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हेमवती नंदन गढवाल विश्वविद्यालय में 'एक देश -एक चुनाव ' विषय को लेकर एकदिवसीय परिचर्चा


हेमवती नंदन गढवाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा 'एक देश -एक चुनाव ' विषय को लेकर एकदिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया ।

रिपोर्ट  - à¤…ंजना भट्ट घिल्डियाल

हेमवती नंदन गढवाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा 'एक देश -एक चुनाव ' विषय को लेकर एकदिवसीय परिचर्चा का आयोजन किया गया । इस अवसर पर राजनीति विज्ञान विभाग के शिक्षकों ,शोधार्थियों ,स्नातक एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने अपने विचार व्यक्त किए । चर्चा का संचालन करते हुए शोध छात्र जमुना प्रसाद ने विषय पर सूक्ष्म रूप से परिचय दिया । इसके बाद परिचर्चा को आरम्भ करते हुए राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर एम एम सेमवाल ने कहा कि यह विचार नया नहीं है बल्कि इससे पहले वर्ष 1952,57,62 तथा 1967 में भी एक साथ लोकसभा तथा विधानसभाओं के चुनाव करवाए गए हैं किंतु उसके बाद यह एकरूपता भंग हो गयी । चुनाव लोकतंत्र का आधार है किंतु अलग-अलग चुनाव करवाने से जहां एक ओर देश हमेशा चुनावी मोड़ में रहता है वहीं दूसरी तरफ आदर्श आचार संहिता से विकास कार्य बाधित भी होते हैं । दूसरा बड़ा मुद्दा है सरकारी खर्चे का ,वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सरकारी लगभग 60 हज़ार करोड़ का है जबकि अगर राजनीतिक दलों तथा प्रत्याशियों का खर्च इसमें जुड़े तो यह एक बहुत बड़ी रकम बन जाती है इस लिहाज से एक साथ चुनाव करवाना एक अच्छा कदम माना जा सकता है जिससे बार बार होने वालों चुनावों के खर्चों पर रोक लग सकती है । इस पर उन्होंने विभिन्न समितियों ,कमीशनों के सुझावों की तरफ़ भी ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि कई देशों जैसे : इंडोनेशिया ,दक्षिण अफ्रीका ,जर्मनी स्पेन में इस तरह की व्यवस्था समुचित रूप से अपनायी जा रही है किंतु इसके साथ ही हमें इसकी चुनौतियों, कठिनाइयों तथा हानियों पर भी नजर डाली होगी क्योंकि एक साथ चुनाव करने के लिए बडे स्तर पर संवैधानिक बदलाव करने होंगे जिससे न सिर्फ देश का संघीय ढांचे पर असर पड़ सकता है बल्कि अन्य तरह की परेशानियां भी हमने सामने आ सकती हैं। अतः इस प्रगतिशील विचार को बहुत सावधानी के साथ लागू करने की आवश्यकता है।

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