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सर्जरी (शल्य) विश्व को आयुर्वेद की अभूतपूर्व देन : आचार्य बालकृष्ण


आचार्य बालकृष्ण ने शल्य चिकित्सा पर ज्ञान साझा करते हुए बताया कि शल्यतंत्र (सर्जरी) आयुर्वेद में वर्णित एक प्राचीन विधा है।

रिपोर्ट  - allnewsbharat.com

हरिद्वार, 11 दिसम्बर। आचार्य बालकृष्ण ने शल्य चिकित्सा पर ज्ञान साझा करते हुए बताया कि शल्यतंत्र (सर्जरी) आयुर्वेद में वर्णित एक प्राचीन विधा है। प्राचीन अष्टांग आयुर्वेद में सर्जरी को मुख्य चिकित्सा विधा के रूप में उल्लेख किया गया है। सुश्रुत संहिता में सर्जरी को आयुर्वेद के अनेक विधाओं का वर्णन करते हुए शल्य चिकित्सा या सर्जरी को प्रथम स्थान पर वर्णन किया गया है। आचार्य ने बताया कि वर्तमान में शल्य में प्रयुक्त होने वाली अष्टविध शस्त्रकर्म आचार्य सुश्रुत की ही देन हैं। इन शल्तंत्र को ही पाश्चात्य वैद्यक (Modern Science) में सर्जरी कहते हैं। आयुर्वेदोक्त शल्य कर्म में अनेक सूक्ष्मताओं का वर्णन किया गया है जिन्हें छेदन (Excision), भेदन (Incision), लेखन (Scrapping), वेघन (Puncturing), एषण (Probing), आहरण (Extraction), विस्रावण (Drainage), सीवन (Suturing)। इन आठ कर्मों द्वारा पूर्ण शल्य क्रिया की जाती है। प्लास्टिक सर्जरी (संधन क्रिया) जिह्ना, नेत्र, कर्ण, दन्त, नासा तथा मुखरोग इन सभी रोगों की शल्य चिकित्सा भी आचार्य सुश्रुत द्वारा वर्णित विधाओं का ही प्रचलन मात्र है, अतः आचार्य सुश्रुत ही आधुनिक सर्जरी के जनक हैं। पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार ने पूरे विश्व में अपनी चिकित्सा पद्धति योग, आयुर्वेद को वैज्ञानिक अनुसंधान व अनेक प्रमाणों द्वारा नये आयाम स्थापित किए हैं। उन उपलब्ध्यिों के साथ आयुर्वेद में वर्णित शल्य विध को पुनर्स्थापित करने का कार्य भी पतंजलि द्वारा बड़े स्तर पर किया जा रहा है। पिछले दस वर्षों से यहाँ हजारों रोगियों की शल्य चिकित्सा/ शल्य क्रियाएँ की जा रही हैं। इसमें बवासीर (पाइल्स), भगंदर (फिस्टुला), परिकर्तिका ( फिशर), नाड़ीव्रण (पिनोडिनल साइनस), आंत्रावृद्धि रोग (हर्निया), हाइड्रोसिल (मूत्रावृद्धि), फायमोसिस (निरुद्ध प्रकश), विद्रधि (एबसस), ग्रंथि रोग (सिस्ट, लिम्फोमा) आदि की सर्जरी की जाती है।

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