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१५ अगस्त का दिन कहता है, आज़ादी अभी अधूरी है।


आज़ादी अभी अधूरी है, सपने सच होने बाकी है । नूतन कि बेला न पूरी है, आज़ादी अभी अधूरी है।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¾à¤œà¥€à¤µ सिंह

यह पंक्तियां अपने आप में बहुत कुछ कहती है, हमें समझने की जरूरत है कि हमारी आजादी क्या सच में अधूरी है, मैं जब अपनी नजरों से देखता हूं अपने भारतवर्ष के नक्शे को तो बस देखते रहने का मन करता है मन करता है इसमें डूब जाऊं कितनी खूबसूरत हमारी भारत माता जितनी खूबसूरत हमारी भारत भूमि, उतना ही खूबसूरत हमारी भारतीय संस्कृति, हमारे प्रदेश, हमारी भाषाएं न जाने कितने हमले हुए हमारी भारत मां पर, न जाने कितनी बार हमें लूटा गया कभी मुगलों के द्वारा तो कभी अंग्रेजो के द्वारा फिर भी हमारा वजूद है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेता, आखिर क्या है ? जिसे कोई मिटा नहीं सकता, जिसे कोई हरा नहीं सकता और जिसे कोई थका नहीं सकता। तो मैं समझता हूं कि वह हमारी भारत मां कि मिट्टी है जो, न हारने का नाम लेती है, ना थकने का और ना ही झुकने का । वह दुश्मनों से बार-बार कहती है कि, तुम जितने हमले करोगे जितने अंगारे बरसा ओग, उतना ज्यादा हम मजबूत होंगे , हमारे बच्चे मजबूत होंगे , हमारी आने वाली पीढ़ियां मजबूत होंगी और तुम देखते रह जाओगे , सोचते रह जाओगे कि, आखिर कैसी हस्ती है भारत की जो मिटने का नाम हिं नहीं लेती । मैं कहता हूं यदि भारत वर्ष को समझना है तो हमारे साथ बिहार चलिए हिंदी के बिहार नहीं , अंग्रेजी के BIHAR चलिए। जहां बिहार का B" कहता है कि मैं भारत हूं, बिहार का I" कहता है कि, मैं इंडिया हूं, बिहार का H" कहता है कि, मैं हिंदुस्तान हूं, बिहार का A" आता है कि, मैं आर्यावर्त हूं, और बिहार का R" कहता है कि, मैं रिवा हूं। सच कहूं तो भारत वर्ष बिहार में ही बसता है । जिसने न जाने कितने महापुुषों को जन्म दिया जैसे- महान गणितज्ञ आर्यभट्ट, रामायण के लेखक महर्षि वाल्मीकि, शेरशाह, कुंवर सिंह, सम्राट अशोक, जयप्रकाश नारायण, भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद आदि महान राष्ट्र भक्तों ने यहीं, इसी मिट्टी पर पले- बढ़े और इसी मिट्टी को आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगा दी उसके बाद भी आज मैं यह क्यों कहता हूं कि, आजादी अभी अधूरी है, क्योंकि, इसी आशा और अपेक्षा के साथ महान सपूतों ने अपनी जान गवाई की शायद हमारे जाने के बाद हमारी आने वाली पीढ़ी खुशहाल रहेगी और उन्हें न्याय मिलेगा। सच्चे अर्थों में जैसी आजादी की परिकल्पना वह करके गए वह आजादी अभी तक आई नहीं है, वह कैसा देश चाहते थे , यह हमें तभी मालूम पड़ेगा जब हम उनके जीवन को पढ़ेंगे, उनके जीवन को समझेंगे, और उनके जीवन को जिएंगे। और यह सभी चीजें हम बड़ी-बड़ी गाड़ियों, एसी में बैठ कर नहीं महसूस कर सकते हैं नहीं जी सकते हैं, जैसी आजादी महात्मा गांधी चाहतेे थे, भगत सिंह जाते थे, चंद्रशेखर आजाद चाहते थे । तो हमें क्या करना होगा हमें वर्तमान में घट रही घटनाओं को बड़े ही बारीकी से, बड़े गौर से देखना होगा, समझना होगा और उसका सही समाधान करना होगा उसके लिए लड़ाई भी लड़नी होगी वर्तमान की कौन सी घटनाएं हमें सबसे ज्यादा प्रभावित की है। 2020 , जनवरी से लेकर और अगस्त तक की यात्रा को देखेंगे तो पाएंगे कि पूरा वर्ष, हर एक दिन चुनौतीपूर्ण और सीख भरा रहा है अब हमें सोचना है कि हम इस चुनौती को कितना सही तरीके से समझ पाए हैं और आगे बढ़ पाएं है, चुनौतीपूर्ण यात्रा में दो सबसे महत्वपूर्ण घटना है जो 2020 में घटी है उस पर हम संक्षेप में बात करेंगे पहली घटना कोविड-19 हम सभी जानते हैं कि कोविड-19 की वजह से पूरा देश ही नहीं पूरी दुनिया परेशान रही इस पर भी हमें सोचने की आवश्यकता है कि आखिर क्यों? यह महामारी देखते ही देखते पूरी दुनिया में पांव पसार गया, आखिर कौन है इसका जिम्मेदार जब विस्तार से हम इसको सोचते हैं और समझने की कोशिश करते हैं तो अंत में यही पाते हैं कि कोई पशु-पक्षी नहीं बल्कि मनुष्य ही है इसका जिम्मेदार, और दूसरी घटना जो 14 जून 2020 को घटित हुई, सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु संदिग्ध तरीके से हो जाती है शुरुआती दिनों में तो लगता है कि यह एक आत्महत्या है लेकिन जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ते हैं हर रोज इसमें नया ट्विस्ट आता है और फिर लगता है की यह आत्महत्या नहीं बल्कि कुछ और ही है जिसका पता लगाना तो हमारी जांच एजेंसियों का काम है , परंतु इस घटना ने भारतवर्ष की कानूनी गुलामी को उजागर कर दिया जीसे भारतवर्ष की 130 करोड़ जनसंख्या ने सुना और देखा ही नहीं बल्कि महसूस भी किया कि हम कानूनी रूप से आज भी आजाद नहीं है हमारी पुलिस प्रशासन आज भी नेताओं की गुलामी कर रहे हैं, मैं उस कानूनी दांव पेंच में नहीं जाना चाहता, आप सभी ने भली-भांति इस घटना को महसूस किया है। इसीलिए हम कहते हैं कि, आजादी अभी अधूरी है , सपने सच होने बाकी है। नूतन की बेला न पूरी है, आजादी अभी अधूरी है।

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