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गोबर, माटी एवं आयुर्वेदिक प्रतिमाओं का हो विसर्जन-स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन में की गोबर, मिटटी और आयुर्वेदिक जड़ी बुटियों से बने भगवान श्री गणेश जी स्थापना और पूजन किया गया तथा गणेश चतुदर्शी के पावन अवसर पर उनका ही विसर्जन किया जायेगा।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 22 अगस्त। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज सभी देशवासियों को श्री गणेश चतुर्थी की शुभकामनायें देते कहा कि हमारे पर्वो और त्योहारों को ईकोफ्रेंडली परम्पराओं से जोड़ना होगा। आज परमार्थ निकेतन में की गोबर, मिटटी और आयुर्वेदिक जड़ी बुटियों से बने भगवान श्री गणेश जी स्थापना और पूजन किया गया तथा गणेश चतुदर्शी के पावन अवसर पर उनका ही विसर्जन किया जायेगा। स्वामी जी महाराज ने कहा कि गणेश चतुर्थी का दिवस बहुत ही महत्वपूर्ण है। आज के दिन भगवान वेद व्यास जी ने महाभारत जैसे विशाल महाग्रंथ की रचना की थी। वह केवल महाभारत नहीं बल्कि महान भारत की रचना थी और प्रभु की प्रेरणा से श्री गणेश जी को लिखने के लिये चुना गया था। वे पहले आशंुलिपिक थे, इतने सूझबूझ वाले, बुद्धिशाली कि व्यास जी बोलते थे और गणेश जी लिखते जाते थे। वे पहले और अन्तिम व्यक्तित्व, अद्भुत व्यक्तित्व अद्भुत बुद्धि और सिद्धि के दाता है। तब से यह परम्परा आगे बढ़ी। बाल गंगाधर तिलक जी ने गणपति विसर्जन की परम्परा को बड़ी ही दिव्यता के साथ आगे बढ़ाया केवल महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे देश को उन्होंने अपने साथ खड़ा कर लिया था और आज इस दिव्य परम्परा का स्वरूप हम सभी के सामने है। केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों में है, लेकिन जिस परम्परा से पर्यावरण बिगड़ता हो उस परम्परा पर अब ध्यान देने की जरूरत है इन परम्पराआंे को बदलना होगाइसलिये गणेश विसर्जन करें लेकिन नये सर्जन के साथ। स्वामी जी ने कहा कि शास्त्रों में तो यह मर्यादा है कि गणेश जी की जो मूर्ति बनायं,े वह मात्र एक अंगूठे के बराबर होनी चाहिये। जिसे यज्ञ, पूजा और उत्सवों हेतु बनाने का विधान है। बाकी जो प्लास्टर आॅफ पेरिस और सिंथेटिक की प्रतिमायें हैं वह कोई शास्त्रीय विधान के अनुसार नहीं है। शास्त्रीय विधान में तो गणेश जी की प्रतिमा को गोबर से बनाकर ही पूजन करना तत्पश्चात उस प्रतिमा का विसर्जन करने का है। आज जिस तरह से प्लास्टिक और प्लास्टर आॅफपेरिस की मूर्तियां से लदे हुये बाजार हैं और फिर उनका पूजन करने के पश्चात उन मूर्तियों का नदियों में, तालाबों में विसर्जन किया जाता है उससे प्रदूषण तो बढ़ता ही है साथ में पूजित प्रतिमाओं की दूर्गति भी देखने को मिलती है। मुझे नहीं लगता कि यह परम्परा स्वस्थ परम्परा है गणेश विर्सजन की। आज हम उत्साहित तो होते हैं, उंमग से भर जाते हैं, डीजे भी बजाये जाते हैं। सच माने यह परम्परा डीजे बजाने का नहीं खुद को बजाने की है और खुद को बचाने की है, परम्पराओं को बचाने की है, इन परम्पराओं को आगे लाना, बचाना बहुत जरूरी है परन्तु पर्यावरण की रक्षा करते हुये तभी हमारा गणेश विसर्जन सार्थक होगा और सफल होगा और प्रेरक होगा। इस तरह से चितंन करते हुये गणेश चतुर्थी एवं गणपति विर्सजन महोत्सव मनायंे। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि यह एक सृजन की यात्रा है, एक नये सर्जन की यात्रा है। इसे हम एक नये इनोवेटिव वे, से मनायंे। जब यह परम्परा प्रारम्भ हुई तब पूजा में, हवन में, यज्ञ में गोबर और मिट्टी के ही श्री गणेश बनाये जाते थे और फिर तालाबों में, जलाश्यों में, सरोवरों में उनका विसर्जन किया जाता था। हमारे शास्त्रों में श्री गणेश जी की मूर्ति को नदी में, जल में प्रवाहित करने का विधान था। जल में गोबर और मिट्टी घुल जाती थी गोबर के तत्व, जाकर पानी की तलहटी में मिलते थे और मिट्टी, पानी आदि बहुत सारी चीजों को शुद्ध कर देते थे। उससे धरती उपजाऊ बनती थी तथा पर्यावरण की रक्षा होती थी। इन पौराणिक परम्पराओं को अपनाना जरूरी है परन्तु पर्यावरण के साथ इससे गौ माता का संरक्षण होगा। हमारी परम्परायें भी बचेगी और पर्यावरण भी बचेगा। पहले पूजने के लिये गोबर के श्री गणेश बनाने की ही परम्परा थी। वर्तमान में भी हम गोबर के, माटी के या आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों से गणेश जी बनायें पूजन करें और विसर्जन के समय धरती में गढ़ढा करें और उसमें उन्हें स्थापित कर दें। इससे परम्परा भी बचेगी और पर्यावरण भी। यह सिंथेटिक गणेश या अन्य सामग्री से बने गणेश जो विसर्जित करते है और वह लम्बे समय तक अस्त व्यस्त रूप में इधर-उधर पडे़ रहते है, इससे श्री गणेश जी का अनादर भी होता है यह दृश्य देखने वालों में भी अश्रद्धा उत्पन्न होती है इसलिये इस बार श्री गणेश जी का पूजन और विसर्जन सृजन और सर्जन की यात्रा बने। आज ऐसे ही इनोवेटिव आयोजनों को और परम्पराओं को अपनाने की जरूरत है। हमारे सेलिब्रेशन, ग्रीन सेलिब्रेशन बनें हम यूज एंड थ्रो के कल्चर से बचंे और खासकर भगवान की प्रतिमाओं के विषय में तो बिल्कुल ही बचना है, इससे शुभ भी होगा और लाभ भी।

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