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आप सोच रहे हो कि आप स्मार्ट फोन्स को कंट्रोल कर रहे हो, जबकि स्मार्ट फोन्स आपको कंट्रोल कर रहे हैं।


हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा “निजता के अधिकार और सोशल मीडिया” विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन।

रिपोर्ट  - à¤‘ल न्यूज़ ब्यूरो

हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा “निजता के अधिकार और सोशल मीडिया” विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस परिचर्चा का संचालन प्री पीएचडी शोध छात्रा शैलजा ने किया। जिसमें शैलजा ने निजता की परिभाषा देते हुए कहा कि निजता का अधिकार का अर्थ आपके शरीर पर आपके अधिकार से है जिसमें सिर्फ हाड़ मांस का शरीर ही नहीं बल्कि आपके विचार, आपका रहन-सहन, आपका खान पान, आपके जीवन सम्बधी सभी निर्णय आते हैं। निजता के अधिकार में सोशल मीडिया की बात करें तो स्मार्ट फोन्स आप पर हर वक़्त नजरें गढ़ाए बैठा है। आप सोच रहे हो कि आप स्मार्ट फोन्स को कंट्रोल कर रहे हो, जबकि स्मार्ट फोन्स आपको कंट्रोल कर रहे हैं, और आप उसके गुलाम बन चुके होते हैं। परिचर्चा में मानवीय और सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रो. सी.एस.सूद ने इस विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि “निजता का अधिकार” इस विषय पर व्हाट्सएप की नई नीतियों के कारण अब चर्चा होने लगी है। विश्वस्तर पर देखें तो अमेरिका और यूरोप के देश निजता के अधिकार को लेकर काफी संवेदनशील दिखते हैं किंतु भारत के लोग इससे बेखबर है। मोबाइल क्रांति ने लोगों के हाथों में एक ऐसा यंत्र दे दिया है जिससे कुछ भी निजी नहीं रह गया है। आप जैसे ही अपने मोबाइल को इंटरनेट से जोड़ते हैं आपका कुछ भी निजी नहीं रह जाता है। जब हम किसी सोशल मीडिया से जुड़ते हैं तो हम अपना नाम, पता, फोन नंबर, लोकेशन आदि जानकारियाँ उस कंपनी को दे देते हैं और इस तरह देश के सभी नागरिकों का डाटा सोशल साइड्स द्वारा इकट्ठा कर लिया जाता है, इंटरनेट के इस युग में डाटा बहुत आवश्यक सामग्री है जिसमें लोगों की संपूर्ण जानकारी होती है और आज इस जानकारी को एकत्र कर बेचा जाना एक व्यवसाय सा बन गया है और इस डाटा को खरीदने के लिए कई कंपनियां मोटी रकम देने के लिए तैयार है।

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