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हिन्दी हमारी मातृभाषा है, हिन्दी से जुड़े रहना अर्थात अपनी संस्कृति और संस्कारों से जुडना


आज हिन्दी दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’भारत की महान, विशाल, गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और विरासत को सहेजने का कार्य हिन्दी ने ही किया है। हिन्दी भारतीय संस्कारों और संस्कृति से युक्त भाषा है। हिन्दी से जुड़ना अर्थात अपनी जड़ों से जुड़ना।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

ऋषिकेश, 14 सितम्बर। आज हिन्दी दिवस के अवसर पर परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि ’भारत की महान, विशाल, गौरवशाली सभ्यता, संस्कृति और विरासत को सहेजने का कार्य हिन्दी ने ही किया है। हिन्दी भारतीय संस्कारों और संस्कृति से युक्त भाषा है। हिन्दी से जुड़ना अर्थात अपनी जड़ों से जुड़ना। हिन्दी, दिल की भाषा है इसलिये ज्यादा से ज्यादा लोग हिन्दी में बोले तथा भावी पीढ़ी को भी हिन्दी से जोड़े। उन्होने कहा कि अपनी-अपनी मातृभाषा जरूर बोले परन्तु हिन्दी हमारी राज्य भाषा है मेरा मानना है कि यह सब को आनी चाहिये और हमें इसके लिये प्रयास करना चाहिये। स्वामी जी ने कहा कि प्राचीन काल से ही भारत में हिन्दी और संस्कृत को शास्त्रीय भाषा का स्थान प्रदान दिया गया है। हिन्दी, न केवल एक भाषा है बल्कि वह तो भारत की आत्मा है। हिंदी को सम्मान जनक स्थान दिलाने के लिये वर्षो से देशव्यापी आंदोलन चलाये जा रहे है परन्तु हिन्दी को जब तक प्रत्येक भारतवासी दिल से स्वीकार नहीं कर लेता तब तक उसे अपने ही देश में उचित स्थान नहीं मिल सकता इसलिये प्रत्येक नागरिक को हिन्दी से जुड़ना होगा और आने वाली पीढ़ियों को भी जोड़ना होगा। स्वामी जी ने कहा कि भारत जैसे विशाल और विविधताओं से युक्त राष्ट्र में हिन्दी न केवल शासन, प्रशासन और जनता के मध्य संवाद स्थापित करने का एक माध्यम है बल्कि हिन्दी ने सदियों से हमारी सभ्यता, संस्कृति और साहित्य को सहेज कर रखा है। स्वामी जी ने कहा कि भारत बहुभाषी देश है यहां पर हर सौ से दो सौ किलोमीटर पर अलग-अलग भाषाएँ और बोलियाँ बोली जाती हैं और प्रत्येक भाषा का अपना एक महत्व है। हमारे यहां आजादी के इतने वर्षों के बाद भी राष्ट्रीय स्तर पर कोई एक ऐसी भाषा नहीं है, जिससे सभी राज्य एवं क्षेत्र जुड़े हो। भारत के ज्यादातर राज्यों में हिंदी को उत्कृष्ट स्थान प्राप्त है। अतः हिन्दी के विकास और प्रसार की संभावनाएँ अधिक हैं बस जरूरत है तो हिन्दी भाषा को दिल से स्वीकार करने की। स्वामी जी ने कहा कि भारत का लोकतंत्र एक परिपक्व लोकतंत्र हैं अतः हिंदी भाषा को भारत केे कोने-कोने में हिंदी सिनेमा, टेलीविजन, शिक्षा, प्रशासन, वाणिज्य, समाचार-पत्र, कला और संस्कृति की विभिन्न विधाओं और सम्प्रेषण के माध्यम से फैलाया जाना चाहिये। हमारी पहचान भाषायी आधार या राज्यों के आधार पर नहीं बल्कि हम सभी भारतीयों की पहचान राष्ट्रीय आधार पर होनी चाहिये।

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