचिंग द्वारा जितेंद्र धीरवान जी की अध्यक्षता में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया दोस्ती में अच्छी शिक्षा को लेकर सभी ने अपने विचार रखे और कहा की परीक्षाओं को लेकर बच्चों को किस तरह से तैयार किया जाए जिससे बच्चे अपने जीवन में आगे बढ़ सकें और इस समाज में अपना एक स्थान बना सकें गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे जितेंद्र धीरवान ने कहा बच्चों में जीवन जीने के सलीके में बहुत बदलाव आ गया है। आज का नागरिक अपना जीवन अपने अंदाज में व्यतीत करना चाहता है।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

आज श्रीनगर मैं लक्ष्य कोचिंग द्वारा जितेंद्र धीरवान जी की अध्यक्षता में एक गोष्ठी का आयोजन किया गया गोष्ठी में अच्छी शिक्षा को लेकर सभी ने अपने विचार रखे और कहा की परीक्षाओं को लेकर बच्चों को किस तरह से तैयार किया जाए जिससे बच्चे अपने जीवन में आगे बढ़ सकें और इस समाज में अपना एक स्थान बना सकें गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे जितेंद्र धीरवान ने कहा बच्चों में जीवन जीने के सलीके में बहुत बदलाव आ गया है। आज का नागरिक अपना जीवन अपने अंदाज में व्यतीत करना चाहता है। इसमें किसी का हस्तक्षेप करना उसे बिल्कुल पसंद नहीं है। इस जीवन जीने की कला में वह अपनी जिम्मेदारियों से बचने का भी प्रयास कर रहा है। इसका प्रतिकूल प्रभाव परिवार और समाज पर पड़ रहा है। हमें विशेषकर अभिभावकों ओर शिक्षकों का मार्गदर्शन बच्चों के जीवन जीने की शैली को बहुत हद तक प्रभावित करता है। हमें उनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाते हुए परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति उनके दायित्वों के प्रति भी जागरूक करना होगा। ऐसा नहीं करते हैं तो युवा पीढ़ी अपने जीवन और उनके दायित्वों के बारे में जिम्मेदार नहीं हो पाएंगे संस्कारों का रहता है असर: आज के विद्यार्थियों के जीवन की शैली में जो परिवर्तन आया है वह सबसे अधिक संस्कारों का है। आज का विद्यार्थी मेधावी, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में बहुत अधिक रुचि रखता है लेकिन सुसंस्कारित नहीं है। अच्छे संस्कारों की कमी के कारण उठना, बैठना, बोलना, बड़ों का आदर सत्कार, माता-पिता, गुरुजनों के सम्मान में रुचि नहीं रखता। इन सबका कारण माता-पिता के समय अभाव एवं संयुक्त परिवार का कम होना है। प्रत्येक माता पिता यह उम्मीद करते है कि उनका बच्चा बेहतर शिक्षा ग्रहण करे, अच्छे संस्कार स्कूल में शिक्षक भी सिखाएं। विषय ज्ञान के लिए विद्यार्थी उत्तरदायित्व हैं लेकिन संस्कारों, वास्तविक प्रयोगशाला तो घर एवं परिवार हैं जहां बच्चों के व्यवहार एवं संस्कारों का वास्तविक प्रयोग होता है। आज का शिक्षक एवं छात्र दोनों अंकों के खेल में व्यस्त हो गए हैं। उनका एक ही लक्ष्य सर्वाधिक अंक लाकर कुछ बनने का होता है। अध्यापक भी छात्रों के सर्वांगीण विकास के स्थान पर मानसिक विकास पर केंद्रीत होता है। इस भागदौड़ में जीवन के अच्छा नागरिक या अच्छा इंसान बनाने की पहलू अछूते रह जाते हैं। हमारे समय में शिक्षक एक ईश्वर की तरह वास्तविक रूप से पूज्यनीय होते थे। आज इस स्तर में बहुत बदलाव आया हुआ है। इसके लिए हम सभी समाज के लोग जिम्मेदार हैं। आज अभिभावक शिक्षक पर अपने बच्चों से ज्यादा भरोसा नहीं करता पहले शिक्षक की बात पर विश्वास किया जाता था। पहले माता पिता अपने से ज्यादा शिक्षक को बच्चों का शुभ¨चतक मानते थे। अच्छी शिक्षा के साथ-साथ अपने गुरुजनों एवं अभिभावकों का सम्मान भी बहुत जरूरी है क्योंकि परिजन और गुरु ही उस मुकाम तक पहुंचाने में सहायता करते हैं जो हमें पूरी जिंदगी काम आती है इस अवसर पर गोष्ठी में भाग लेने वाले गोष्टी की अध्यक्षता कर रहे जितेंद्र धीरवान, दीना धीरवान, राकेश भट्ट, संदीप रावत, अनुराग मिश्रा, गोपाल चकारिया, अंजना घड़ियाल, अमिता, पूजा गुसाईं, रुचि ठाकुर ने भाग लिया।

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