Latest News

नो ग्लेशियर तो नो गंगा - स्वामी चिदानन्द सरस्वती


परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने हिमालय दिवस के अवसर पर ऑल इंडिया काउंसिल फाॅर टेक्निकल एजुकेशन द्वारा आयोजित ऑक्सीजन हिमालय दिवस वेबिनार को संबोधित करते हुये कहा कि किसी राष्ट्र की अमूर्त संस्कृति उसकी वह निधि है|

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 9 सितम्बर। परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने हिमालय दिवस के अवसर पर ऑल इंडिया काउंसिल फाॅर टेक्निकल एजुकेशन द्वारा आयोजित ऑक्सीजन हिमालय दिवस वेबिनार को संबोधित करते हुये कहा कि किसी राष्ट्र की अमूर्त संस्कृति उसकी वह निधि है जिससे वह राष्ट्र समृद्ध बनता है। देवात्मा हिमालय हमारे राष्ट्र की उन अमूर्त संस्कृतियों में से एक है जिसने भारत को गौरवान्वित किया है। हिमालय हमारी आध्यात्मिक चेतना का दिव्य स्रोत है, उससे ही हमारी उन्नति है, प्रगति है, पूर्णता है और वही हमारी संस्कृति की आधारशिला भी है। स्वामी जी ने कहा कि हिमालय हमें केवल जीवन ही नहीं देता बल्कि हिमालय जैसा जीवन जीने का हौंसला भी देता है। वह दुनिया की सबसे बड़ी और सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला है तथा दुनिया के 8 देशों में हिमालय का साम्राज्य है। इस अवसर पर आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर जी, प्रमुख अतिथि भारत के उपराष्ट्रपति, भारतीय संस्कृति के उपासक माननीय एम वेंकैया नायडू जी, केन्द्रीय शिक्षा मंत्री, माननीय श्री रमेश पोखरियाल जी, पद्म भूषण डाॅ अनिल जोशी जी, डाॅ जितेन्द्र सिंह, यूनियन मिनिस्टर, पीएमओ, श्री किरेन रिजिजू, केन्द्रीय खेल मंत्री, श्री अनुराग ठाकुर, वित्त राज्य मंत्री, श्री अजीत कुमार डोभाल जी, भारत के राष्ट्रीय सलाहकार, परम विशिष्ट सेवापदक से सम्मानित जनरल बिपिन रावत जी, प्रो के विजय राघवन जी, प्रो आशुतोष शर्मा जी, डाॅ रेनु स्वरूप सचिव डीबीटी सहित अन्य विशिष्ट अतिथियों ने सहभाग किया। स्वामी जी ने कहा कि उत्तर भारत की अधिकांश नदियां हिमालय से ही निकलती है। सच तो यही है कि हिमालय है तो गंगा है, हम बहुत सौभाग्यशाली है कि हम उस देश के वासी है जिस देश में गंगा बहती है परन्तु हम उत्तराखंड वासी तो उस प्रदेश के वासी हैं जिस प्रदेश से गंगा निकलती है। हमारा यह सौभाग्य है कि हमने इस धरती पर जन्म लिया जहां दिव्यता और भव्यता दोनों का संगम है। उन्होंने कहा कि बर्फ की सफेद चादरों से ढ़के हिमालय की गोद में भारत की आत्मा बसती है। हिमालय हमारी प्राणवायु का स्रोत ही नहीं बल्कि भारत की बड़ी आबादी की प्यास भी बुझाता है इसलिए तो उसे ’पृथ्वी का जल मीनार’ भी कहा जाता है। स्वामी जी ने कहा कि यदि हिमालय न होता तो गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी भी न होती और आज जो हम हरे-भरे भारत की हरियाली और खुशहाली देखते हैं वह शायद सहारा की मरुभूमि की तरह होती इसलिये हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि मानवीय गतिविधियों और औद्योगिक क्रांति के कारण जो ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि हो रही है, जिसके कारण ग्लेशियर, पिघल रहे है, धरती का तापमान बढ़ रहा है, मानसून बदल रहा है, धरती पर पानी की कमी हो रही है, पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन हो रहा है और भूमि क्षरण हो रहा है। प्राकृतिक संपदाओं के अत्यधिक दोहन के कारण प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ता जा रहा है, जो हमारे वर्तमान और भविष्य दोनों के लिये खतरनाक है इसलिये एक बात हमेशा याद रखना होगा कि नो ग्लेश्यिर तो नो गंगा। स्वामी जी ने कहा कि हिमालय स्वस्थ तो भारत मस्त। इसलिये हमें पहाड़ों पर पड़ी बंजर भूमि पर वृक्षारोपण करना होगा तथा हिमालय को हमें पुनः जड़ी-बूटियों से सजाना होगा। पहाड़ों की दालें, दलहन और पहाड़ी उत्पादों को बढावा देना होगा। उत्तराखंड के व्यंजन और उत्पाद बच्चों में व्याप्त कुपोषण की समस्या से भी निजात दिला सकते हैं। स्वामी ने कहा कि समस्यायें चाहे तन की हो या मन की हिमालय के पास सब का समाधान है। हिमालय, अपार शान्ति का भण्डार है। स्वामी जी ने कहा कि हिमालयी क्षेत्र को हमें ऑक्सीजन बैैंक के रूप मंे प्रसारित करना होगा। पीस टूरिज्म, ऑक्सीजन टूरिज्म, योग और ध्यान टूरिज्म की तरह इसे आगे लाना होगा। उन्होने कहा कि अपना हिमालय, तन स्वस्थ और मन मस्त रखने की ताकत रखता है इसलिये हमें हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य एवं सांस्कृतिक विरासत को संजो कर रखना होगा।

Related Post