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कांग्रेस का रिवाइवल नेता से नहीं नीति से होगा कथित मेन स्टीम मीडिया को गैर गांधी अध्यक्ष की तलाश


देश की 135 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का लंबे समय तक सत्ता पर एकाधिकार रहा है। सत्ता का एकाधिकार खत्म होने के बाद सबसे बड़ी धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र की नींव पर खड़ी यह पार्टी आज सबसे अधिक बुरे दौर से गुजर रही है।

रिपोर्ट  - à¤°à¤¤à¤¨à¤®à¤£à¥€ डोभाल

देश की 135 साल पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का लंबे समय तक सत्ता पर एकाधिकार रहा है। सत्ता का एकाधिकार खत्म होने के बाद सबसे बड़ी धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र की नींव पर खड़ी यह पार्टी आज सबसे अधिक बुरे दौर से गुजर रही है। सत्ता से बाहर रहने की कांग्रेसियों को आदत नहीं है इसलिए वह बिन पानी की मछली की तरह छटपटा रहे हैं। पूर्णकालिक अध्यक्ष के बहाने उसके अंदर संघर्ष छिड़ा है। वैसे तो यह कोई बुरी नहीं अच्छी बात है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में यदि कोई पार्टी भरोसा करती है और जिंदा रहना है तो अंदरूनी बहस व संघर्ष उसकी खुराक है। बहस कांग्रेस के रिवाइवल की हो रही है, जिसके लिए नेता (अध्यक्ष) होना चाहिए। इसके लिए 23 पुराने शीर्ष नेताओं नेताओं ने चिट्ठी लिखी। जिस पर बैठक हुई लेकिन कुछ निकला नहीं। कुछ राजनीतिक विचारक ऐसा मानते हैं कि कांग्रेस को नेता तो चाहिए ही, लेकिन इससे कहीं अधिक नीति की जरूरत है। कांग्रेस की नव उदारीकरण की 90 के दशक की आर्थिक नीति को मोदी ने हड़प लिया है और अब उसमें कुछ बचा नहीं है। कारपोरेट को वह जितना बेच सकता था, मुनाफा दे सकता था वह दे चुका है। कांग्रेस के पास कारपोरेट को लुभाने के लिए कुछ बचा नहीं है इसलिए जनता के पास जाने के अलावा कोई विकल्प उसके पास रिवाइवल के लिए बचा नहीं है। रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, खेती, किसानी पर लौटना होगा। कथित मेन स्टीम मीडिया का एक बड़ा हिस्सा प्रायोजित एजेंडे पर काम कर रहा है। जिसको गैर गांधी परिवार का अध्यक्ष चाहिए।यह एजेंड़ा कांग्रेस को निपटाने का भी हो सकता है ताकि संघ - भाजपा के खिलाफ केंद्र में राजनीतिक विकल्प की संभावना खत्म हो जाए और मोदी अजेय दुर्ग बने रहें। कांग्रेस भी ऐसा करती थी। वरना कांग्रेस का अध्यक्ष कौन हो कौन नहीं इसका मीडिया से क्या मतलब है। देश की सबसे बड़ी पार्टी अकेले अपने दम पर न केंद्र न किसी बड़े राज्य में सत्ता की दावेदारी करने की स्थिति में नहीं रह गई है। धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत पर अडिग रहने पर भी वह जब तब हिचकोले खाती रही है। जिसका खामियाजा देश भुगत रहा है। राहुल गांधी को एंटनी कमेटी का वायनाड केरल ले जाना, हिंदू मतदाताओ को साथ लाने के लिए अल्पसंख्यक खासकर मुसलमानों को धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सेदारी से अलग - थलग करना तथा मंदिर - मंदिर घुमाना नीतियों में भटकाव का ही मामला है। एक मुख्य उद्देश्य कांग्रेस से किनारा कर चुके कारपोरेशन मित्रों को यह भरोसा देना था कि वह लेफ्ट के साथ नहीं है इसलिए उन्हें वापस लौटकर कांग्रेस की मदद करनी चाहिए। लेकिन उन्होंने मोदी पर ही भरोसा किया है और अब कारपोरेट उसके साथ है। भाजपा को मिल रहे अरबों के चंदे से इसका पता चलता है। मोदी घनघोर मंदी में भी उन्हें मुनाफा दे रहा है। कांग्रेस का जमीनी कार्यकर्ता जो भाजपा की तानाशाही, फिरका परस्ती से लड़ रहा है। उसको कोई पूछ नहीं रहा है। सत्ताधारी उनके सामने टुकड़े फेंककर ललचा रहे है। बड़े नेता तो कहीं भी आना जाना कर लेते हैं लेकिन कार्यकर्ता सड़कों पर पिटता, छितता रहता है उसको कोई पूछता नहीं है और जो आ जाता है उसी की जिंदाबाद करनी पड़ती है। कांग्रेस को रिवाइवल करना है तो नेता के साथ-साथ उसको उस नीति पर भी विचार करना होगा जिस पर चलते हुए वह वर्तमान स्थिति में पहुंची है जिसका फायदा संघ - भाजपा ने उठाया और वह कांग्रेस की तरह केंद्र से लेकर राज्यों तक सत्ता में अपना एकाधिकार बनाने में सफल रही है। कांग्रेस को रिवाइवल करना है तो उसको नीतियों पर पुनर्विचार कर विपक्षी दल की भूमिका अदा करनी होगी । उसको देशभर में फैले क्षेत्रीय छोटे बड़े राजनीतिक दलों संगठनों को एकजुट कर देश को विश्वास दिलाना होगा कि वह धर्मनिरपेक्षता की हिफाजत करेगी। अल्पसंख्यकों में उसकी ढुलमुल नीति से जो निराशा है उसको दूर कर उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हर हिस्से में शामिल करना होगा।

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