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राष्ट्रीय शिक्षा नीति के परिपेक्ष्य में शिक्षा की गुणवत्ता एवं हिंदी की भूमिका


हिंदी की इस बहु प्रयोजनीयता के समानांतर अनुसन्धान  व अध्ययन-अध्यापन में मौलिकता, गुणवत्ता की चुनौती को ही श्रेष्ठतम विकल्प बताया । साथ ही देश के विभिन्न भागों से जुड़े हिंदी सेवियों, शोधार्थियों को  हिंदी की ताकत कहा ।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

भाषा एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान विभाग तथा आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ (IQAC), उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार दिनांक 16 सितंबर 2020  हिंदी माह के कार्यक्रमों की श्रृंखला में माँ वाणी के स्तवन के पश्चात राष्ट्रीय व्याख्यानमाला का शुभारंभ करते हुए आधुनिक ज्ञान-विज्ञान संकाय के डीन तथा आंतरिक गुणवत्ता अश्ववासन प्रकोष्ठ (IQAC) के निदेशक, प्रो.दिनेश चंद्र चमोला ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के आलोक में शिक्षा की गुणवत्ता का अनुसरण, नालंदा व तक्षशिला जैसे प्राचीन विश्वविद्यलयों की  समृद्ध व गौरवशाली ज्ञान-परंपरा की ओर अग्रसर होने का अवसर है । वैश्वीकरण की दौड़ में भाषाओं पर मंडराते संकट पर भी सतर्क रहने की आवश्यकता है ।  यह गुणवत्तापूर्ण सृजन व अध्यापन से ही सम्भव है । वैश्विक रूप में आज हिंदी एक समर्थ भाषा ही नहीं, अपितु बड़े बाजार के रूप में सबके सामने है । उन्होंने हिंदी की इस बहु प्रयोजनीयता के समानांतर अनुसन्धान  व अध्ययन-अध्यापन में मौलिकता, गुणवत्ता की चुनौती को ही श्रेष्ठतम विकल्प बताया । साथ ही देश के विभिन्न भागों से जुड़े हिंदी सेवियों, शोधार्थियों को  हिंदी की ताकत कहा । इसके बाद मुख्य वक्ता पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर केशरी लाल वर्मा ने कहा कि नई शिक्षा नीति रचनात्मकता और नई सोच पैदा करने वाली है । साथ ही इसमें इस बात पर भी विशेष ध्यान दिया गया है कि शिक्षा में गुणवत्ता कैसे बढ़े, इसके लिए नई शिक्षा नीति में कई बड़े-बड़े प्रावधान किए गए हैं । इनमें शोध की गुणवत्ता के लिए के महत्त्वपूर्ण प्रतिष्ठानों के माध्यम से शिक्षा की गुणवत्ता के संवर्धन पर विशेष बल दिया गया है । साथ ही यह भी प्रावधान है कि नई शिक्षा नीति में हर बच्चे को शिक्षा का अवसर अवसर मिले । मातृभाषा का विकल्प इस नीति का प्रमुख उपहार है । विश्वविद्यालय केवल डिग्री के पर्याय न होकर, शिक्षा व मूल्य गढ़ने वाले हों । उनमें अच्छे नागरिक तैयार हों, विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास हो, वह ज्ञान कौशलों से परिपूर्ण हो । चारित्रिक गुणों की विशेषताओं से युक्त, वैज्ञानिक चिंतन,तार्किकता, यथार्थपरक ज्ञान के साथ रचना शीलता को बढ़ाने वाले हों । कुल मिलाकर बालक के सर्वांगीण बौद्धिक व समेकित विकास को केंद्र में रखकर नई शिक्षा नीति का निर्माण हुआ है । उपयोगी व व्यावहारिक पाठ्यक्रमों पर भी बल दिया गया है  । निश्चित ही इस  शिक्षा नीति के जारिए भारत विश्व का नेतृत्व करेगा..।

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